मेडिकल साइंस में ट्रॉमा किसी भी ऐसी चोट को कहा जाता है जो एक व्यक्ति को शारीरिक या फिर मानसिक तौर पर पहुंची हो। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसे किसी तरह के ट्रॉमा से ना गुज़रना पड़ा हो। क्या हो सकता है ट्रॉमा का स्तर और कैसे होता है इसका इलाज बता रहे हैं डॉक्टर स्वागत महापात्रा, ऑर्थोपेडिक सर्जन। 

ट्रॉमा शारीरिक और मानिसक, दोनों ही तरह के चोट को कहते हैं। शारीरिक चोट की बात करें तो किसी अंग में छोटी सी चोट लगने से लेकर एक्सीडेंट में हड्डी टूटने तक को ट्रामा कहा जाता है। वहीं मानिसक चोट का मतलब है ऐसी घटना होना जिससे व्यक्ति को आघात पहुंचा हो जैसे कि किसी अपने की मौत हो जाना।    

fracture

कितने तरह का होता है ट्रॉमा? (Types of Trauma in Hindi) 

शारीरिक ट्रॉमा में शरीर के किस अंग में चोट लगी है, उसके आधार पर ट्रॉमा को परिभाषित किया जाता है जैसे कि सिर पर लगी चोट को हेड ट्रॉमा या फिर नर्व ट्रामा कहा जाता है। हड्डियों में किसी तरह की चोट लगने पर उसे ऑर्थोपेडिक ट्रॉमा कहते हैं जिसमें हड्डी टूटने से लेकर हड्डी का अपनी जगह से हिल जाना शामिल है। छाती की हड्डी टूटना या फिर छाती के अंदर के अंगों पर चोट लगने को थोरैसिक ट्रॉमा (Thoracic trauma) कहा गया है वहीं पेट और हिप पर लगी चोट को एबडोमिनल या फिर पेल्विक ट्रॉमा कह कर परिभाषित किया गया है। ये भी ध्यान देने वाली बात है कि कुछ शारीरिक चोटें अंदरूनी होती हैं जिसे बाहर से देखा नहीं जा सकता जबकि बाहरी चोटों को देख सकते हैं और इसी आधार पर इन्हें इंटरनल और एक्सटरनल ट्रॉमा कह कर अलग किया जाता है। बात करें मानसिक ट्रॉमा कि तो इसे साइकोलॉजिकल ट्रॉमा भी कहा जाता है जिसमें मरीज़ के दिमाग़ पर किसी अप्रिय घटना का बुरा असर पड़ता है। आमतौर पर लोगों में मानसिक ट्रॉमा शारीरिक ट्रॉमा से कहीं ज्यादा देखने को मिलता है।  

Heart Failure symptoms

क्या हैं ट्रॉमा के लक्षण? (Symptoms of Trauma in Hindi)

शरीर के बाहरी अंगों पर लगे चोट को आसानी से देखा जा सकता है कि उससे ख़ून निकल रहा है या फिर उस अंग में दर्द हो रहा है या नहीं। अगर किसी व्यक्ति को एक से ज्यादा अंगों में चोट लगी हो, तो उसे पॉली ट्रॉमा पेशेंट (Poly Trauma Patient) माना जाता है। ऐसे मरीज़ों की नब्ज़ और ब्लड प्रेशर को सबसे पहले चेक किया जाता है क्योंकि इनका पल्स रेट काफ़ी बढ़ा हुआ होता है और ख़ून बहने के कारण ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। दिमाग़ में किसी तरह की चोट लगने पर मरीज़ की आंखों की पुतलियां स्थिर नहीं रहती। इसके अलावा मरीज़ अपना होश खो बैठता है। सीने में लगी चोट के कारण मरीज़ को खांसने पर पसलियों में तेज़ दर्द होता है। हड्डी टूटने पर वह हड्डी अपनी सही पोज़िशन पर नहीं रहती। गंभीर स्तर के ट्रॉमा में मरीज़ को सांस लेने में दिक्कत होती है, सांस लेने पर आवाज़ आती है और होश नहीं आता। इसके अलावा ट्रॉमा की गंभीरता का पता लगाने के लिए डॉक्टर एक किस्म के स्केल का इस्तेमाल करते हैं जिसे ग्लासगो कॉमा स्केल (Glasgow Coma Scale) कहते हैं। इस स्केल के अनुसार ये देखा जाता है कि मरीज़ किसी बात का रिस्पॉंस दे रहा है या नहीं, उसकी आंखों की मूवमेंट कैसी है और वो अपनी बातों को बोल पा रहा है या नहीं। अंदरूनी चोटें लगने पर भी व्यक्ति को तेज़ दर्द होता है या फिर वह बेहोश हो सकता है।   

depression

क्या है ट्रॉमा का इलाज? (Treatment of Trauma in Hindi)

अमेरिकन कॉलेज ऑफ सर्जन्स ने ट्रॉमा के इलाज के लिए एक तरह का कोर्स तैयार किया है जो काफ़ी सालों से चल रहा है जिसे एडवांस ट्रॉमा लाइफ सपोर्ट यानि ATLS कहा जाता है। इसके तहत A, B, C, D और E यानि एयरवे, ब्रीदिंग, सर्कुलेशन, डिसएबीलिटी और एक्सपोज़र के फेज़ में ट्रॉमा के मरीज़ का इलाज किया जाता है। अगर मरीज़ को चोट लगने के एक घंटे के अंदर अस्पताल पहुंचा दिया जाता है, तो उसे गोल्डन आवर ऑफ ट्रॉमा कहते हैं क्योंकि इतने वक्त में इलाज शुरू होने पर अच्छा रिस्पॉंस मिलता है। इसमें ATLS की गाइडलाइंस के मुताबिक डॉक्टर की पूरी टीम काम करती है और शुरूआती तौर पर मरीज़ को स्थिर किया जाता है। मरीज़ के स्टेबल होने के बाद कई तरह की जांच की जाती है और ज़रूरत पड़ने पर सर्जरी भी की जाती है। 

trauma

ट्रॉमा की स्थिति से कैसे बचें? (How to prevent Trauma in Hindi) 

शारीरिक ट्रॉमा के ज्यादातर मामले रोड एक्सीडेंट से ही जुड़े पाए जाते हैं इसलिए सड़क पर गाड़ी चलाने के लिए यातायात के नियमों का सही से पालन करना चाहिए, गाड़ी चलाने पर पूरा कंट्रोल होना चाहिए और शराब पीकर गाड़ी नहीं चलाना चाहिए। साथ ही प्री हॉस्पिटल सर्विस पर ज्यादा ध्यान देते हुए एंबुलेंस और 108 नंबर की सुविधाओं को और भी बढ़ाना चाहिए। हर अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर होना चाहिए जिसमें डॉक्टर की पूरी टीम मौजूद रहे।  

stay fit

ट्रॉमा के बाद की स्थिति (Post Trauma condition in Hindi)

ट्रॉमा के मरीज़ों को इलाज के बाद भी देखभाल की ज़रूरत होती है क्योंकि उनमें एक तरह का सदमा और डर पैदा हो जाता है। इलाज के बाद उन्हें दोबारा अपनी ज़िंदगी में पहले की तरह ही लौटने में काफ़ी वक्त लगता है जिसके लिए उनके मानसिक इलाज के साथ साथ फिज़ियोथेरेपी की ज़रूरत भी पड़ती है।  

डिस्कलेमर – ट्रॉमा के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर स्वागत माहापात्रा, ऑर्थोपेडिक सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।

Note: This information on Trauma, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Swagat Mahapatra (Orthopedic Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.