ज़रा सी सावधानी और दवाइयों से कैसे अस्थमा को हरा सकते हैं बता रहे हैं डॉ डी पी मिश्रा (टीबी एवं चेस्ट स्पेलिस्ट)

अस्थमा यानि दमा दरअसल सांस की बीमारी है जिसमें मरीज़ की सांस फूलने लगती है और सीने में जकड़न महसूस होती है। कभी कभी मामूली सी लगने वाली ये बीमारी ख़तरनाक और जानलेवा साबित हो जाती है। लेकिन थोड़ी सी सावधानी और डॉक्टर द्वारा दी गयी दवाई और सलाह से इस बीमारी को हमेशा के लिए ख़त्म किया जा सकता है। अस्थमा के बारे में ज्यादा जानकारी दे रहे हैं डॉ डी पी मिश्रा (टीबी एवं चेस्ट स्पेलिस्ट)। 

कैसे होता है अस्थमा? (How does Asthma occur?) 

जब हम सांस लेते हैं तो हवा सांस की नली से होकर हमारे फेफ़ड़ों के अंदर फैली हुईं ब्रोन्कओल्स (Bronchioles) में पहुंचती हैं। लेकिन अगर किसी वजह से हमारे फेफ़ड़े संक्रमित हो जाते हैं तो इसमें मौजूद छोटी छोटी नलियां जिसे ब्रोन्कओल्स(Bronchioles) कहा जाता है वो सिकुड़ने लगती हैं। इन छोटी नलियों के सिकुड़ने से इनमें जगह कम हो जाती है और इसलिए व्यक्ति की सांस फूलने लगती है। नलियोंमें इनफ्लेमेशन (Inflammation)भी हो जाता है जिससे नलियां लाल हो जाती हैं और उनमें जलन और सूजन हो जाती है। इस सूजन की वजह से नलियों में एक तरल पदार्थ इकट्ठा हो जाता है और इस कारण नलियां मोटी हो जाती हैं। नलियों के मोटे होने से ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के प्रवाह पर असर पड़ता है। चूंकि हवा का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता इसलिए मरीज़ की सांस फूलने लगती है। लेकिन नलियों की ये सिकुड़न दोबारा ठीक हो सकती है अगर फेफड़ों में संक्रमण कम हो जाए। दवाइयों के सेवन से सिकुड़न ख़त्म हो जाती है और मरीज़ का सांस फूलना कम हो जाता है।  

पहचानिए अस्थमा के लक्षणों को? (Symptoms of Asthma) 

अस्थमा का सबसे पहला लक्षण होता है सांस का फूलना। अस्थमा के शुरुआती दौर में मरीज़ की सांस ज्यादा नहीं फूलती लेकिन उसे सूखी खांसी आती है जो लंबे वक्त तक ठीक नहीं होती। इसे कफ़ वैरिएन्ट अस्थमा कहा जाता है। लेकिन असल में दमा रोग तब होता है जब सांस बहुत ज्यादा फूलने लगती है। सीने में ठंडक लगती है और सीटी जैसी आवाज़ निकलने लगती है।इसके अलावा छाती में जकड़नभी महसूस होती है।ये सभी ब्रोन्कओल्सअस्थमा के ख़ास लक्षण होते हैं। 

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अस्थमा होने के क्या हैं कारण? (Causes of Asthma) 

अस्थमा के कारण को समझने से पहले इसके प्रकार को जानना ज़रुरी है। अस्थमा दो तरह का होता है – एलर्जिक अस्थमा और नॉन एलर्जिक अस्थमा। एलर्जिक अस्थमा कम उम्र के लोगों में होता है। यह ज्यादातर 40 साल से कम की उम्र के लोगों में देखने को मिलता है। इस तरह के अस्थमा में परिवार के किसी ना किसी सदस्य को एलर्जी हो सकती है जैसे नाक बहना, दमा, डर्मेटाइटिस आदि। इसके अलावा मौसम बदलने पर भी एलर्जिक अस्थमा के रोगियों को सांस लेने में दिक्कतें हो सकती हैं। होली और दीवाली के वक्त जब मौसम बदल रहा होता है तो उसका प्रभाव एलर्जिक अस्थमा के मरीजों पर पड़ता है। लेकिन साल के बाकी महीनों में उन्हें किसी तरह की कोई परेशानीनहीं होती। यह भी देखा गया है कि एलर्जिक अस्थमा के रोगियों को किसी तरह की एलर्जी ज़रुर होती है।इस तरह के अस्थमा का कोई ना कोई कारण होता है जिससे मरीज़ के फेफड़ों की नलियां एलर्जिक हो जाती हैं। 

इनकी एलर्जी की एक मुख्य वजह है पॉलन्स (Pollens) यानि पराग। जब मरीज़ वातावरण में फैले पॉलन्स के संपर्क में आता है तो उसकी नलियों में एलर्जी हो जाती है। इसके अलावा किसी मरीज़ को फूड एलर्जी भी होती है जो एक आम तरह की एलर्जी है। इसमें रोगी को खाने-पीने की किसी खास चीज़ से एलर्जी हो सकती है। ऐसे में अगर मरीज़ उस खाद्य पदार्थ का सेवन करता है तो उसकी फेफड़े की नलियों में एलर्जी हो जाती है। जानवरों के संपर्क में आने से भी व्यक्ति को एलर्जी हो सकती है। कई लोग पालतु जानवरों को पालते हैं और अगर वे उनके संपर्क में आए तो उन्हें एलर्जी हो सकती है और सांस फूलने लगती है। फूलों के पराग वातावरण में फैलने से भी मरीज़ों को दिक्कतें हो सकती हैं। 

यही नहीं फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों को कैमिकल एलर्जी हो सकती है। कोई धातु जैसे तांबा, पीतल, कांसा वगैरह भी एलर्जी की वजह हो सकते हैं। सोने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले गद्दे या तकिए में से जो धूल के कण निकलते हैं वो भी मरीज़ों को परेशान कर सकते हैं। घरों में भी नमी के कारण फफूंदी हो जाने पर दमा के रोगियों की सांस फूलने लगती है। वातावरण में फैले धूल मिट्टी के कण, धुआं वगैरह से भी एलर्जिक अस्थमा के मरीज़ों की सांस फूलने लगती है।अगर बात करें नॉन एलर्जिक अस्थमा की तो यह 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होता है। इस तरह के अस्थमा में ना तो परिवार के किसी सदस्य को और ना ही खुद मरीज़ को किसी तरह की एलर्जी होती है। मौसम बदलने पर ज़रुरी नहीं कि मरीज़ों पर कोई असर पड़े बल्कि पूरे साल में कभी भी रोगियों को सांस लेने में दिकक्त हो सकती है।  

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डॉक्टर के पास कब जाएं? (When to consult the doctor?) 

अस्थमा के मरीज़ों को उनकी बीमारी के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए क्योंकि अचानक सांस फूलने पर दवाई कितनी मात्रा में लेनी है ये उनको पता होना चाहिए। एलर्जिक अस्थमा के मरीज़ों को मौसम बदलने पर सांस फूलने की दिक्कत होती है और ऐसे में डॉक्टर द्वारा दिए गए रेसक्यू इनहेलर (Rescue Inhaler) के इस्तेमाल से मरीज़ों को तुरंत आराम पहुंचता है। डॉक्टर के पास जाने की ज़रुरत तब पड़ती है जब डॉक्टर की बतायी गयी दवाइयों से मरीज़ को किसी तरह का आराम नहीं मिल रहा हो और साथ ही बहुत ज्यादा खांसी हो रही हो। जब बहुत ज्यादा सांस फूलने लगे, पसीना आए, नब्ज़ डूबने लगे, नाखुन और मुंह नीले पड़ जांए और ऑक्सीजन का सैचुरेशन कम होने लगे तो ऐसे में फौरन डॉक्टर के पास जाना चाहिए। 

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अस्थमा का इलाज (Treatment of Asthma) 

किसी भी तरह की एलर्जी से बचाव करना ही अस्थमा का सबसे कारगर इलाज है यानि एलर्जी वाली चीज़ों से मरीज़ों को दूर रहना चाहिए। लेकिन कुछ एलर्जी ऐसी भी होती है जिससे बचा नहीं जा सकता जैसे वातावरण में फैले हुए पालन्स, धूल के कण आदि। ऐसे में मरीज़ों को दवा लेनी ज़रुरी है। अस्थमा के इलाज के लिए इनहेलर सबसे ज्याद फ़ायदेमंद होता है क्योंकि इसमें दवाइयां सीधे फ़ेफ़ड़ों तक पहुंचती हैं। ये इनहेलर दो तरह के होते हैं। पहला है रेस्कयू इनहेलर (Rescue Inhaler) जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब स्थिति ज्यादा ख़राब हो जाए। दमा के रोगियों को हमेशा अपने साथ रेस्क्यू इनहेलर रखना चाहिए। संकट आने पर कम से कम दो बार पफ लेना चाहिए। 

अगर पफ लेने के बाद भी आराम ना मिले तो 20-20 मिनट के अंतराल पर पफ लेते रहना चाहिए। इस तरह एक घंटे में तीन से चार बार पफ लेने से 90 प्रतिशत मामलों में मरीज़ों को आराम मिल जाता है। साथ ही कुछ दिनों तक इसे बार-बार इस्तेमाल करना चाहिए। दूसरा होता है प्रिवेंटर इनहेलर (Preventer Inhaler) जिसका काम है किसी तरह के संकट को आने से रोकना। इस इनहेलर का उपयोग हमेशा करना चाहिए चाहे कोई संकट हो या ना हो क्योंकि ये फ़ेफ़ड़ों की नलियों को सूजन और सिकुड़ने से बचाता है। इसका उपयोग मरीज़ों को तब तक करना चाहिए जब उन्हें रेस्क्यू इनहेलर की ज़रुरत लंबे वक्त तक ना पड़े।  

क्या है अस्थमा की रोकथाम के लिए डॉक्टर की सलाह? (Doctor’s advice for the prevention of asthma)

किसी भी तरह की एलर्जी से बचना ही अस्थमा से बचने का सबसे आसान और सही उपाय है। दमे के मरीज़ों को किसी तरह के जानवरों को घर पर नहीं रखना चाहिए, सेमल कॉटन कपड़ों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, फूलदार पौधों को घरों में नहीं लगाना चाहिए और वातावरण में फैले धूल-मिट्टी के कण और धुएं से खुद को बचाना चाहिए। साथ ही मौसम बदलने के दौरान सावधान रहना चाहिए। इन छोटी छोटी बातों का ख्याल रखने पर अस्थमा को कंट्रोल किया जा सकता है। 

डिस्क्लेमर –अस्थमा यानि दमा की बीमारी, इसके लक्षण, कारण तथा इलाज पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर डी पी मिश्रा (टीबी एवं चेस्ट स्पेशलिस्ट) द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।  

 Note: This information on Asthma, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr D P Mishra (TB & Chest Specialist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.