पौष्टिक खाना मिलने के बाद भी अगर बच्चों का ठीक तरह से विकास नहीं हो रहा है तो इसकी एक वजह है पेट में कीड़े होना। जानिए क्यों होते हैं पेट में कीड़े और क्या है इसका इलाज डॉक्टर शालिनी त्रिपाठी (बाल रोग विशेषज्ञ) से।  

बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास काफ़ी तेज़ी से होता है। बच्चों की लंबाई और समझ उम्र बढ़ने के साथ-साथ विकसित होती जाती है और इसमें बच्चों को दिया जाने वाला भोजन बहुत ही अहम होता है। लेकिन अक्सर कई माता-पिता ये शिकायत करते हैं कि सभी तरह के पौष्टिक आहार देने के बाद भी उनके बच्चों का शरीर नहीं लगता है। खासकर गांव में रहने वाले बच्चे कुपोषण का शिकार नज़र आते हैं। बच्चों का सही तरह से विकास नहीं होने के पीछे एक बड़ा कारण है उनके पेट में कीड़े होना।

worm infection

क्या हैं पेट में कीड़े होने के लक्षण? (What are the symptoms of worms in the stomach?) 

पेट में कीड़े होने की वजह से बच्चों को अक्सर पेट में दर्द होता है, बच्चे दांतों को पीसते या किटकिटाते हैं और उन्हें बार-बार भूख लगती है। बच्चों का वज़न और उनकी लंबाई उम्र के हिसाब से नहीं बढ़ते हैं साथ ही उनमें तनाव और चिड़चिड़ापन देखा जाता है। कीड़े होने की वजह से बच्चे जो भी खाते हैं उसका मालएब्ज़ॉरप्शन (Malabsorption) हो जाता है यानि भोजन से मिलने वाले तत्व को शरीर नहीं खींच पाता जिससे बच्चों को कोई भी पोषण नहीं मिलता। आगे जाकर बच्चों को कुपोषण भी हो जाता है। यही नहीं कुछ कीड़े आंतों में जाकर खून का रिसाव भी कर देते हैं जिससे बच्चों को एनिमिया यानि खून की कमी हो जाती है।  

kids playing

कैसे होते हैं पेट में कीड़े? (How stomach worms born?)

पेट में कीड़े होने की सबसे बड़ी वजह है साफ़-सफ़ाई का ध्यान ना रखना। कीड़ों के लार्वा या अंडे मिट्टी में फैले होते हैं जो बच्चों के खेलने-कूदने के दौरान उनके नाखुनों पर जम जाते हैं। अगर बच्चे खाने से पहले सही तरह से हाथ ना धोएं तो ये उनके शरीर में चले जाते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चे शौच के लिए बाहर जाते हैं और अगर वे शौच के बाद हाथ अच्छी तरह से ना धोएं तो उन्हें वार्म इंफेक्शन हो जाता है। इसके अलावा पीने के पानी में भी कीड़ों के अंडे हो जाते हैं जिसके कारण ये बीमारी हो सकती है। ये अंडे पेट में जाकर कीड़े बन जाते हैं और बच्चों के विकास को रोक देते हैं। कई बार ये कीड़े दिमाग और फेफड़ों में भी चले जाते हैं जिसे लार्वा माइग्रेंस कहा जाता है। ऐसा होने पर बच्चों को झटके आ सकते हैं और अस्थमा भी हो सकता है। 

stool testing

कैसी होती है जांच और कैसे करें रोकथाम? (How to do test and prevent worms?) 

पेट में कीड़ों का पता लगाने के लिए बच्चों का स्टूल टेस्ट किया जाता है। कीड़े होने से रोकने के लिए बच्चों को साफ़-सफ़ाई और स्वस्थ आदतें सिखानी ज़रुरी है जैसे कि खाने से पहले और शौच के बाद अच्छी तरह से हाथ धोना, नंगे पैर ना रहना, नाखुनों को काटना और साफ़ रखना वगैरह। कृमि से बचाव के लिए केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने नेश्नल डीवर्मिंग डेज़ (National Deworming Days) अभियान शुरु किया है जिसमें उन इलाकों में दवाईयां बांटी जाती हैं जहां इंफेक्शन ज्यादा पाया गया है। इस अभियान के तहत साल में दो बार 1 से लेकर 19 साल तक के बच्चों को घर और स्कूलों में जाकर एलबैन्डाज़ोल (Albendazole) दवाई दी जाती है।  

क्या है इसका इलाज? (What is the treatment?) 

इसके इलाज के लिए सबसे कारगर दवाई एलबैन्डाज़ोल दी जाती है। ध्यान रहे कि ये दवाई छह महीने से कम उम्र के बच्चों को नहीं दी जाती। इसके अलावा 2 साल तक के बच्चों को सिर्फ आधी गोली देनी चाहिए जो 200 मिली ग्राम की होती हैं जबकि 2 साल से बड़े बच्चों को एक पूरी टैबलेट दी जाती है। ये गोली खाना खाने के बाद देनी चाहिए। कभी-कभी इस दवाई से बच्चों को उल्टी या चक्कर आ सकते हैं और ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। इस दवाई का बार-बार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए बल्कि इसे छह महीने के अंतराल के बाद ही दिया जाता है। इसके अलावा कई और दवाईयां भी दी जाती है। दवाई लेने के बाद बच्चों को निजी अंगों में खुजली भी हो सकती है इसलिए बच्चों को खुजली करने से रोकना चाहिए वर्ना कीड़ों के लार्वा फिर से उनके नाखुनों में जम सकते हैं और खाना खाने के दौरान दोबारा पेट में चले जाते हैं।  

washing hand

डॉक्टर की सलाह (Doctor’s advice) 

पेट में कीड़े होने से रोकने का सबसे बढ़िया तरीका है अच्छी आदतों को अपनाना। बच्चों को हाथ धोने की आदत दिलाएं और उनके नाखून काटते रहें, खुले में शौच न कराएं और ना ही बच्चों को नंगे पैर रखें। फल और सब्ज़ियों को अच्छी तरह से धोकर पकाना चाहिए। छह महीने में एक बार एलबैंडाज़ॉल टैबलेट देनी चाहिए और साथ ही समय पर डॉक्टर को दिखाना चाहिए। 

डिस्क्लेमर – पेट में कीड़े होने की बीमारी, इसके लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर शालिनी त्रिपाठी (बाल रोग विशेषज्ञ) द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।    

Note: This information on Worm infection, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Shalini Tripathi (Paediatrician) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.