सिज़ोफ्रेनिया एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति को सोचने-समझने, महसूस करने और व्यवहार करने में परेशानी होती है। सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं डॉक्टर प्रवीन कुमार श्रीवास्तव, मनोचिकित्सक।
- सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण
- सिज़ोफ्रेनिया होने की वजह
- सिज़ोफ्रेनिया के मरीज़ों की परेशानी
- सिज़ोफ्रेनिया का इलाज
सिज़ोफ्रेनिया के बारे में आजकल लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। ये एक मानसिक रोग है जिसमें मरीज़ का व्यवहार दूसरों के साथ सामान्य नहीं होता, ना तो मरीज़ समय पर कुछ सोच पाता है और ना ही महसूस कर पाता है। हालांकि अब तक इस रोग के सटीक कारण का पता नहीं चला है फिर भी काफ़ी हद तक ये पारिवारिक और सामाजिक वजहों से होता है। कुछ मामलों में ये जेनेटिक कारणों से भी होता है। इस बीमारी से पीड़ित लोग समाज से अलग थलग और कटे हुए रहते हैं। पूरी दुनिया में सिज़ोफ्रेनिया के सिर्फ़ एक प्रतिशत मरीज़ ही पाए जाते हैं। हालांकि सुनने में एक प्रतिशत बहुत ही कम लगता है फिर भी विश्व की आबादी के अनुपात में ये संख्या ज्यादा है। ये संख्या भी उन मरीज़ों की है जो अपना इलाज करवाते हैं वर्ना कई लोगों को ख़ुद भी अपनी बीमारी का पता नहीं चलता। ये बीमारी महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में ज्यादा देखने को मिलती है और साथ ही सोलह साल से लेकर पैंतालिस साल के लोग इसका सबसे ज्यादा शिकार होते हैं।
सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण (Symptoms of Schizophrenia in Hindi)
इस बीमारी के लक्षणों को चार भागों में बांटा जाता है – सबसे पहला है सकारात्मक लक्षण यानि पॉज़िटिव सिम्पट्म्स जिसमें मरीज़ को किसी के होने का भ्रम होता है। इसमें रोगी को डरावना साया दिखने का भ्रम होता है। दूसरा है नकारात्मक लक्षण यानि नेगेटिव सिम्पट्म्स और इसे पहचानने के लिए मनोचिकित्सक को दूसरे डॉक्टर से भी सलाह लेनी पड़ती है। तीसरा है संज्ञानात्मक लक्षण जिसे कॉगनिटिव सिम्पट्म्स कहा जाता है जिसमें रोगी की सोचने समझने की ताक़त कम हो जाती है और वो हर चीज़ को नकारात्मक तौर पर लेता है। इसके मरीज़ को ये लगता है कि जो कुछ भी हो रहा है वो ग़लत है। चौथा है इमोश्नल सिम्ट्म्स जिसमें मरीज़ अचानक बहुत दुखी हो जाता है और रोने लगता है। उसके अंदर नकारात्मक विचार आते हैं औऱ गुस्सा भी आता है। इन सभी लक्षणों में से पॉज़िटिव सिम्पट्म्स से इसके मरीज़ों को आसानी से पहचाना जा सकता है। अगर मरीज़ को बार बार ऐसा लग रहा है कि कोई उसका पीछा कर रह है या कुछ दिखने का भ्रम हो रहा है तो मरीज़ का तुरंत इलाज कराए जाने की ज़रूरत है। उम्रदाराज़ लोगों को अक्सर ऐसा लगता है कि उनके सामानों को किसी ने बिगाड़ा है जो कि असल में एक भ्रम होता है लेकिन अगर इस तरह की बात वे बार बार करते हैं तो समझ जाना चाहिए कि उन्हें इलाज की ज़रूरत है। कई बार बच्चे भी अकेले में किसी से बातें करने लगते हैं जो कि सिज़ोफ्रेनिया का ही एक लक्षण है।
सिज़ोफ्रेनिया होने की वजह (Causes Schizophrenia in Hindi)
इस बीमारी की एक वजह है घर में किसी तरह बुरा माहौल होना जिसकी वजह से व्यक्ति के हावभाव, सोच, ज़रूरत में बदलाव आ जाता है और उसे इसका पता भी नहीं चलता। इसके अलावा अगर व्यक्ति के माता-पिता को ये रोग है तो इस बीमारी के होने की संभावना दस प्रतिशत बढ़ जाती है। हमारे दिमाग़ में एक तरह का न्यूरो ट्रांसमीटर मौजूद होता है जिसे डोपामीन कहा जाता है और इनमें किसी तरह का केमिकल इंबैलेंस होने से भी ये रोग हो जाता है। इसके इलाज के लिए डॉक्टर दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं। इसका एक बढ़ता हुआ कारण है किसी तरह के ड्रग्स का इस्तेमाल करना। आज की युवा पीढ़ी अपने परिवार से छुपकर ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं जिसके अपने नुकसान तो हैं ही साथ ही वो इस मानसिक बीमारी की तरफ़ भी बढ़ते चले जाते हैं।
सिज़ोफ्रेनिया के मरीज़ों की परेशानी (Problems of Schizophrenia patients in Hindi)
सिज़ोफ्रेनिया के मरीज़ अपनी परेशानी बताने में झिझकते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि लोग उसकी बातों का मज़ाक उड़ाएंगे और उसपर भरोसा नहीं करेंगे। इसलिए मरीज़ ख़ुद ही सबसे पहले अपनी बीमारी से लड़ने की कोशिश करता है लेकिन जब उससे यह संभल नहीं पाता तो उसकी बीमारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है। जब तक सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण सामान्य होते हैं, मरीज़ को भी उसकी बीमारी का पता नहीं चलता और जब इसके लक्षण बहुत ही ज्यादा ख़राब हो जाते हैं तब तक काफ़ी देर हो जाती है। बहुत ही ख़राब स्थिति में इसके मरीज़ों को आत्महत्या तक का ख़्याल आने लगता है।
सिज़ोफ्रेनिया का इलाज (Treatment of Schizophrenia in Hindi)
इसके इलाज के लिए दवाइयों के साथ साथ पारिवार के सहयोग और क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट की काउंसिलिंग बहुत ज़रूरी है। इसके उपचार के लिए काफ़ी कारगर दवाइयां मौजूद है लेकिन इसके साथ परिवार और दोस्तों का पूरा सहयोग होना उससे भी ज्यादा ज़रूरी है। साथ ही मरीज़ की ख़ुद की इच्छाशक्ति होना भी आवश्यक है। अगर वक्त पर मरीज़ का इलाज कराया जाए तो वो इस बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो सकता है।
डिस्कलेमर – सिज़ोफ्रेनिया बीमारी, इसके लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर प्रवीन कुमार श्रीवास्तव, मनोचिकित्सक द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Schizophrenia, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Praveen Kumar Srivastava (Psychiatrist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.