बच्चों में जन्मजात बहरापन हो सकता है। ऐसा सबसे ज़्यादा जेनेटिक कारणों से ही होता है। क्या इस तरह की अनुवांशिक दिक्कत को होने से रोका जा सकता है, बता रही हैं डॉ श्वेता के महाजन, ईएनटी सर्जन।
कुछ बच्चों में जन्म के साथ ही बहरेपन की शिकायत पाई जाती है। बच्चे के परिवार में अगर किसी को पहले से ही बहरापन है तो वह जेनेटिक हिस्टरी की वजह से बच्चे में भी आ सकता है। इसलिए जन्म के बाद शुरुआती सात दिनों के अंदर बच्चे की सुनने की क्षमता का एक मामूली सा टेस्ट करा लेना बेहतर है। इस आसान से टेस्ट में बच्चे के कानों में एक मशीन लगा दी जाती है और उसके बाद 10 मिनट के अंदर ही उसके सुनने की क्षमता की रिपोर्ट आ जाती है, इस टेस्ट को ऑटो एकॉस्टिक एमीशन कहा जाता है। इस टेस्ट से ये साफ़ हो जाता है कि बच्चे की हियरिंग है या नहीं।
जिन बच्चों का हियरिंग टेस्ट नॉर्मल आता है उन्हें कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं जबकि जिनमें किसी तरह की दिक्कत होती है उन्हें आगे की जांच के लिए सलाह दी जाती है। आगे कई तरह की जांच होने के बाद ही बहरापन होने की पुष्टि हो पाती है। आगे की जांच में न सिर्फ़ इस बात का पता चलता है कि बच्चे में बहरापन है या नहीं बल्कि बहरेपन का कारण और उसके कम या ज़्यादा होने का भी पता चलता है।
अब बात करते हैं इसके इलाज की यानि क्या जन्म के साथ हुए बहरेपन का कोई इलाज है। जी हाँ, मेडिकल साइंस में आजकल बहुत तरह के उपाय मौजूद हैं जैसे की कॉक्लियर इम्प्लांट की सुविधा। बच्चे के बड़े होने के बाद उसमें कॉक्लियर इंप्लांट किया जा सकता है। कॉक्लियर इंप्लांट एक डिवाइस है जो सर्जरी द्वारा बच्चे के कान में लगाई जा सकती है। इस डिवाइस से आवाज़ों को सुनने में मदद मिलती है।
डिसक्लेमर – बच्चों में जन्मजात बहरापन के कारण और इलाज पर लिखा गया यह लेख पूर्णतः डॉ श्वेता के महाजन, ईएनटी सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Hearing Loss in Infant, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Shweta K Mahajan (Gastroenterologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.