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कान में खुजली और दर्द? जानिए इंफेक्शन से बचने के उपाय

Dr Abhishek Bahadur Singh on Fungal Infection in Ears

कानों में खुजली होना, पस निकलना, सुनाई कम देना, दर्द होना जैसे लक्षण फंगल इंफेक्शन के कारण होते हैं। फंगल इन्फेक्शन की समस्या अधिकतर बारिश के मौसम में देखी जाती है। इसकी रोकथाम और इलाज के बारे में बता रहे हैं डॉ अभिषेक बहादुर सिंह। 

फंगल इन्फेक्शन किसे कहते हैं? (What is fungal infection in Hindi)

कान में फंगल इन्फेक्शन होने का मतलब है फफूँद की वजह से होने वाला संक्रमण जिसमें एस्पर्जिलस और कैंडिला नामक फफूँद की प्रजाति अधिकतर देखी जाती है।हालांकि, ये फंगल इन्फेक्शन कानों के म्यूकोज़ा तक ही सीमित रहता है और उससे आगे नहीं बढ़ता। फंगल इन्फेक्शन ज़्यादातर ऐसे मौसम में होता है जब वातावरण में नमी हो यानि गर्म और ह्यूमिड वातावरण में ये ज़्यादा फलता फूलता है। 

फंगल इन्फेक्शन होने के क्या हैं कारण? (Causes fungal infection in ears in Hindi)

कान में किसी तरह के चोट लग जाने पर, गंदे पानी के जमा होने पर और कान के पर्दों में छेद होने पर फंगल इन्फेक्शन हो जाता है। इसके अलावा, जिन लोगों की इम्युनिटी कमज़ोर होती है या जो लोग ऐसी दवाइयों पर निर्भर होते है जिससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही हो तो उनमें भी संक्रमण जल्दी हो जाता है। 

बच्चों में क्यों अधिकतर होती है समस्या? (Why is the problem mostly seen in children in Hindi)

खेलते वक्त बच्चों को चोट लग जाना या फिर कान में कुछ डाल लेना आम बात है। इसके अलावा, नहाते वक़्त भी कान में पानी चला जाता है और उसकी सफ़ाई नहीं हो पाती। बच्चे ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देते जिसके कारण कान में फंगल इन्फेक्शन हो जाता है। 

कानों में संक्रमण के लक्षण (Symptoms of infection in ears in Hindi)

फंगल इंफेक्शन के कारण शुरुआत में कान में खुजली होना जैसी समस्या होती है। इसके अलावा, आगे जाकर कान में दर्द, कान से डिस्चार्ज होना और ब्लॉकेज हो जाने के कारण कम सुनाई देना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। फंगल इंफेक्शन के बढ़ जाने पर ये कान के पर्दे तक को प्रभावित करके उनमें छेद कर सकते हैं। 

क्या कान के पर्दे तक फैल सकता है संक्रमण? (Can infection spread to the eardrum in Hindi)

कान में हुए फंगल इंफेक्शन को अगर शुरुआत में ही नहीं रोका गया तो ये इयर कैनाल से आगे जाकर कान के पर्दों तक भी पहुँच जाता है और उसमें छेद कर सकता है जिसके कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है जिसे कंडक्टिव हियरिंग लॉस कहा जाता है। 

किन लोगों में बढ़ सकती हैं जटिलताएं? (In which type of people can face complications in Hindi)

ऐसे लोग जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो, जिन लोगों पर ट्रांसप्लांट के बाद इम्यूनो सप्रेसिव दवाइयों और स्टीरॉइड्स का इस्तेमाल हो रहा हो या फिर डायबिटीज़ के मरीज़, ऐसे लोगों में फंगल इन्फेक्शन तेज़ी से फैल सकता है। इन सभी तरह के लोगों मेँ यह फंगल इंफेक्शन कान से होता हुआ दिमाग़ तक भी जा सकता है। 

कानों की सफ़ाई और इलाज के तरीक़े (Ear cleaning and treatment methods in Hindi)

कान के फंगल इन्फेक्शन को हटाने के लिए लोकल ट्रीटमेंट किया जाता है जिसमें डॉ औज़ारों की मदद से कानों की सफ़ाई, धुलाई और सक्शन के ज़रिए फ़ंगस को बाहर निकाल लेते हैं। इसके अलावा, एंटी फंगल इयर ड्रॉप्स दिए जाते हैं जिसे दिन में तीन से चार बार लगभग 15 दिनों तक इस्तेमाल करना होता है। इस दौरान डॉ बीच-बीच में मरीज़ के कानों को ऑटस्कोप से चेक करके ये सुनिश्चित करते हैं कि कहीं कान में फ़ंगस का कोई तत्व तो बाकी नहीं रह गया। इसके अलावा, डॉक्टर इस बात पर भी ध्यान देते हैं कि क्या व्यक्ति को किसी तरह की  इम्यूनो सप्रेसिव दवाइयां और स्टीरॉइड्स दी जा रहीं हैं जिससे उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई हो। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए डॉक्टर की सलाह से उसकी दवाइयों को मॉडिफाई भी किया जाता है। 

कानों में फंगल इन्फेक्शन रोकने के उपाय (Prevention of Fungal Infection in Hindi)

कान में फंगल इंफेक्शन न हो इसके लिए किसी तरह की चोट लगने से बचाएं और साथ ही गंदा पानी इकट्ठा न होने दें। कानों को नियमित तौर पर साफ़ करते रहें। किसी भी तरह के लक्षण दिखने पर डॉक्टर के पास जाएं। 

डिस्क्लेमर – कानों में फंगल इंफेक्शन होने के कारण, लक्षण और बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णतः डॉ अभिषेक बहादुर सिंह, ईएनटी सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है। 

Note: This information on Fungal Infection in Ears, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Abhishek Bahadur Singh (ENT Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.

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