ख़ून में किसी तरह की गड़बड़ी यानि डिस्ऑर्डर होने को थैलेसीमिया कहा जाता है जो कि एक अनुवांशिक बीमारी होती है। जानिए इसके लक्षण, कारण और इलाज के बारे में डॉक्टर मालविका मिश्रा, स्त्री रोग विशेषज्ञ से।
- थैलेसीमिया का गर्भावस्था पर क्या असर पड़ता है?
- बच्चों में थैलेसीमिया के लक्षण
- थैलेसीमिया का कारण
- थैलेसीमिया का परीक्षण
- थैलेसीमिया होने पर गर्भवती महिला को क्या करना चाहिए?
- कैसे पता करें कि अजन्मे शिशु को थैलेसीमिया है?
- कैसे होता है थैलेसीमिया का इलाज?
- थैलेसीमिया से बचाव और डॉक्टर की सलाह
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है जो माता-पिता से बच्चे में जा सकती है। इस बीमारी में ख़ून में मौजूद हीमोग्लोबीन में विकृति आ जाती है जिसकी वजह से ख़ून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है। थैलीसीमिया रोग बहुत ही ख़तरनाक साबित हो सकता है अगर ये गड़बड़ी माता-पिता दोनों से ही बच्चे में जाती है।
थैलेसीमिया का गर्भावस्था पर क्या असर पड़ता है? (How does thalassemia affect pregnancy in Hindi)
थैलेसीमिया के कारण गर्भावस्था के दौरान महिला को एनिमिया हो सकता है जिसकी वजह से ब्लड ट्रांसफ्यूज़न करना पड़ सकता है। यही नहीं, थैलेसीमिया होने पर समय से पहले ही बच्चे का जन्म हो सकता है जो अपने आप में ही कई तरह की जटिलताएं लेकर आता है और इससे बच्चे के फेफड़ों पर भी असर पड़ता है।
बच्चों में थैलेसीमिया के लक्षण (Symptoms of thalassemia in children in Hindi)
इसके लक्षणों की बात करें तो थैलेसीमिया के कारण बच्चे का सही तरह से शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता है जैसा कि आम बच्चों का होता है। थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चे की डाइट कम रहती है और वज़न कम होता है। इसके अलावा बच्चे को जल्दी जल्दी बुखार आता है, बच्चे में चिड़चिड़ापन और उदासी दिखती है। कभी कभी बच्चे का पेट फूला रहता है और उसकी त्वचा सफ़ेद दिखती है जिससे यह पता चलता है कि उसे एनिमिया है। इन सभी के अलावा बच्चे को डायरिया भी हो सकता है।
थैलेसीमिया का कारण (Causes of thalassemia in Hindi)
थैलेसीमिया अनुवांशिक कारणों से ही होता है जब डीएनए में किसी प्रकार का म्यूटेशन होने से ख़ून में मौजूद हीमोग्लोबीन में गड़बड़ी आ जाती है। इस गड़बड़ी के कारण ख़ून के ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है जिससे ये एक प्रकार से एनिमिया की तरह हो जाता है। अगर माता-पिता में से किसी एक से बच्चे में ये बीमारी जाती है तो घबराने वाली बात नहीं होती क्योंकि बच्चा भी इसका केवल एक केरियर बनता है लेकिन यदि बच्चे में माता-पिता दोनों से ये बीमारी हो रही है, तो फिर ये एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आती है।
थैलेसीमिया का परीक्षण (Tests of thalassemia in Hindi)
गर्भावस्था के दौरान कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं जिनमें से थैलेसीमिया का परीक्षण भी करा लेना चाहिए। अगर गर्भवती महिला को थैलेसीमिया है तो फिर पिता का भी ब्लड टेस्ट करके इस बात की पुष्टि की जाती है कि उसे थैलेसीमिया है या नहीं। यदि माता-पिता में से केवल एक को ही थैलेसीमिया हो तो ऐसे में घबराने की कोई ज़रूरत नहीं होती। गर्भावस्था के दौरान थैलेसीमिया का टेस्ट ज़रूर कराना चाहिए जिससे की थैलेसीमिया जैसे रोग से होने वाले बच्चे को बचाया जा सके।
थैलेसीमिया होने पर गर्भवती महिला को क्या करना चाहिए? (What should a pregnant woman do when she has thalassemia in Hindi)
अगर गर्भवती महिला को थैलेसीमिया है, तो ये बात अपने डॉक्टर को बताना ज़रूरी है ताकि महिला के पति का ब्लड टेस्ट करके ये पता लगाया जा सके कि उसे भी थैलेसीमिया है या नहीं। अगर यह बीमारी पति को भी है, तो किसी हीमोटॉलॉजिस्ट को दिखाना आवश्यक है। थैलेसीमिया की वजह से गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान एनिमिया की भी शिकायत रहती है। हालांकि, इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है लेकिन समय समय पर अपने हीमोग्लोबीन की जांच कराते रहें और ये ध्यान रखें कि ख़ून में हीमोग्लोबीन की मात्रा कम ना हो।
कैसे पता करें कि अजन्मे शिशु को थैलेसीमिया है? (How to know if an unborn child has thalassemia in Hindi)
यदि माता-पिता दोनों का ही थैलेसीमिया टेस्ट पॉज़िटिव हो, तो बच्चे में भी थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना रहती है। गर्भावस्था के शुरूआती दस से बीस हफ्तों में कुछ टेस्ट करके ये पता लगाया जा सकता है कि बच्चे को थैलेसीमिया है या नहीं जबकि गर्भावस्था के एडवांस स्टेज पर टेस्ट नहीं किया जाता और ऐसे में डिलीवरी तक का इंतज़ार करना पड़ता है। यदि गर्भावस्था के शुरूआती हफ्तों में ही माता-पिता का टेस्ट करा लिया जाए, तो बच्चे की भी जांच फीटल मेडीसिन के डॉक्टर से करायी जा सकती है जिससे उसमें थैलेसीमिया की पुष्टि की जा सके।
कैसे होता है थैलेसीमिया का इलाज? (How is thalassemia treated in Hindi)
थैलेसीमिया के इलाज में अधिकत्तर मरीज़ का ब्लड ट्रांस्फ्यूज़न किया जाता है। कुछ मामलों में ब्लड ट्रांस्फ्यूज़न हर हफ्ते भी करना पड़ सकता है। ऐसे में शरीर में आयरन की मात्रा काफ़ी बढ़ जाती है जिससे शरीर के अंगों को नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए इसकी मात्रा कम करने के लिए भी दवाइयां देनी पड़ती है। कुछ गंभीर मामलों में स्टेम सेल थेरेपी और बोन मैरो ट्रांस्पलांट की जाती है जो काफ़ी फ़ायदेमंद साबित होती है।
थैलेसीमिया से बचाव और डॉक्टर की सलाह (Prevention of thalassemia and doctor’s advice in Hindi)
लोगों को थैलेसीमिया रोग के बारे में जागरूक करना बहुत ज़रूरी है। गर्भवस्था के दौरान बच्चे के माता-पिता को डॉक्टर से सलाह लेकर अपने ख़ून की जांच करा लेनी चाहिए ताकि उनके जीन्स में किसी तरह की गड़बड़ी होने का पता लगाया जा सके। थैलेसीमिया जेनेटिक कारणों से होने वाली बीमारी है इसलिए इसे रोका नहीं जा सकता है लेकिन समय से पता लगाकर होने वाले बच्चे को इस रोग से बचाया जा सकता है, इसलिए, ज़रूरी ये है कि प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले या प्रेगनेंसी के शुरूआती हफ्तों में जांच करा कर इसका पता लगा लिया जाए।
डिस्कलेमर – थैलेसीमिया रोग के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर मालविका मिश्रा, स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Thalassemia, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Malvika Mishra (Obstetrician/Gynecologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.