डायबिटीज़ एक ऐसा रोग है जिसके मरीज़ भारत में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस बीमारी की वजह से लोगों को अपनी डाइट पर नियंत्रण रखने के साथ ही नियमित तौर पर दवाइयां लेनी पड़ती हैं। क्या डायबिटीज़ रिवर्सिबल है, क्या इसे पूरी तरह से ख़त्म किया जा सकता है, क्या है शरीर में शुगर बढ़ने का कारण और कैसे होता है इसका इलाज, बता रही हैं डॉ मोनिका खन्ना, डायबिटीज़ एंड हार्ट स्पेश्लिस्ट।
- डायबिटीज़ किसे कहते हैं?
- क्या हैं मधुमेह रोग के कारण?
- कितने तरह का होता है डायबिटीज़?
- क्या हैं मधुमेह रोग के लक्षण?
- कैसे होता है डायबिटीज़ का इलाज?
- क्या इंसुलिन का कोई साइड इफेक्ट है?
- डायबिटीज़ होने से कैसे बचें?
- डायबिटीज़ को कंट्रोल में कैसे रखें?
डायबिटीज़ किसे कहते हैं? (What is Diabetes in Hindi)
डायबिटीज़ रोग तब होता है जब ख़ून में शुगर की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है। सामन्य तौर पर खाली पेट में शुगर की वेल्यू 70 से 110 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर और खाने के दो घंटे बाद 120 से 140 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर होनी चाहिए। जब इसका स्तर इस मानक से उपर चला जाता है तो मरीज़ को डायबिटिक कहा जाता है। हालांकि, सिर्फ़ शुगर की एक वेल्यू से नहीं बल्कि तीन वेल्यू मिलने पर डायबिटीज़ की पुष्टि की जाती है। इसके अलावा मरीज़ का HbA1c टेस्ट भी किया जाता है जिससे उसके ख़ून में पिछले तीन महीने के शुगर लेवल का पता चल जाता है।
क्या हैं मधुमेह रोग के कारण? (Causes of diabetes in Hindi)
इसके बहुत से कारण हैं जिसमें इंसुलिन का ना बनना या फिर इंसुलिन बनने के बावजूद उसका सही से प्रयोग ना हो पाना शामिल हैं। दरअसल, हमारे शरीर में पैनक्रियाज़ यानि अग्नाशय से एक तरह का हॉरमोन निकलता है जिसे इंसुलिन कहा जाता है। इंसुलिन का काम होता है रक्त में मौजूद ग्लूकोज़ को कोशिकाओं द्वारा लेने में मदद करना और इसी ग्लूकोज़ को कोशिकाएं एनर्जी में तब्दील कर देती हैं। लेकिन जब किसी वजह से सही मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता या फिर उसका सही से इस्तेमाल नहीं होता तो ये कोशिकाएं ग्लूकोज़ को एनर्जी में नहीं बदल पातीं। कई मरीज़ जिनमें मोटापा बहुत ज्यादा होता है और जो शारीरिक क्रियाएं नहीं करते उनमें इंसुलिन बनने के बावजूद भी सही से इस्तेमाल नहीं हो पाता। कई मामलों में डायबिटीज़ जेनेटिक भी होता है। जिन लोगों में डायबिटीज़ शुरूआती स्टेज पर होता है और अगर ऐसे में वों मीठा खाते हैं तो वे डायबिटीज़ की तरफ़ चले जाते हैं।
कितने तरह का होता है डायबिटीज़? (Types of diabetes in Hindi)
डायबिटीज़ मुख्य तौर पर तीन तरह के होते हैं – टाइप 1, टाइप 2 और जेस्टेश्नल डायबिटीज़ (Gestational Diabetes) यानि गर्भावस्था के समय महिलाओं को होने वाली डायबिटीज़। टाइप 1 डायबिटीज़ को इंसुलिन डिपेनडेंट डायबिटीज़ माइलाइटिस (Insulin Dependent Diabetes Mellitus) कहा जाता है जो अधिकत्तर बच्चों में देखने को मिलती है और इसमें मरीज़ को शुरूआत से ही इंसुलिन लेने की ज़रूरत पड़ जाती है। इसमें मरीज़ का मुंह सूखना, बार बार पेशाब लगना और वज़न कम होना जैसे लक्षण दिखायी देते हैं। वहीं टाइप 2 डायबिटीज़ की बात करें तो ये बड़ों में होता है जिसका पता मरीज़ों को ब्लड टेस्ट द्वारा होता है। टाइप 2 डायबिटीज़ या तो जेनेटिक कारणों से होता है या फिर सुस्त जीवनशैली से जिसमें लोगों की शारीरिक क्रियाएं बिल्कुल कम होती हैँ। इसके अलावा, जेस्टेश्नल डायबिटीज़ में महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज़ हो जाता है। दरअसल, इस दौरान गर्भ में पल रहे शिशु के कारण शरीर में कुछ हॉरमोन्स निकलते हैं जो इंसुलिन के विपरीत काम करते हैं। इसके अलावा बच्चे को भी एनर्जी की ज़रूरत पड़ती है और इंसुलिन की डिमांड बढ़ जाती और उतनी मात्रा में इंसुलिन ना बनने पर ख़ून में ग्लूकोज़ बढ़ जाता है। हालांकि, ज्यादातर मामलों में डिलीवरी के बाद इस तरह की डायबिटीज़ अपने आप ख़त्म हो जाती है।
क्या हैं मधुमेह रोग के लक्षण? (Symptoms of diabetes in Hindi)
बहुत ज्यादा भूख और प्यास लगना, बार बार पेशाब आना, वज़न कम होना, थकावट होना, चोट लग जाने पर जल्द ठीक ना होना इसके कुछ ख़ास लक्षण हैं। लेकिन कई मामलों में मरीज़ के अंदर कोई भी लक्षण नहीं दिखते जबकि उन्हें डायबिटीज़ होता है इसलिए सभी को साल में कम से कम एक बार अपना रूटीन चेकअप कराते रहना चाहिए।
कैसे होता है डायबिटीज़ का इलाज? (Treatment of Diabetes in Hindi)
डायबिटीज़ का इलाज ओरल दवाइयों के अलावा इंसुलिन से भी होता है। बहुत ज्यादा गंभीर मामलों में इसके लिए पैन्क्रियाटिक ट्रांस्पलांटेशन भी किया जाता है। खाने के लिए जो दवाइयां दी जाती हैं वो बहुत ही कारगर होती हैं। इसके अलावा कई तरह के इंसुलिन भी उपलब्ध हैं जो पूरे चौबीस घंटे काम करते हैं। कुछ इंजेक्शन ऐसे हैं जिन्हें हफ्ते में एक ही बार लगाने की ज़रूरत पड़ती है।
क्या इंसुलिन का कोई साइड इफेक्ट है? (Are there any side effects of insulin in Hindi)
डायबिटीज़ के इलाज में इंसुलिन बहुत ही कारगर उपाय है लेकिन आम लोगों में इसको लेकर कई तरह की ग़लत धारणाएं बनी हुई हैं जबकि ये सबसे अच्छा इलाज है क्योंकि शरीर में जिस चीज़ का निर्माण नहीं हो पा रहा है उसे बाहर से दिया जाता है। ज्यादातर लोग सूई लगाने से डरते हैं और ये सोचते हैं कि इसे लेने से जीवन भर लेने की आवश्यकता पड़ेगी जबकि ऐसा नहीं है। सबसे अच्छी बात ये है कि इंसुलिन का कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है। आजकल इंसुलिन थेरेपी में बहुत ज्यादा बदलाव आ गया है। इसकी सूई इतनी पतली होती है कि मरीज़ को पता भी नहीं चलता है। अगर शुरूआत में ही मरीज़ का शुगर लेवल बढ़ जाता है तो इंसुलिन के ज़रिए इसे बहुत अच्छी तरह से कंट्रोल किया जा सकता है।
डायबिटीज़ होने से कैसे बचें? (Ways to Prevent Diabetes in Hindi)
इससे बचाव के लिए जीवनशैली में बदलाव लाना सबसे ज़रूरी है। हर रोज़ कम से कम आधे घंटे से पैंतालीस मिनट तक किसी ना किसी तरह का व्यायाम ज़रूर करें। इसके अलावा, वज़न बढ़ने से रोकें और हेल्दी डाइट को अपनाएं, साथ ही तनाव को मैनेज करने की कोशिश करें।
डायबिटीज़ को कंट्रोल में कैसे रखें? (How to keep diabetes under control in Hindi)
डायबिटीज़ को कंट्रोल करने के लिए तीन तरीक़े हैं जिसमें मरीज़ का आहार सही होना चाहिए, उन्हें शारीरिक क्रियाएं करनी चाहिए और दवाइयों का नियमित तौर पर सेवन करना चाहिए। इन तीनों की मदद से ही एक व्यक्ति डायबिटीज़ को नियंत्रित करके रख सकता है।
डिस्कलेमर – डायबिटीज़ होने के कारण, लक्षण, बचाव और इलाज पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर मोनिका खन्ना, डायबिटीज़ एंड हार्ट स्पेश्लिस्ट द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
This information on Diabetes, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Monica Khanna (Diabetes & Heart Specialist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.