इन्फ्लूएंज़ा, जिसे आम भाषा में फ्लू या कॉमन कोल्ड कहा जाता है, वायरस के कारण होने वाली बीमारी है। इन्फ्लूएंज़ा नामक वायरस श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से को प्रभावित करता है। यह वायरस समय समय पर अपने डीएनए में बदलाव करता रहता है इसलिए हर साल इसके टीके बनाएँ और लगाए जाते हैं। इन्फ्लूएंज़ा के बारे में अधिक जानकारी दे रहे हैं डॉ एन बी सिंह।
- इन्फ्लूएंज़ा क्या होता है?
- कैसे फैलता है इन्फ्लूएंज़ा?
- क्या हैं इन्फ्लूएंज़ा के लक्षण?
- भारत में कब आता है इन्फ्लूएंज़ा का पीक?
- किस उम्र के लोगों में रिस्क अधिक होता है?
- इन्फ्लूएंज़ा से बचाव के लिए वैक्सीन ज़रूरी
- इन्फ्लूएंज़ा होने पर कैसे होता है इलाज?
- कोरोना काल में कैसे करें बचाव?
इन्फ्लूएंज़ा क्या होता है? (What is influenza in Hindi)
इन्फ्लूएंज़ा, वायरस के कारण होने वाला रोग है जो इन्फ्लूएंजा नाम के वायरस के कारण होता है। ये वायरस सैकड़ों प्रकार के पाए जाते हैं और समय समय पर अपने डीएनए और आरएनए में बदलाव करके अपने स्ट्रेन को बदल देते हैं। इसलिए, हर साल अमेरिका की स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी यानि सेंटर फॉर प्रिवेंशन एंड डिज़ीज़ कंट्रोल द्वारा जनवरी से मार्च महीने के बीच इसके जेनेटिक स्ट्रक्चर का पता लगाकर उसी अनुसार वैक्सीन बनाई जाती है।
कैसे फैलता है इन्फ्लूएंज़ा? (How does Influenza spread in Hindi)
इन्फ्लूएंज़ा के वायरस दो तरीक़ों से फैलते हैं जिनमें से एक है हवा के ज़रिए और दूसरा ड्रॉपलेट के माध्यम से। जब इन्फ्लूएंजा से संक्रमित व्यक्ति छींकता या खांसता है तो उसके ड्रॉप्लेट्स हवा में लगभग एक से डेढ़ मीटर तक फैल जाते हैं और जमीन पर गिरने से पहले ये 3-4 घंटे तक हवा में ही तैरते रहते हैं। सांस लेने के दौरान जब ये ड्रॉप्लेट्स किसी सवस्थ व्यक्ति के अंदर जाते हैं तो वह व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है। इसके अलावा, खांसने और छींकने पर बहुत छोटी बूंदें हवा के माध्यम से काफ़ी देर तक वातावरण में तैरती रहती हैं जिसे एयरोसोल कहा जाता है और यह भी संक्रमण का मुख्य कारण बनती हैं। इसलिए, ज़रूरी है कि खांसते और छींकते समय मुँह पर रुमाल जरूर रखें और मास्क पहनें।
क्या हैं इन्फ्लूएंज़ा के लक्षण? (Symptoms of influenza in Hindi)
इन्फ्लूएंज़ा के लक्षण बड़े और बच्चों में थोड़े अलग होते हैं। छोटे बच्चों की बात की जाए तो नाक बहना, सूखी खाँसी, हल्का बुखार और भूख न लगना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं जबकि बड़ों में नाक तो नहीं बहती लेकिन गले में खराश, बुखार, सांस फूलना जैसी समस्याएं देखी जाती हैं। सांस फूलने की समस्या अधिकतर उन लोगों में देखी जाती है जो ब्रोंकाइल अस्थमा या सीओपीडी के मरीज़ होते हैं।
भारत में कब आता है इन्फ्लूएंज़ा का पीक? (Influenza peak time in India in Hindi)
इन्फ्लूएंज़ा एक आरएनए वायरस है और भारत में साल में दो बार इसका पीक आता है। पहला पीक जून से लेकर सितम्बर महीने तक और दूसरा पीक दिसंबर से लेकर फरवरी माह तक होता है।
किस उम्र के लोगों में रिस्क अधिक होता है? (Which age group people are more at risk in Hindi)
वैसे तो 10 साल से कम उम्र के बच्चों और 60 साल से अधिक उम्र के लोग अधिक रिस्क पर होते हैं लेकिन जिन लोगों को ब्रोंकाइल अस्थमा, निमोनिया सीओपीडी जैसी फेफड़ों से जुड़ी बीमारी होती है उनमें भी इन्फ्लूएंज़ा होने का ख़तरा बना रहता है चाहे वो जिस उम्र के भी हों। इसके अलावा, ऐसे लोग जिनकी इम्युनिटी कमज़ोर होती है या फिर ऐसे लोग जो गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं, उन्हें भी आसानी से फ्लू हो जाता है।
इन्फ्लूएंज़ा से बचाव के लिए वैक्सीन ज़रूरी (Vaccine necessary to prevent influenza in Hindi)
इन्फ्लूएंज़ा से बचाव का सबसे प्रभावशाली तरीक़ा है वैक्सीनेशन। क्योंकि इन्फ्लूएंज़ा का वायरस हर साल अपने आप में बदलाव कर लेता है इसलिए, हर साल इसके टीके में भी बदलाव किया जाता है। भारत में यह टीका मई से जुलाई माह तक उपलब्ध हो जाता है।
इन्फ्लूएंज़ा होने पर कैसे होता है इलाज? (How is influenza treated in Hindi)
इन्फ्लूएंज़ा का इलाज सिमटोमैटिक होता है यानि मरीज़ में होने वाले लक्षणों के अनुसार ही इलाज किया जाता है। अगर मरीज़ को बुखार के साथ ही शरीर में दर्द हो तो क्रोसिन और पैरासिटामॉल जैसी दवाइयां दी जाती हैं। अगर यह फ्लू चार से पांच दिनों तक ही रहता है तो ऐसे में एंटीबायोटिक देने की कोई आवश्यकता नहीं होती लेकिन इससे ज्यादा समय तक फ्लू होने पर एंटीबायोटिक दवाइयां भी दी जाती हैं। इसके साथ ही मरीज़ को इसमें ज़्यादा से ज़्यादा आराम करने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर यह फ्लू एक हफ्ते तक बना रह सकता है लेकिन अगर यह गंभीर हो जाए इसमें मरीज़ को बुखार के साथ ही शरीर और सिर में तेज़ दर्द, गले में ख़राश, सांस फूलना और भूख न लगना जैसी तकलीफ़ें होने लगती हैं। डॉक्टर की मानें तो ये एक सामान्य सी बीमारी है लेकिन अधिक रिस्क वाले लोगों के लिए यह एक बड़ी समस्या बन सकती हैं इसलिए साल में एक बार वैक्सीनेशन ज़रूर कराएं।
कोरोना काल में कैसे करें बचाव? (How to prevent during the COVID period in Hindi)
कोरोना की तीसरी लहर आने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में सभी लोग कोविड एप्रोप्रिएट बिहेव्यर का कड़ाई से पालन करते रहें। मास्क अवश्य लगाएं, भीड़भाड़ वाली जगहों से बचें और सैनिटाइजेशन करते रहें। इसके अलावा, भारत में उपलब्ध वैक्सीन जल्द से जल्द लगवा लें।
डिस्क्लेमर- इन्फ्लूएंज़ा से बचाव के तरीक़े, इसके लक्षण, कारण तथा इलाज पर लिखा गया यह लेख पूर्णतः डॉ एन बी सिंह, सीनियर मेडिसिन स्पेशलिस्ट द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।