बच्चे के पैदा होने के बाद उनके अंदर प्रतिरोधक क्षमता का विकास होने में समय लगता है। ऐसे में किसी भी तरह के इंफेक्शन से उन्हें बचाने के लिए ख़ास तौर पर ख़्याल रखना बहुत ही ज़रूरी है। आइए जानते हैं डॉक्टर सितिकांत मोहपात्रा, बाल रोग विशेषज्ञ से कि नवजात शिशु की देखभाल किस तरह से करनी चाहिए।
- स्तनपान कराना क्यों है ज़रूरी?
- मां का दूध कब तक पिलाना चाहिए?
- मां के दूध के साथ कौन से आहार देने चाहिए?
- क्या है नवजात शिशु की स्वास्थ्य समस्याएं?
- बच्चे को कौन सा टीका कब लगवाना चाहिए?
- किन बातों का रखना है ख्याल?
- शिशु को संक्रमण से बचाएं
बच्चे के जन्म के बाद उन्हें दूध पिलाने से लेकर टीके लगवाने और साफ़ सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। नवजात शिशु अपने भरण पोषण के लिए शुरू में केवल मां के दूध पर ही निर्भर करते हैं इसलिए मां का दूध प्राकृतिक तौर पर बच्चे के लिए सबसे ज्यादा फ़ायदेमंद होता है।
स्तनपान कराना क्यों है ज़रूरी? (Why is breastfeeding necessary in Hindi)
मां के दूध में शुरूआत और बाद में अंतर होता है। शुरूआत के दूध में इम्यूनोग्लोबिन और एंटी बॉडीज़ काफ़ी अधिक मात्रा में होते हैं जो बच्चे को किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ने की क्षमता देते हैं। वहीं कुछ महीनों बाद मिलने वाले दूध में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट्स का अनुपात बदलता है जो बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी होता है। साथ ही इसमें विटामिन और मिनरल्स भी कुदरती तौर पर मौजूद होता है। मां का दूध आसानी से पच जाता है जिससे बच्चे को किसी तरह की पेट की समस्या नहीं होती। बच्चे को कम से कम 8 से दस मिनट तक दूध पिलाना चाहिए ताकि वो दो-तीन घंटे तक लगातार सो पाए। आमतौर पर एक बच्चा दिनभर में 18 घंटे सोता है जो उसके विकास के लिए अच्छा होता है। यह भी देखा गया है कि जो बच्चे कम से कम छह महीने तक मां का दूध पीते हैं, उन्हें आगे जाकर गंभीर किस्म की बीमारियां नहीं होती हैं। इन सभी फ़ायदों के अलावा जब एक मां अपने बच्चे को दूध पिलाती है तो उनके बीच एक प्रकार की बॉन्डिंग भी बन जाती है जो बच्चे के मानसिक विकास में मदद करता है।
मां का दूध कब तक पिलाना चाहिए? (How long mother should feed the child in Hindi)
छह महीने तक बच्चा पूरी तरह से मां के दूध पर ही निर्भर करता है और ये उसके लिए फ़ायदेमंद भी होता है लेकिन छह महीने के बाद उसका विकास केवल दूध से ही नहीं हो पाता इसलिए दूसरे प्रकार के आहार को शुरू करने की सलाह दी जाती है जिसे वीनिंग (Weaning) कहा जाता है। बच्चे का ये वीनिंग पीरियड लगभग एक से डेढ़ साल तक चलता है जिसमें वह घर में बनने वाली चीज़ें खाना सीख जाता है। इस बीच बच्चे में कई तरह के विकास देखे जाते हैं जैसे कि दांतों का निकलना। जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनके आहार तरल से बदलकर थोड़े मोटे होते जाते हैं। हालांकि गले में अटकने वाली चीज़ें खिलाने से बचना चाहिए।
मां के दूध के साथ कौन से आहार देने चाहिए? (What kind of food should be given along with mother’s milk in Hindi)
मां के दूध के साथ बच्चे को हर वो चीज़ दे सकते हैं जो आप उसे खिलाना चाहते हैं और जो उसके लिए फ़ायदेमंद हो। केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे का भोजन शुरू में पतला हो और धीरे धीरे करके उसे गाढ़ा बनाते चले जाएं। बच्चे को खिचड़ी, दलिया, खीर, दाल, चावल वगैरह खिला सकते हैं। फलों और सब्ज़ियों को अच्छी तरह मसल कर उन्हें दे सकते हैं। इसके साथ मां का दूध भी पिलाते रहें, जैसे जैसे दूसरे खाने के पदार्थ की मात्रा बढ़ती जाती है, मां का दूध कम होता जाता है। प्रोटीन की पूर्ति के लिए दाल, राजमा, चना वगैरह को भोजन में शामिल करें। कुछ बच्चों को नट्स और अंडों से एलर्जी होती है इसलिए अगर इन्हें खाने पर किसी तरह के लक्षण दिखें, तो डॉक्टर को दिखाएं। बच्चों को प्राकृतिक भोजन ही खिलाने पर ज़ोर दे, उन्हें घर पर बना खाना खिलाएं और बाहर के खाने से दूर रखें।
क्या है नवजात शिशु की स्वास्थ्य समस्याएं? (What is the health problems related to infants in Hindi)
यदि बच्चा स्वस्थ पैदा होता है तो जन्म के बाद बच्चों में कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जिनसे घबराने की ज़रूरत नहीं होती जैसे कि दूध की उल्टी करना, पेट का फूलना, बच्चे का रोना, बार बार पोट्टी होना वगैरह क्योंकि ये सभी वक्त के साथ अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। हालांकि अगर ये ज्यादा समय तक बने रहें, तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। जन्म के बाद लगभग सभी बच्चों में फिज़ियोलॉजिकल जॉन्डिस पाया जाता है जो जन्म के दूसरे दिन से शुरू होकर एक हफ्ते तक बना रहता है लेकिन अगर शरीर तेज़ी से पीला पड़ने लगे तो इलाज की ज़रूरत पड़ती है। इसके अलावा बच्चे को किसी तरह के इंफेक्शन से बचाना ज़रूरी है। अगर बच्चे को शौच पतला हो, बच्चा सुस्त रहने लगे, बहुत ज्यादा रोने लगे, पसली तेज़ चलने लगे, तो ये सभी इंफेक्शन के लक्षण हो सकते हैं इसलिए ऐसे किसी भी लक्षण के दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
बच्चे को कौन सा टीका कब लगवाना चाहिए? (What is the right time for immunization in Hindi)
गर्भावस्था के आख़िरी तीन महीने में बच्चे को मां से बहुत सारे एंटी बॉडीज़ मिलते हैं जो धीरे धीरे कम होते जाते हैं इसलिए बच्चों का टीकाकरण बहुत ज़रूरी है ताकि वह आने वाली बीमारियों से लड़ सके। जन्म के बाद बच्चों को पहला टीका बीसीजी (BCG) और हैपेटाइटिस बी का लगता है जिसके साथ पोलियो की ख़ुराक भी पिलायी जाती है। इसके बाद डिप्थीरिया, टेटनस के टीके लगाए जाते हैं। निमोनिया और मेनिनजॉइटिस से रोकथाम के लिए न्यूमोकोक्कल वैक्सीन और डायरिया से बचाने के लिए रोटा वायरस के टीके लगाए जाते हैं। अगले छह महीने में रूबेला, टाइफाइड, मम्स, वैरीसिला, हैपिटाइटिस ए आदि बीमारियों से बचाव के लिए टीके लगाए जाते हैं।
किन बातों का रखना है ख्याल? (What should be kept in mind while taking care of baby in Hindi)
इस बात का ख़्याल रखें कि बच्चे का शरीर हमेशा हल्का गर्म महसूस हो इसलिए उसके कमरे का तापमान बहुत ज्यादा ठंडा ना रखें। बच्चे का शरीर ठंडा होने से उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। घर पर हमेशा थर्मामीटर रखें और बच्चे को बुखार आने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। बच्चों की मालिश किसी भी तेल से कर सकते हैं लेकिन सरसों के तेल से ना करें क्योंकि इससे दानें निकल सकते हैं। नारियल का तेल त्वचा के लिए बहुत ही अच्छा होता है इसलिए उससे मालिश कर सकते हैं। मालिश करने के बाद शरीर को गीले कपड़े से पोछ दें क्योंकि तेल लगे शरीर पर गंदगी चिपक जाती है। बाहर के तापमान को ध्यान में रखकर उन्हें नहलाना चाहिए। बच्चे से बॉन्डिंग बनाने के लिए सीने से चिपका कर देर तक बैठना चाहिए क्योंकि इससे उनके ब्रेन की डेवलपमेंट होती है।
शिशु को संक्रमण से बचाएं (Protect the child from infections in Hindi)
बच्चों में बहुत जल्दी संक्रमण हो सकता है ख़ासकर बोतल से दूध पीने वाले बच्चों में इंफेक्शन का ख़तरा बना रहता है। फेफड़ों में संक्रमण होने से निमोनिया, आंतों में संक्रमण होने पर डायरिया जैसी समस्या हो जाती है। इसके अलावा ख़ून और यूरीन में भी इंफेक्शन हो सकता है। इसलिए किसी भी तरह के लक्षण दिखने पर बच्चे को डॉक्टर के पास ज़रूर ले जाएं और उचित इलाज कराएं।
डिस्कलेमर – नवजात शिशु को होने वाली समस्याएं, उनकी देखभाल और टीकाकरण पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर सितिकांत मोहापात्रा, बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on How to Take Care of Newborn Baby, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Sitikant Mohapatra (Paediatrician) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.