कैसे होता है ब्रोंकाइटिस और क्या हैं इसके लक्षण। इसके कारण, इलाज तथा बचाव के बारे में विस्तार से बता रहे हैं डॉक्टर आशीष जैसवाल, पल्मोनोलॉजिस्ट।   

ब्रोंकाइटिस सांस लेने से जुड़ी एक बीमारी है जो अधिकतर उन लोगों को होती है जो बहुत लंबे वक्त तक धूम्रपान करते हैं या फिर किसी तरह के प्रदूषण का शिकार होते हैं चाहे वे माइंस में काम करते हों, चूल्हे पर खाना पकाते हों या फिर वातावरण में होने वाले प्रदूषण की चपेट में आते हों। दरअसल ब्रोंकाइटिस सीओपीडी बीमारी का ही एक हिस्सा है। अगर किसी व्यक्ति को दो महीने तक खांसी के साथ बलगम आए और ये स्थिति लगातार दो तीन सालों तक बनी रहे, तो इसे क्रोनिक ब्रोंकाइटिस कहा जाता है। ये बीमारी ज्यादातर 40 साल की उम्र के बाद लोगों में दिखती है। ब्रोंकाइटिस और दमा दोनों ही सांस लेने से जुड़ी बीमारियां हैं हालांकि दमा में मरीज़ की पूरी हिस्ट्री ली जाती है और साथ ही मरीज़ में किसी तरह की एलर्जी का भी पता लगाया जाता है।  

Bronchitis

ब्रोंकाइटिस के लक्षण (Symptoms of bronchitis in Hindi)

क्रोनिक ब्रोंकाइटिस का मुख्य लक्षण है सुबह उठने के बाद खांसी के साथ बलगम का आना। मरीज़ को लगातार कई महीनों तक खांसी होती है और बाद में सांस फूलने की शिकायत भी होने जाती है। सांस फूलने की शिकायत धीरे धीरे बढ़ती जाती है और ये इस हद तक हो जाती है कि मरीज़ को अपने रोज़मर्रा के काम करने में भी दिक्कत होने लगती है।  

ब्रोंकाइटिस का कारण (Causes of bronchitis in Hindi)

क्रोनिक ब्रोंकाइटिस होने की सबसे बड़ी वजह है धूम्रपान करना। जो लोगो लंबे समय तक धूम्रपान करते हैं, उनमें ब्रोंकाइटिस होते देखा गया है। साथ ही आज के प्रदूषण भरे वातावरण में जिन लोगों को ज्यादा समय बिताना पड़ता है, वो भी इस बीमारी का शिकार होते हैं। धूल के महीन कण, सांस लेने के दौरान फेफ़ड़ों तक पहुंच जाते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।  

pollution

ब्रोंकाइटिस से बचने के उपाय (Prevention of bronchitis in Hindi)

इससे बचने के लिए धूम्रपान को त्यागना बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा जिन लोगों को धूल-मिट्टी और प्रदूषण में समय बिताना पड़ता है जैसे खदानों में काम करने वाले मज़दूर, किसान, ट्रैफिक पुलिस वगैरह, उन्हें काम करते समय अपने नाक और मुंह को मास्क से ढक लेना चाहिए। बाज़ार में कई तरह के एंटी पल्यूशन मास्क उपलब्ध हैं जैसे N 95 मास्क जिसे पहनने से काफ़ी हद तक प्रदूषण से बचा जा सकता है।  

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डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए? (When to seek doctor in Hindi)

ब्रोंकाइटिस होने पर मरीज़ को लंबे समय तक लगातार खांसी और बलगम रहता है। ऐसी स्थिति महीनों और सालों तक बनी रहती है। कई लोग लगातार खांसी होने को टीबी समझ लेतें हैं और बीमारी का सही तरह से परीक्षण नहीं होने पर टीबी की दवाइ शुरू कर देते हैं जिससे रोग और भी ज्यादा बढ़ जाता है। ब्रोंकाइटिस होने पर मरीज़ में ऑक्सीजन की मात्रा कम और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने लगती है जिससे रोगी बेहोश भी हो सकता है। जिन मरीज़ों की सांस लेने की गति तेज़ हो जाती है और सांस लेने के दौरान सी टी जैसी आवाजें आने लगती है, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना ज़रूरी हो जाता है।  

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ब्रोंकाइटिस का इलाज (Treatment of bronchitis in Hindi)

सबसे पहले मरीज़ की डायग्नोसिस बनायी जाती है जिसके लिए रोगी की छाती का एक्स रे और स्पाइरोमेट्री की जाती है। इसके अलावा ज़रूरत पड़ने पर सी टी स्कैन भी किया जाता है। इसके इलाज की बात करें तो सबसे पहले इनहेलर के तौर पर दवाइ दी जाती है। मरीज़ की उम्र, वज़न और बीमारी के स्तर को देखते हुए कई तरह के इनहेलर दिए जाते हैं जिससे अंदर होने वाली रूकावट को समाप्त किया जा सके। ब्रोंकाइटिस के मरीज़ों को नियमित तौर पर इनहेलर का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।  

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घरेलू उपचार और डॉक्टर की सलाह (Home remedies and doctor’s advice in Hindi)

घर पर अपना ख़्याल रखने के लिए मरीज़ स्टीम ले सकते हैं जिसका एक अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा हल्दी और अदरक के सेवन से भी फ़ायदा पहुंचता है क्योंकि इनसे बलगम पतला हो जाता है और बाहर निकल जाता है जिससे मरीज़ को सांस लेने में आसानी होती है। ये एक ऐसी बीमारी है जो काफ़ी हद तक धूम्रपान और हमारे वातावरण से जुड़ी है इसलिए धूम्रपान और वायु प्रदूषण से बचने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।    

डिस्कलेमर – ब्रोंकाइटिस के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर आशीष जैसवाल, प्लमोनोलॉजिस्ट द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।   

Note: This information on Bronchitis, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Ashish Jaiswal (Pulmonologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.