हमारी शरीर की हड्डियां एक दूसरे से कई तरह से जुड़ी हुई हैं। हिप यानि कूल्हे की हड्डी की बात करें तो इसकी बनावट इस प्रकार है कि ये जांघ की हड्डी से जुड़ी हुई है और इस जोड़ को बॉल एंड सॉकेट ज्वाइंट कहा जाता है। आइए जानते हैं क्यों पड़ती है हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी की ज़रूरत डॉक्टर संदीप कपूर, ऑर्थोपेडिक एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन से।  

हिप यानि कूल्हे की हड्डी एक प्रकार का सॉकेट बनाती है और उसमें जांघ की उपरी हड्डी बॉल की तरह फिट हो जाती है इसलिए इसे बॉल एंड सॉकेट ज्वाइंट कहा जाता है। हिप की सर्जरी में कूल्हे की पूरी हड्डी को नहीं निकाला जाता बल्कि इन्हीं सॉकेट और बॉल को रिप्लेस करके आर्टीफिशियल सॉकेट तथा बॉल लगा दिया जाता है।  

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हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के प्रकार (Types of hip replacement surgery in Hindi)

कूल्हे की हड्डी की सर्जरी मुख्य तौर पर दो तरह से की जाती है जिसमें नॉन सीमेंटेड हिप रिप्लेसमेंट और सीमेंटेड हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी शामिल है। नॉन सीमेंटेड सर्जरी में सॉकेट को कूल्हे पर स्क्रू के ज़रिए फिट किया जाता है और उस पर फीमर के उपरी भाग को बॉल की तरह लगा दिया जाता है। इसी तरह के जोड़ को अगर सीमेंट की मदद से हमेशा के लिए जोड़ दिया जाए तो इसे सीमेंटेड सर्जरी कहते हैं। नॉन सीमेंटेड सर्जरी कम उम्र के लोगों में की जाती है क्योंकि ये जोड़ वक्त के साथ शरीर से चिपक कर मज़बूत हो जाता है और एक बार जुड़ने के बाद ये शरीर का एक हिस्सा बन जाता है जिससे इसकी आयु बहुत लंबी हो जाती है। वहीं सीमेंटेड सर्जरी की बात करें तो ये ज्यादा उम्र के लोगों में की जाती है।  

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हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी की आवश्यकता (Need for the hip replacement surgery in Hindi)

शरीर में दो हड्डियां जब मिलती हैं तो उनके उपर कार्टीलेज यानि मुलायम हड्डी मौजूद होती है जिससे दोनों हड्डियों में रगड़ नहीं होती। कूल्हे और जांघ की हड्डी के जोड़ में भी कार्टीलेज पाया जाता है जिससे बॉल सॉकेट में आराम से बिना घर्षण पैदा किए फिट हो जाता है। लेकिन जब किसी वजह से हड्डियों के जोड़ में पाए जाने वाला कार्टीलेज ख़त्म हो जाता है तो ये जोड़ आपस में टकराते हैं और गठिया रोग हो जाता है। गठिया होने से मरीज़ को कूल्हे में दर्द होता है, चलने में दिकक्त होती है और पैर छोटे बड़े हो सकते हैं। कुछ मामलों में मरीज़ चलने फिरने में बिल्कुल असमर्थ हो जाता है, ऐसे में हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी आवश्यक हो जाती है। लगाए जाने वाले जोड़ सेरामिक, प्लास्टिक और अन्य धातुओं के बने होते हैं।  

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सर्जरी का तरीक़ा और जटिलताएं (Procedure of surgery and its complications in Hindi)

सर्जरी करने से पहले एक्स रे तथा एमआरआई (MRI) करके मरीज़ के गठिया का पता लगाया जाता है। यदि मरीज़ कम उम्र का हो तो ये कोशिश की जाती है कि लगाए जाने वाले ऑर्टीफिशयल जोड़ कम से कम 25 से 30 सालों तक चले। सर्जरी के तीस साल के बाद अगर मरीज़ को फिर से दिकक्त होती है तो एक रिवीज़न सर्जरी करके जोड़ को बदला जाता है। सर्जरी के वक्त कई चीज़ों का ध्यान रखना होता है जैसे कि यदि मरीज़ की उम्र कम हो तो नॉन सीमेंटेड सर्जरी करनी चाहिए, इस्तेमाल की जाने वाली धातु अच्छी क्वालिटी की होनी चाहिए, मरीज़ ऑपरेशन के लिए फिट होना चाहिए, सर्जरी हमेशा एक्सपर्ट सर्जन की देखरेख में होनी चाहिए, ऑपरेशन सही इंफ्रास्ट्रक्चर में होना चाहिए। ऑपरेशन के बाद इंफेक्शन का ख़तरा सबसे ज्यादा होता है इसलिए दवाईयों के साथ फिज़ियोथेरेपी की सुविधा होनी चाहिए। ऑपरेशन के अगले दिन ही मरीज़ को खड़ा करके चलाया जाता है और तीसरे या चौथे दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। सर्जरी के टांके एक हफ्ते में कट जाते हैं और एक महीने के अंदर मरीज़ दोबारा ठीक तरह से चलने फिरने के क़ाबिल हो जाता है। हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी में दो तरह की जटिलताएं हो सकती हैं जिसमें एक है इंफेक्शन और दूसरा है ज्वाइंट डिस्प्लेसमेंट यानि जोड़ का सही जगह पर ना लगना। लेकिन आज सभी तरह की आधुनिक तकनीक की मदद से इस तरह की सर्जरी सफ़लतापूर्वक की जा रही है इसलिए इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है।  

सर्जरी के बाद की सावधानियां (Post surgery precautions in Hindi)

सर्जरी के बाद डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह को मानना चाहिए जैसे कि बहुत भारी शारीरिक व्यायाम, खेलकूद या फिर मना की गई चीज़ें नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनसे जोड़ में दिक्कत हो सकती है। इसके अलावा किसी भी तरह का इंफेक्शन होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।  

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सर्जरी के फ़ायदे और लागत (Advantages of surgery and its costs in Hindi) 

इस तरह की सर्जरी के फ़ायदे ही फ़ायदे हैं क्योंकि रिप्लेसमेंट तब की जाती है जब मरीज़ को कूल्हे की हड्डी की वजह से ढेर सारी दिक्कतें होने लगती हैं। सर्जरी के बाद मरीज़ बिल्कुल पहले की तरह ठीक होकर काम काज करने में समर्थ हो जाते हैं। सर्जरी का ख़र्च इस्तेमाल होने वाली धातु और अस्पताल द्वारा दी गई सुविधाओं पर निर्भर करता है हालांकि नॉन सीमेंटेड सर्जरी की लागत थोड़ी ज्यादा होती है। सीमेंटेड सर्जरी में लगभग दो से सवा दो लाख रूपए ख़र्च हो सकते हैं जबकि नॉन सीमेंटेड सर्जरी में ढाई से सवा तीन लाख रूपए ख़र्च हो सकते हैं।  

डिस्कलेमर – हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के प्रकार, आवश्यकता, सावधानियां तथा ख़र्च पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर संदीप कपूर, ऑर्थोपेडिक एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।   

Note: This information on Hip Replacement Surgery, in Hindi, is based on an extensive interview with  Dr Sandeep Kapoor (Orthopedic and Joint Replacement Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.