एनल फिशर गुदा द्वार के तक़लीफ़ से जुड़ी एक समस्या है जिसे लोग अक्सर पाइल्स या फिस्टुला समझ लेते हैं। हालांकि, जिन लोगों को फिशर होता है उनमें पाइल्स होने की संभावना अधिक रहती है क्योंकि इनके होने के कारण मिलते जुलते हैं। इसके लक्षण, कारण, बचाव और इलाज के बारे में बता रहे हैं डॉ अरशद अहमद।
क्या होता है एनल फिशर? (What is anal fissure in Hindi)
दरअसल एनल फिशर में मल त्यागने वाले रास्ते यानि एनल कनाल में अल्सर बन जाता है जिसके कारण मरीज़ को मल और मूत्र त्यागने में बहुत ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता है। ये बीमारी युवा लोगों में अधिकत्तर देखने को मिलती है। बात करें महिलाओं को तो प्रेगनेंसी के दौरान या डिलीवरी के बाद उनमें ये दिक्कत हो जाती है। फिशर से पीड़ित लोगों को पाइल्स की दिक्कत भी हो सकती है लेकिन इन दोनों का इलाज अलग अलग तरीक़े से होता है।
एनल फिशर के प्रकार और लक्षण (Types and symptoms of anal fissure in Hindi)
एनल फिशर दो तरह का होता है जिसमें एक है एक्यूट और दूसरा क्रोनिक एनल फिशर होता है। जिन लोगों को पहली बार ये रोग होना शुरू होता है, तो इसे एक्यूट एनल फिशर कहा जाता है जिसमें मरीज़ को टॉयलेट और मोशन के समय दर्द होता है और ये दर्द कुछ देर बाद तक बना रहता है। इसके अलावा थोड़ी बहुत ब्लीडिंग भी हो सकती है। बात करें क्रोनिक फिशर की तो लंबे समय तक फिशर रहने पर मरीज़ का दर्द थोड़ा कम हो जाता है लेकिन इसके साथ दूसरे लक्षण सामने आते हैं जैसे कि उस जगह पर खुजली होना, खाल का बढ़ जाना, डिस्चार्ज होना वगैरह। इन दोनों ही तरह के फिशर से पीड़ित लोगों में कब्ज़ की समस्या ज़रूर देखी जाती है। ऐसे लोगों को मल त्यागने में ज़ोर लगाना पड़ता है। अगर वक्त रहते फिशर का इलाज ना किया जाए तो इससे दूसरी समस्याएं जैसे इंफेक्शन या फिस्टुला होने का ख़तरा हो सकता है।
पाइल्स और फिस्टुला से अलग है फिशर (Fissure is different from piles and fistula in Hindi)
आमतौर पर पाइल्स में व्यक्ति को बहुत ज्यादा दर्द नहीं होता है बल्कि मासंपेशियों के कमज़ोर होने पर वो खिसक कर नीचे आ जाती है जिसमें ख़ून जमने से, सूजन से या फिर ब्लीडिंग होने पर मरीज़ को दिक्कत होती है जबकि फिशर में तेज़ दर्द का होना ही ख़ास लक्षण है। वहीं फिस्टुला में गुदा द्वार की त्वचा पर इंफेक्शन के कारण पहले फोड़ा बन जाता है और फोड़ा फूटने के बाद वहां एक सुराख़ बन जाता है जिससे डिस्चार्ज होता रहता है। फिशर अधिकत्तर युवा लोगों में पाया जाता है जिनकी मांसपेशियां टाइट होती हैं। इसके अलावा कुछ बीमारियों और इंफेक्शन के कारण भी ये हो जाता है।
खानपान और लाइफ स्टाइल का असर (Effect of food habits and lifestyle in Hindi)
अगर हमारी डाइट में पानी और फाइबर का इस्तेमाल कम होता है तो इससे कब्ज़ की दिक्कत हो जाती है जो आगे जाकर फिशर का कारण बन सकती है। इसके अलावा अगर शारीरिक क्रियाएं कम हों तो ऐसे में हमारी आंतें भी सुस्त पड़ जाती हैं। इसके अलावा कुछ लोग टॉयलेट के समय अख़बार पढ़ते हैं, मोबाइल देखते हैं और ज़रूरत से ज्यादा देर बैठने पर बेवजह प्रेशर लगाते हैं जिसके कारण भी ये दिक्कत हो सकती है इसलिए हेल्दी लाइफ स्टाइल को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।
कैसे होता है परीक्षण और इलाज? (How is it diagnosed and treated in Hindi)
एनल फिशर का परीक्षण उसके लक्षण से ही पहचाना जा सकता है क्योंकि इसमें मरीज़ को मोशन के समय तेज़ दर्द होता है। कभी कभी ये दर्द इतना बढ़ जाता है कि मरीज़ डर के कारण मल नहीं त्याग पाता और इसकी वजह से मल और भी ज्यादा कड़ा जाता हो जाता है। ज्यादातर मामलों में डॉक्टर बिना किसी उपकरण को अंदर डाले हल्के फुल्के तरीक़े से ही परीक्षण कर लेते हैं क्योंकि इसके लक्षण अपने आप में बीमारी होने की पुष्टि करते हैं। एक्यूट एनल फिशर का इलाज नॉन सर्जिकल होता है और दवाइयों से ही इलाज किया जाता है जिसे कम से कम छह हफ्तों तक जारी रखा जाता है। इसमें त्वचा पर लगाने के लिए क्रीम दी जाती है और साथ साथ खाने के लिए भी दवाइयां दी जाती हैं। इसके अलावा कब्ज़ियत को दूर करने के लिए भी दवाइयां दी जाती हैं और मरीज़ को खानपान बदलने के लिए कहा जाता है। क्रोनिक फिशर में मरीज़ की परेशानी को देखते हुए सर्जरी की जाती है जिसमें एक मांसपेशी जिसे इंटरनल सिप्रंटर कहते हैं, उसके निचले हिस्से को थोड़ा सा काटकर रिलैक्स कर दिया जाता है क्योंकि वो बहुत टाइट होती है।
सर्जरी को लेकर लोगों का डर (Fear of surgery in people in Hindi)
आज के समय सर्जरी के लिए बहुत ही एडवांस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है जिससे मरीज़ को किसी तरह का घाव नहीं बनता और ना ही ड्रेसिंग की ज़रूरत पड़ती है बल्कि सर्जरी के बाद मरीज़ को तुरंत राहत मिलती है और आगे किसी तरह के होने वाले इंफेक्शन से भी वह बच जाता है। इसलिए फिशर के लक्षण दिखने पर किसी तरह के घरेलू उपचार करने से बचना चाहिए।
किस तरह की हो सकती हैं जटिलताएं? (What kind of complications can occur in Hindi)
इलाज ना कराने पर एक्यूट फिशर क्रोनिक में बदल सकता है। क्योंकि ये एक घाव होता है इसलिए इंफेक्शन होने की संभावना होती है जो कि गुदा द्वार की ग्रंथियों में भी फैल सकता है और आगे जाकर फिस्टुला बना सकता है। इसके अलावा वहां की खाल बढ़ सकती है और दर्द बढ़ सकता है।
कैसा होना चाहिए खानपान? (How should be the food habits in Hindi)
हर व्यक्ति को बैलेंस डाइट लेनी चाहिए जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स के साथ ही थोड़ी मात्रा में फैट्स होना चाहिए। इसके साथ ही पानी भी ख़ूब पिएं और फाइबर का इस्तेमाल करें क्योंकि इससे स्टूल कड़ा नहीं होता और व्यक्ति आसानी से मल त्याग कर पाता है। फास्ट फूड, जंक फूड, मैदे वाली चीज़ें, तैलीय और मसालेदार भोजन से बचें।
डिस्क्लेमर – एनल फिशर रोग के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर अरशद अहमद , कोलेरेक्टल सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Anal Fissure, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Arshad Ahmad (Colorectal Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.