- कैसे होती है मसूढ़ों की बीमारी “जिंजिवाइटिस”
- क्या हैं मसूढ़ों की बीमारी के लक्षण
- मसूढ़ों से खून आने की क्या है वजह
- किस उम्र में हो सकती है दांतों की बीमारी
- क्या है मसूढ़ों की बीमारी का इलाज
- क्या धूम्रपान से दांतों पर प्रभाव पड़ता है
- दांतों के पीलेपन को कैसे दूर करें
- कैसे करें मसूढ़ों की बीमारी की रोकथाम
- क्या है ब्रश करने का सही तरीका
- डॉक्टर की सलाह
हमारे व्यक्तित्व में चार चांद लगाती है हमारी हंसी। अगर एक व्यक्ति का चेहरा हंसता खिलखिलाता होता है तो वह सामने वाले व्यक्ति पर भी अच्छा असर डालता है। एक स्वस्थ हंसी के पीछे होते हैं हमारे स्वस्थ दांत और मसूढ़े। लेकिन अगर हमारे दांत अच्छे ना हों तो हमारा व्यक्तित्व निखर कर सामने नहीं आ पाता। स्वस्थ दातों के लिए स्वस्थ मसूढ़ों का होना बेहद ज़रुरी है। अगर मसूढ़ों में किसी तरह की परेशानी है तो वह हमारे दांतों को भी खराब कर सकते हैं। क्यों ज़रुरी है मसूढ़ों का ख़ास ख्याल रखना और कैसे होती है मसूढ़ों की बीमारी, इसके बारे में विस्तार से बता रहीं हैं डॉ श्वेता रस्तोगी, डेन्टल सर्जन (Dental Surgeon)
कैसे होती है मसूढ़ों की बीमारी “जिंजिवाइटिस”? (How does “Gingivitis” occur?)
मसूढ़े हमारे शरीर के वो हिस्से हैं जो हमारे दांतों को उसकी जगह पर बनाए रखने में मदद करते हैं। मसूढ़े हमारे दांतों को चारों ओर से मज़बूती से पकड़े रहते हैं। जब भी हम कुछ खाते या पीते हैं तो उसमें मौजूद एक चिपचिपा पदार्थ हमारे दांतों पर लग जाता है। दांतों की सफ़ाई अच्छी तरह से ना करने पर यह पदार्थ धीरे धीरे हमारे दांतो पर जमना शुरु कर देता है जिसे प्लाक (Plaque) कहा जाता है। इस प्लाक में अनगिनत बैक्टीरिया पाए जाते हैं। ये बैक्टीरिया दांतों से होकर धीरे- धीरे हमारे मसूढ़ों तक पहुंच जाते हैं और उन्हें संक्रमित कर देते हैं जिसे हम मसूढों की बीमारी यानि जिंजिवाइटिस कहते हैं। जिंजिवाइटिस (Gingivitis) दरअसल मसूढ़ों का इंफेक्शन है जो दांतों पर प्लाक के लगातार जमने से होता है। दांतों पर जमे प्लाक को अगर वक्त पर साफ नहीं कराया जाए या इसका इलाज नहीं कराया जाए तो इससे मसूढ़ों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचता है और दांतों के आसपास की हड्डियां भी गलने लगती हैं जिसे पिरियोडॉनटाइटिस (Periodontitis) कहा जाता है। इन हड्डियों के गलने से दांत हिलना शुरु कर देते हैं और गिर भी सकते हैं।
क्या हैं मसूढ़ों की बीमारी के लक्षण? (What are the symptoms of Gums disease?)
मसूढ़े ख़राब होने के कई लक्षण होते हैं। इस बीमारी को जिंजाइवल इंफेक्शन कहा जाता है जिसमें मसूढ़े लाल हो जाते हैं और उनमें सूजन आ जाती है। इस बीमारी में व्यक्ति के मुंह से तेज़ बदबू आती है। इसके अलावा मूसढ़ों से खून आना भी शुरु हो जाता है। बीमारी बढ़ने के साथ ही मसूढ़े अपनी जगह से खिसकने लगते हैं और सिकुड़ना शुरु कर देते हैं। मसूढ़ों के सिकुड़ने की वजह से हमारे दांतों के आस-पास एक गैप हो जाता है। इस गैप की वजह से ठंडा-गर्म या मीठा खाने पर एक झनझनाहट सी महसूस होती है जिसे सेंसिटिविटी (Sensitivity) कहा जाता है। सेंसिटिविटी की असल वजह मसूढ़ों का अपनी जगह से नीचे की तरफ खिसकना है। इसके अलावा मसूढ़ों में तेज़ दर्द की शिकायत हो सकती है। मसूढ़ों के कमज़ोर और ख़राब होने की वजह से दांत गिर भी सकते हैं।
मसूढ़ों से खून आने की क्या है वजह? (What is the cause of bleeding gums?)
समय के साथ हमारे दांतों पर प्लाक (Plaque) की परत जमना शुरु हो जाती है। दांतों की अच्छी तरह सफ़ाई नहीं होने से प्लाक की परत मोटी होकर सख्त हो जाती है जिसे टार्टर (Tartar) कहा जाता है। इस प्लाक में मौजूद बैक्ट्रिया दांतों से होते हुए हमारे मसूढ़ों में पहुंच जाता है और उसे संक्रमित कर देता है जिससे मसूढ़ों से खून आना शुरु हो जाता है। इसके अलावा जब कोई व्यक्ति किसी ठोस चीज़ का सेवन करता है या फिर सख्त टूथ ब्रश का इस्तेमाल करता है तो इससे भी मसूढ़ें छिल जाते हैं और मसूढ़ों से खून आने लगता है।
किस उम्र में हो सकती है दांतों की बीमारी? (At what age can dental disease occur?)
मसूढ़ों और दांतों से जुड़ी परेशानियां किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। य़े ज्यादातर व्यक्ति के खानपान और दांतों की साफ़-सफ़ाई पर निर्भर करता है। छोटे बच्चों में अक्सर कैविटी (Cavity) की समस्या देखी जाती है क्योंकि बच्चे ज्यादातर मीठी और चिपचिपी चीज़े जैसे दूध, चॉकलेट, टॉफी, केक वगैरह खाना पसंद करते हैं। इन चीज़ों के सेवन के बाद अगर दांतों की सफ़ाई नहीं की जाए तो दांतों पर बैक्टीरिया रह जाते हैं जिससे समय के साथ दांतों में कैविटी हो जाती है। इसके अलावा लगभग 13 साल की उम्र तक बच्चों के दूध के दांत गिर जाते हैं और नए दांत आ जाते हैं। कई बार ये नए दांत टेढ़े-मेढ़े भी निकल आते हैं जिससे आगे जाकर दांतों की समस्या हो सकती है। इसलिए ये ज़रुरी है कि टेढ़े-मेढ़े दांतो को ऑर्थोडॉन्टिक ट्रीटमेंट (Orthodontic Treatment) जैसे ब्रेसस (Braces) के ज़रिए ठीक कराया जाए। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति दातों की देखभाल और साफ़ सफाई नहीं करता है तो मसूढ़े खराब हो जाते हैं और मसूढ़ों की बीमारी हो जाती है।
क्या है मसूढ़ों की बीमारी का इलाज? (What is the treatment for gum disease?)
दांतों पर जब प्लाक (Plaque) की परत मोटी होकर टार्टर में बदल जाती है तो ऐसे में डेन्टिस्ट के पास जाकर दांतों की सफ़ाई करवाना बेहद ज़रुरी है। इस तरह के ट्रीटमेंट में दांतों की जड़ों तक जाकर डीप क्लीनिंग की जाती है। सफ़ाई के साथ ही मरीज़ को एंटी बायोटिक (Anti-Biotic) और दर्द की दवाईयां भी दी जाती है। दांतों की समस्या ज्यादा गंभीर होने पर कभी कभी सर्जरी तक की नौबत आ सकती है।
क्या धूम्रपान से दांतों पर प्रभाव पड़ता है? (Does smoking affect teeth?)
धूम्रपान करने वाले लोगों के दांतों में पीलापन या स्टेन्स (Stains) हो जाता है। साथ ही धूम्रपान की वजह से व्यक्ति के अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और इससे मसूढ़ों को क्षति पहुंचती है। इसके अलावा दांतों और मसूढ़ों से होकर ये बैक्ट्रिया शरीर के अंदर जाकर फेफड़ों और ह्रद्य के मरीज़ों में इंफेक्शन को और भी बढ़ा सकते हैं।
दांतों के पीलेपन को कैसे दूर करें? (How to remove yellowing of teeth?)
दांतों में हल्का पीलापन कुदरती तौर पर होता है और यह एक सामान्य बात है। दांतों की सफ़ाई के लिए डॉक्टर सलाह तब देते हैं जब उनमें प्लाक हो जाता है। कई लोग दांतों का रंग एक शेड लाइट करवाने के लिए ब्लीचिंग भी करवाते हैं। दांतो की क्लीनिंग करवाने से मसूढ़े वापस अपनी जगह पर सेट हो जाते हैं जिसकी वजह से सेंसिटिविटी कम हो जाती है।
कैसे करें मसूढ़ों की बीमारी की रोकथाम? (How to prevent Gums Disease?)
मसूढ़ों की समस्या से बचाव के लिए सबसे ज़रुरी है कि दांतों की अच्छी तरह से सफ़ाई की जाए। दिन में कम से दो बार ब्रश करना बहुत ज़रुरी है जिसमें एक बार सुबह और एक बार रात में सोने से पहले। साथ ही कम से कम दिन में एक बार धागे से दांतों की बीच की सफाई भी करनी चाहिए जिसे फ्लॉसिंग (Flossing) कहा जाता है। इसके अलावा अच्छे माउथवॉश का भी कम से कम दिन में दो बार इस्तेमाल करना चाहिए। धूम्रपान से बचना चाहिए और खाने-पीने की चीज़ों में विटामिन सी का ज्यादा सेवन करना चाहिए जो कि खट्टे रसीले फलों में पाए जाते हैं जैसे मौसमी, संतरा, नींबू आदि। चिपचिपे खाने-पीने की चीज़ों से भी बचना चाहिए। गुनगुने नमक के पानी से कुल्ला करने से भी फ़ायदा होता है। हमें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि हम जिस ब्रश से दांतों की सफ़ाई करते हैं वो ठीक है या नहीं। हमें अपने ब्रश को हर तीन महीने में बदल देना चाहिए।
क्या है ब्रश करने का सही तरीका? (What is the right way to brush?)
ब्रश करने के लिए सबसे पहले एक अच्छी क्वालिटी का सॉफ्ट टूथब्रश होना ज़रूरी है। ब्रश हमेशा थोड़ा टेढ़ा रखना चाहिए ताकि जमे हुए प्लाक सही से निकल जांए। दांतों की सफ़ाई हर तरफ से की जानी चाहिए। दांतों के साथ ही जीभ की सफ़ाई भी बहुत ज़रुरी है क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा बैक्ट्रीरिया लगे होते हैं।
डॉक्टर की सलाह (Doctor’s advice)
ब्रश करने के लिए सबसे पहले एक अच्छी क्वालिटी का सॉफ्ट टूथब्रश होना ज़रूरी है। ब्रश हमेशा थोड़ा टेढ़ा रखना चाहिए ताकि जमे हुए प्लाक सही से निकल जांए। दांतों की सफ़ाई हर तरफ से की जानी चाहिए। दांतों के साथ ही जीभ की सफ़ाई भी बहुत ज़रुरी है क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा बैक्ट्रीरिया लगे होते हैं।
डिस्क्लेमर – मसूढ़ों की बीमारी, इसके लक्षण, कारण तथा इलाज पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर श्वेता रस्तोगी, डेन्टल सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on pyorrhea disease, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Shweta Rastogi (Dental Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.