प्रेसबायोपिया आंखों से कमज़ोरी से जुड़ी हुई एक समस्या है जिसमें उम्र बढ़ने के साथ ही पास की चीज़ों को देखने में परेशानी होती है। क्या प्रेसबायोपिया को होने से रोका जा सकता है, क्या हैं इसके लक्षण और कैसे होता है इसका इलाज, जानिए डॉक्टर प्रोलिमा ठाकर, नेत्र चिकित्सक से।  

उम्र बढ़ने के साथ ही हर व्यक्ति के शरीर में कुदरती तौर पर कई तरह के बदलाव आते हैं जो कि एक सामान्य बात है। शरीर के बाकी अंगों के साथ ही आंखों के देखने की क्षमता भी घटती जाती है जिसमें नज़दीक की चीज़ें देखने में मुश्किल होती है और इसी समस्या को प्रेसबायोपिया कहते हैं। देखा जाए तो प्रेसबायोपिया एक बीमारी नहीं बल्कि समय के साथ होने वाली एक प्राकृतिक समस्या है।  

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प्रेसबायोपिया के लक्षण (Symptoms of presbyopia in Hindi)

लगभग 40 से 45 साल की उम्र के बाद नज़दीक की चीज़ों को देखने में दिक्कत होने लगती है। ख़ासकर बारीक और महीन चीज़ों को पढ़ने में परेशानी होती है क्योंकि बहुत बारीक और छोटी लिखी हुई चीज़ें ठीक से दिखायी नहीं देती और ऐसे में लोग उन्हें थोड़ी दूर से देखने की कोशिश करते हैं। लोगों को किताबें, अख़बार, मैगज़ीन और मोबाइल पर लिखे हुए महीन अक्षर ठीक से दिखायी नहीं देते हैं। इसके साथ ही कम रौशनी के कारण भी लिखी हुई चीज़ों को देखने में दिक्कत होती है।  

प्रेसबायोपिया होने का कारण (Causes of presbyopia in Hindi) 

प्रेसबायोपिया समय बढ़ने के साथ होने वाली एक समस्या है जो हर एक व्यक्ति के साथ होती है। हम सभी की आंखों में एक कुदरती लैंस होता है जो बचपन में काफ़ी लचीला होता है और इस लचीलेपन की वजह से व्यक्ति नज़दीक की किसी भी छोटी से छोटी चीज़ पर फोकस कर पाता है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ यही लचीलापन कम होने लगता है और चीज़ों पर फोकस करने की क्षमता भी कम हो जाती है।  

Presbyopia treatment

किस उम्र दिखता है प्रेसबायोपिया? (At what age presbyopia is seen in Hindi)

अमूमन 40 से 45 साल की उम्र के बाद लोगों में प्रेसबायोपिया के लक्षण दिखायी देने लगते हैं लेकिन 90 प्रतिशत मामलों में ऐसा 45 साल के बाद होने लगता है। साथ ही जिन लोगों को पहले से ही देखने में समस्या होती है यानि जिनके चश्मे का नंबर प्लस में होता है, उनमें ये दिक्क्त 40 साल के बाद ही शुरू हो जाती है और इसे हाइपरमेट्रोपिया कहते हैं।  

क्या प्रेसबायोपिया को रोका जा सकता है? (Can presbyopia be prevented in Hindi)

पास की नज़र कमज़ोर होना, आयु बढ़ने के साथ ही होने वाला एक प्राकृतिक बदलाव है इसलिए इसे रोका नहीं जा सकता। मेडिकल साइंस में भी अब तक इसे होने से रोकने के लिए ना तो किसी तरह की दवाइयां हैं और ना ही व्यायाम।  

eye check up

क्या है प्रेसबायोपिया का इलाज? (Treatment of presbyopia in Hindi)

इसके इलाज के तहत एक व्यक्ति को उसकी उम्र के मुताबिक पढ़ने के लिए चश्मा यानि रीडिंग ग्लासेस दिये जाते हैं। 40 से 45 साल की उम्र वाले लोगों को 1 या फिर 1.5 की पावर वाले लैंस दिए जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ही आंखों की फोकस करने की क्षमता और भी घटती जाती है और इसलिए चश्मे की रीडिंग का नंबर भी बढ़ता जाता है। रीडिंग ग्लासेस बहुत किस्म के होते हैं जिनमें बाई-फोकल ऐसे चश्मे हैं जिसमें दूर और पास की चीज़ों को देखने के लिए एक साथ लैंस मौजूद होते हैं। आज के समय में प्रोग्रेसिव चश्मे काफ़ी चलन में हैं क्योंकि इसमें पास और दूर, दोनों के ही लैंस एकसाथ होते हैं और वो भी बिल्कुल स्मूथ बिना किसी कट के। देखने में ये चश्मे बिल्कुल सामान्य दिखते हैं लेकिन ये एक रीडिंग ग्लासेस होते हैं। दूर और पास की चीज़ों को पढ़ने और देखने के अलावा आजकल बीच की दूरी (Intermediate Distance) की चीज़ों के लिए भी प्रोग्रेसिव चश्मे इस्तेमाल किए जा रहे हैं क्योंकि ज्यादातर लोग अब कंप्यूटर और मोबाइल पर काम करने लगे हैं। इसके अलावा कई लोग कांटैक्ट लैंस का इस्तेमाल भी करते हैं हालांकि कुछ लोगों को इसे लगाने में दिक्कत भी होती है।  

किस तरह की सावधानी बरतनी चाहिए? (What kind of precautions should be taken in Hindi)

क्योंकि ये एक प्राकृतिक तौर पर होने वाली चीज़ है इसलिए इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता है। हालांकि हर एक व्यक्ति को चालीस साल की उम्र के बाद हर छह महीने में अपनी आंखों का चेकअप कराते रहना चाहिए ताकि प्रेसबायोपिया का पता किया जा सके और उसी अनुसार चश्मा लगाया जाए।  

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डॉक्टर की सलाह (Doctor’s advice in Hindi)

प्रेसबायोपिया का इलाज बहुत ही साधारण है और इसके लिए सिर्फ़ समय समय पर अपने नेत्र चिकित्सक के पास जाकर आंखों की जांच कराते रहें। अगर समय के साथ आपके चश्मे का नंबर बदल गया है तो उसी के मुताबिक लैंस लगाएं।  

डिस्कलेमर – प्रेसबायोपिया के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर प्रोलिमा ठाकर, नेत्र चिकित्सक द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है। 

Note: This information on Presbyopia , in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Prolima Thacker (Ophthalmologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.