अंडकोष में मौजूद टेस्टिस में किसी प्रकार के इन्फेक्शन या फिर चोट लगने के कारण तरल पदार्थ इकट्ठा हो जाता है तो इसे हाइड्रोसील नाम की बीमारी के तौर पर जाना जाता है। हाइड्रोसील के लक्षण, इलाज और सावधानियों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं डॉ अनुभव राज, यूरोलॉजिस्ट।
- किस तरह की बीमारी है हाइड्रोसील?
- हाइड्रोसील के प्रकार
- हाइड्रोसील के लक्षण
- हाइड्रोसील होने के क्या हैं कारण
- कैसे होता है हाइड्रोसील का परीक्षण?
- क्या सर्जरी है सबसे कारगर इलाज?
- सर्जरी के बाद की सावधानियां
- कितना है सर्जरी का ख़र्च?
- हाइड्रोसील के जोख़िम
- हाइड्रोसील की रोकथाम
- डॉक्टर की सलाह
किस तरह की बीमारी है हाइड्रोसील? (What kind of disease is Hydrocele in Hindi)
हाइड्रोसील एक ऐसी बीमारी है जिसमें पुरुषों के टेस्टिकल्स यानि अंडकोष में मौजूद टेस्टिस के आसपास बहुत ज्यादा तरल पदार्थ इकट्ठा हो जाता है और इसके कारण टेस्टिस और अंडकोष में सूजन पैदा हो जाती है।
हाइड्रोसील के प्रकार (Types of Hydrocele in Hindi)
हाइड्रोसील को चार प्रकारों में बांटा जा सकता है और ये इस बात पर निर्भर करता है कि तरल पदार्थ कहाँ तक इकट्ठा हो चुका है। अगर ये पानी सिर्फ टेस्टिस के आसपास तक भरा है तो इसे वजाइनल हाइड्रोसील कहा जाता है जो कि सबसे सामान्य तौर पर पाया जाने वाला हाइड्रोसील का प्रकार है। दूसरे तरह के हाइड्रोसील की बात करें तो इसे कंजनाइटल हाइड्रोसील कहा जाता है जिसमें टेस्टिस की झिल्लियों में भी पानी भर जाता और पेट तक भी पहुँच सकता है क्योंकि जब बच्चे गर्भ में होते है तो ये टेस्टिस ऊपर की तरफ होते हैं और पैदा होने तक ये झिल्लियों के साथ धीरे धीरे नीचे खिसक जाते हैं। बाकी दो और प्रकारों की बात करें तो इनमें इनसिस्टेड हाइड्रोसील स्पर्मैटिक कोर्ड और फोलीकूलर टाइप ऑफ हाइड्रोसील होते हैं।
हाइड्रोसील के लक्षण (Symptoms of Hydrocele in Hindi)
मरीज़ को इसमें एक तरफ़ या फिर दोनों तरफ़ के टेस्टिस का आकार बढ़ता हुआ दिखाई देता है लेकिन इसमें किसी तरह का दर्द नहीं होता। हालांकि, आकार के बहुत ज्यादा बढ़ने पर अंडकोष के साथ साथ पेट में भी खिंचाव और दर्द महसूस हो सकता है।
हाइड्रोसील होने के क्या हैं कारण? (Causes of Hydrocele in Hindi)
दरअसल, टेस्टिस के आसपास मौजूद झिल्लियों की दो परतों के बीच पानी इकट्ठा हो जाता है। ज्यादातर ये पानी किसी इन्फेक्शन या फिर छोटी मोटी चोट लगने के कारण जमा हो जाता है। इन्फेक्शन की बात करें तो फाइलेरियासिस के कारण ये तरल पदार्थ बन सकता है। इसके अलावा टेस्टिस में किसी ट्यूमर बनने के कारण भी हाइड्रोसील हो सकता है।
कैसे होता है हाइड्रोसील का परीक्षण? (How is Hydrocele test done in Hindi)
हाइड्रोसील के परीक्षण के लिए किसी भी ख़ास तरह की जांच की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि इसे क्लिनिकल डायग्नोसिस द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है। अल्ट्रासाउंड जैसी जांच की आवश्यकता तब पड़ती है जब डॉक्टर, हाइड्रोसील के अलावा किसी और गंभीरता होने की आशंका जताते हैं जैसे कि किसी ट्यूमर का होना, ख़ून का जम जाना या फिर टेस्टिस के साथ ही अंडकोष में भी दिक्कत होना। इसमें हाथों से टटोलकर और फ्लक्चुएशन टेस्ट करके बिल्कुल सटीक डायग्नोसिस तैयार कर ली जाती है।
क्या सर्जरी है सबसे कारगर इलाज? (Is surgery the most effective treatment in Hindi)
हाइड्रोसील के इलाज के लिए सर्जरी ही सबसे कारगर तौर पर सामने आती है। इसमें मरीज़ को एनेस्थीसिया देकर अंडकोष को सुन्न कर दिया जाता है। फिर अंडकोष में छोटा सा चीरा लगाकर टेस्टिस के आसपास के तरल पदार्थ को निकाल दिया जाता है और झिल्लियों को पलटकर सिल दिया जाता है जिससे की ये बीमारी जीवनभर के लिए ठीक हो जाती है। सबसे अच्छी बात ये है कि इसे माइनर सर्जरी के तौर पर किया जाता है और मरीज़ को दोबारा हाइड्रोसील होने की आशंका नहीं रहती।
सर्जरी के बाद की सावधानियां (Post-Surgery Precautions in Hindi)
सर्जरी से पहले और बाद में मरीज़ को इंफेक्शन से बचने की कोशिश करनी चाहिए। सर्जरी से पहले शरीर को अच्छी तरह से साफ़ करके जाना चाहिए। सर्जरी हो जाने के बाद भी स्वच्छता का ख़्याल रखें, डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां लेते रहे और शुरुआत में अंडकोष को सपोर्ट देने के लिए बैंडेज और दूसरे उपकरणों का इस्तेमाल कुछ दिनों तक करना चाहिए ताकि तरल पदार्थ पूरी तरह से निकल जाए। लेकिन अगर फिर भी किसी तरह की सूजन, लालपन और दर्द महसूस हो तो तुरंत अपने सर्जन से संपर्क करें।
कितना है सर्जरी का ख़र्च? (How much does the surgery cost in Hindi)
सभी सरकारी अस्पतालों, पब्लिक हेल्थ सेंटर्स में सर्जरी के लिए डॉक्टर्स और उपकरण मौजूद होते हैं। इन सरकारी अस्पतालों और पीएचसी में सर्जरी का ख़र्च लगभग ना के बराबर होता है, वहीं प्राइवेट अस्पतालों की बात करें तो माइनर सर्जरी होने के कारण 5,000 से 10,000 के बीच इसका ख़र्च हो सकता है।
हाइड्रोसील के जोख़िम (Complications of Hydrocele in Hindi)
हाइड्रोसील होने के कारण मरीज़ को रोज़मर्रा के काम करने में दिक्कत आ सकती है जैसे कि कपड़े पहनने में, गाड़ी चलाने में या फिर स्पोर्ट्स एक्टिविटीज़ में। इसके अलावा, सूजन के कारण अंडकोष में चोट लगने का डर भी लगा रहता है। यही नहीं, अगर बहुत दिनों तक इलाज न कराया जाए तो इसके कार्य करने की क्षमता यानि शुक्राणु बनाने की क्षमता कम हो सकती है।
हाइड्रोसील की रोकथाम (Prevention of Hydrocele in Hindi)
जिन जगहों पर फाइलेरियासिस के मच्छर पाएँ जाते हैं वहाँ इन्फेक्शन से बचने की कोशिश करनी चाहिए। अंडकोष में किसी भी तरह की छोटी मोटी चोट को नज़रअन्दाज़ न करें और समय पर डॉक्टर को दिखाएं।
डॉक्टर की सलाह (Doctor’s advice in Hindi)
हाइड्रोसील एक बहुत ही सामान्य बीमारी है जिसे लेकर किसी तरह के शर्म या डरने की आवश्यकता नहीं है इसलिए कोई भी लक्षण दिखने पर समय रहते ही डॉक्टर से संपर्क करें और इलाज कराएं।
डिस्क्लेमर- हाइड्रोसील रोग के लक्षण, कारण और इलाज पर लिखा गया यह लेख पूर्णतः डॉक्टर अनुभव राज, यूरोलॉजिस्ट द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Hydrocele, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Anubhav Raj (Urologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.