क्या है टॉन्सिलाइटिस और कैसे होता है इसका इलाज, जानिए डॉक्टर एच पी सिंह, ईएनटी सर्जन से।
- टॉन्सिलाइटिस के प्रकार
- क्या हैं इसके लक्षण?
- क्यों होता है टॉन्सिलाइटिस?
- टॉन्सिलाइटिस के जोखिम
- क्या है टॉन्सिलाइटिस का इलाज
- कैसे करें टॉन्सिलाइटिस से बचाव?
क्या आपके बच्चे को बार बार गले में दर्द होता है और बुखार रहता है? क्या उसे खाने पीने में मुश्किल होती है या सही से विकास नहीं हो रहा है। अगर आपके बच्चे में इस तरह के लक्षण हैं, तो ये टॉन्सिलाइटिस हो सकता है। हमारे गले के पिछले हिस्से में कुछ लिम्फॉइड फॉलीकल्स होते हैं जिन्हें टॉन्सिल्स कहा जाता है। इनकी संख्या दो होती है जो जीभ के पिछले हिस्से में दायीं और बायीं तरफ़ मौजूद होते हैं। ये टॉन्सिल्स हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम यानि प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं। हम जो कुछ भी खाते पीते हैं, उसके साथ कई तरह के जीवाणु और दूसरे हानिकारक पदार्थ गले के रास्ते अंदर जाते हैं। ये टॉन्सिल्स इन्हीं पदार्थों और संक्रमण फ़ैलाने वाले तत्वों को अंदर जाने से रोकते हैं। जैसे जैसे एक व्यक्ति की उम्र बढ़ती है इन टॉन्सिल्स की ज़रूरत कम हो जाती है।
टॉन्सिलाइटिस के प्रकार (Types of Tonsillitis in Hindi)
टॉन्सिलाइटिस दो तरह का होता है – एक्यूट और क्रोनिक। एक्यूट टॉन्सिलाइटिस ज्यादातर बच्चों में देखने को मिलता है जिसमें टॉन्सिल्स का इंफेक्शन अचानक और कम वक्त के लिए होता है। ये परेशानी छोटे बच्चों में बहुत ही ख़तरनाक हो सकती है। वहीं क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस के लक्षण थोड़े अलग और हल्के होते हैं जो बच्चों और बड़ों दोनों में देखे जाते हैं। क्योंकि इसके लक्षण थोड़े कम होते हैं इसलिए ये लंबे वक्त तक मरीज़ को परेशान करते हैं।
क्या हैं इसके लक्षण? (Symptoms of Tonsillitis in Hindi)
एक्यूट टॉन्सिलाइटिस ज्यादातर बच्चों को होता है इसलिए इसके लक्षण भी साफ़ तौर पर नज़र आते हैं जैसे गले में दर्द होना, बुखार आना, सांस लेने और खाने-पीने में परेशानी होना। अगर बच्चा बहुत छोटा है और बोल नहीं सकता, तो ऐसे में वो खाने पीने से मना करता है या कभी कभी उन्हें उल्टी भी हो जाती है। बच्चे पेट दर्द की भी शिकायत करते हैं साथ ही थकावट महसूस करते हैं। गले में होने वाली बीमारियों की बात करें, तो एक्यूट टॉन्सिलाइटिस ना सिर्फ़ भारत बल्कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पाए जाने वाला रोग है।
क्यों होता है टॉन्सिलाइटिस? (Why does Tonsillitis occur in Hindi)
टॉन्सिल्स का काम है किसी भी तरह के इंफेक्शन को अंदर जाने से रोकना इसलिए साल में एक या दो बार टान्सिल्स खुद भी संक्रमित हो जाते हैं जो कि एक सामान्य बात है। लेकिन अगर टॉन्सिल्स बार बार संक्रमित हो या इनमें लगातार इंफेक्शन रहे, तो सावधान हो जाना चाहिए। अगर टॉन्सिल्स में संक्रमण की वजह से इनका आकार बढ़ जाए और इससे मरीज़ को सांस लेने में परेशानी होने लगे तो इलाज कराना ज़रूरी है। बच्चों में ज्यादातर बैक्ट्रियल इंफेक्शन की वजह से टॉन्सिलाइटिस होता है क्योंकि छोटे बच्चे किसी भी चीज़ को मुंह में डाल लेते हैं। वहीं आजकल गैस्ट्रोइसोफेगल रिफल्कस (Gastro esophageal Reflux) बीमारी की वजह से भी क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस होते देखा जा रहा है। इसके अलावा इम्यूनिटी कमज़ोर होने पर या खान-पान सही नहीं होने से भी टॉन्सिलाइटिस हो जाता है।
टॉन्सिलाइटिस के जोखिम (Complications of Tonsillitis in Hindi)
ये एक सामान्य बीमारी है लेकिन फिर भी इसके कई जोखिम हो सकते हैं। अगर बार बार टॉन्सिल्स हो तो बच्चे का विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता। बच्चे की भूख कम हो जाती है जिससे वज़न भी घट जाता है। गले में फोड़ा या गांठ भी बन सकता है। टॉन्सिलाइटिस में कुछ बैक्टीरिया ऐसे भी होते हैं जो आगे जाकर दिल की बीमारी के कारण बन सकते हैं। कुछ मामलों में छोटे बच्चों को टॉन्सिल्स में संक्रमण की वजह से डिप्थीरिया (Diphtheria) नाम की बीमारी हो जाती है जिसमें टॉन्सिल्स के उपर झिल्ली बन जाती है। हालांकि पूरी दुनिया में डिप्थीरीया की रोकथाम के लिए टीकाकरण अभियान से इसे कंट्रोल किया जा चुका है लेकिन आज भी कई बच्चों में इसकी परेशानी देखने को मिलती है।
क्या है टॉन्सिलाइटिस का इलाज (Treatment of Tonsillitis in Hindi)
छोटे बच्चों में होने वाला एक्यूट टॉन्सिलाइटिस और क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस का इलाज ज्यादातर दवाइयों से ही हो जाता है। इसमें एंटी बायोटिक दवाइयां भी दी जाती हैं जो बहुत ही कारगर साबित होती हैं। ये दवाइयां पांच से सात दिनों तक खानी होती है। लेकिन अगर किसी वजह से बार बार टॉन्सिल्स में इंफेक्शन हो रहा हो या टॉनिसल्स इतने बड़े हो जाएं कि खाने पीने में दिक्कत हो, सांस लेने में परेशानी हो या बहुत ज्यादा खर्राटें लेने की शिकायत हो, तो इसे सर्जरी के ज़रिए ही ठीक किया जा सकता है। अगर टॉन्सिलाइटिस एक साल में सात बार से ज्यादा हो, दो साल में लगातार पांच बार से ज्यादा हो या फिर तीन साल में लगातार तीन बार से ज्यादा हो तो ऑपरेशन कराना ज़रूरी हो जाता है। अगर बच्चे की उम्र पांच साल से कम हो तो ऑपरेशन करने में ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है। हालांकि आजकल टॉन्सिल्स के ऑपरेशन एक रूटीन ऑपरेशन की तरह हो गए हैं इसलिए इसमें घबराने की कोई बात नहीं होती।
कैसे करें टॉन्सिलाइटिस से बचाव? (Prevention Tonsillitis in Hindi)
छोटे बच्चों के खाने पीने का ख़ास ख्याल रखें। उनके भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियां, दाल, रोटी, चावल वगैरह ज़रूर शामिल करें जिससे उनकी इम्यूनिटी मज़बूत हो। इम्यूनिटी मज़बूत होने से किसी भी तरह के इंफेक्शन का ख़तरा कम हो जाता है। इसके अलावा जो बच्चे स्कूल जाते हैं उनमें ये संक्रमण एक से दूसरे को फ़ैलने का ख़तरा होता है फिर भी अगर बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो तो टॉन्सिलाइटिस से बचा जा सकता है।
डिस्कलेमर – टॉन्सिलाइटिस, इसके लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर एच पी सिंह, ईएनटी सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Tonsillitis Disease, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Hp Singh (ENT Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.