क्या आप अपनी त्वचा में हो रहे मुंहासों से परेशान हैं तो जानिए मुंहासों के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में डॉक्टर प्रभा सिंह, त्वचा विशेषज्ञ से।  

हमारी त्वचा के अंदर ग्रंथियां पायी जाती हैं जिसे मेडिकल भाषा में सिबेशियस ग्लैंड (Sebaceous gland) कहा जाता है। ये ग्रंथियां ठीक हमारी त्वचा के नीचे पायी जाती है जिनसे तेल निकलता है। इन ग्रंथियों से निकलने वाले तेल की वजह से ही हमारी त्वचा में नमी बनी रहती है। तेल के ज्यादा बनने पर हमारी त्वचा तैलीय हो जाती है जबकि कम तेल बनने पर ये रूखी हो जाती है। इन ग्रंथियों में जब किसी तरह का बैक्टीरियल इंफेक्शन हो जाता है तो इससे मुंहासे निकल आते हैं। ये मुंहासे लाल रंग के होते हैं जिनमें दर्द रहने के साथ ही पस भी निकलता है।  

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कितने तरह के होते हैं मुंहासे? (What are the types of acne in Hindi)

हल्के मुंहासों को माइल्ड एक्ने (Mild acne) कहा जाता है जिसमें ग्रंथियों से निकालने वाला सीबम सफ़ेद रंग का होता है और वह त्वचा के बाहर आता है जिसे व्हाइट हेड (White head) कहते हैं। कभी कभी सफेद रंग का ये सीबम मरी हुई कोशिकाओं यानि डेड स्किन के जमने से बाहर नहीं निकल पाता लेकिन जब आप इसे थोड़ा सा दबाते हैं तब ये बाहर आता है। इसी जगह पर अगर मेलानिन बनाने वाले सेल्स या फिर धूल मिट्टी जम जाने पर उसका रंग बदलकार काला हो जाता है जिसे ब्लैक हेड्स कहा जाता है। इन व्हाइट और ब्लैक हेड्स में जब बैक्टीरिया की ग्रोथ होती है तो ये उभर जाते हैं और लाल रंग के दिखते हैं जिसे लोग मुंहासे कहते हैं जबकि मेडिकल भाषा में इसे माइल्ड एक्ने या फिर ग्रेड 1 पिंपल्स कहते हैं। इन्हीं मुंहासों में अगर सूजन के साथ पस भी भर जाए तो इसे पस्ट्यूल (pustule) या फिर मवाद वाले पिंपल्स कहा जाता है जो ग्रेड 2 एक्ने होता है। कभी कभी इन दानों में गांठ भी पड़ने लग जाती है जिसे नॉड्योलोसिस्टिक या फिर गांठ वाले पिंपल्स कहते हैं जो ग्रेड 3 एक्ने होते हैं।  

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मुंहासे होने के कारण (Causes of acne or pimples in Hindi) 

ज्यादातर 16 साल से लेकर 24 साल तक की उम्र के युवा लड़के-लड़कियों में पिंपल्स की परेशानी देखी जाती है जिसकी वजह है उनके शरीर में मौजूद हॉरमोन्स में बदलाव। इस अवस्था में युवाओं के हॉरमोन्स में बदलाव के कारण शरीर की लगभग सभी ग्रंथियां हाइपर एक्टिव हो जाती है जिनमें से सीबम ग्लैंड भी एक है। ज्यादा एक्टिव होने की वजह से इन ग्रंथियों से तेल अधिक मात्रा में निकलता है और उसमें धूल मिट्टी या बैक्टीरिया जम जाने के कारण मुंहासे निकलते हैं। इसके अलावा 20 से 30 साल की उम्र की महिलाओं में भी चेहरे पर पिंपल्स आते हैं जिसका कारण है पीसीओडी यानि पॉली सिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर। पीसीओडी के कारण पीरियड्स में अनियमितता, चेहरे पर बाल आने के साथ ही पिंपल्स भी हो जाते हैं जो कभी कभी बड़ी उम्र तक की महिलाओं में भी देखने को मिलता है जिसे हॉरमोनल एक्ने कहते हैं। इसके अलावा काम करने वाली जगह के वातावरण की वजह से भी मुंहासे हो जाते हैं। अगर आपको खरोंचने और खुजलाने की आदत है तो इससे भी दानें हो जाते हैं। कई लोग चेहरे पर तरह तरह की क्रीम का इस्तेमाल करते हैं जिसके कारण मुंहासे हो जाते हैं। वैसे तो मुंहासे अधिकतर चेहरे पर ही आते हैं लेकिन इसके अलावा पीठ, कांख, होठ और निजी अंगों के आसपास भी पिंपल्स हो जाते हैं।  

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कैसे होता है मुंहासों का इलाज? (How is acne treated in Hindi) 

क्योंकि मरी हुई त्वचा के इकट्टा होने के कराण वहां बैक्टीरिया जम जाते हैं इसलिए डेड स्किन को हटाना बहुत ज़रूरी है। डेड स्किन को हटाने के लिए आप कई तरह के घरेलू उपचार कर सकते हैं जैसे कि पपीते का पल्प, चोकर, बेसन को फेस पैक की तरह लगा सकते हैं लेकिन ये याद रखें कि इन फेस पैक्स को बनाने के लिए किसी भी तरह की तैलीय चीज़ जैसे मलाई, दूध, शहद वगैरह का इस्तेमाल ना करें क्योंकि इनसे पिंपल्स और भी बढ़ जाते हैं। इसके अलावा ऐसे फेस वॉश का इस्तेमाल करें जिससे झाग निकले ताकि डेड स्किन ख़त्म हो जाए। ये भी ध्यान दें कि दिन में सिर्फ एक या दो बार ही फेस वॉश का इस्तेमाल करें और अगर फिर भी चेहरे पर तेल आए तो उसे सिर्फ पानी से धो लें।  

मुंहासों के लिए दवा (Medicines for acne in Hindi) 

माइल्ड एक्ने होने पर फेस वॉश के साथ ही रात को सोने के समय रेटिनॉइड्स या फिर बेन्जॉइल पैरोक्साइड युक्त जेल लगा सकते हैं। लेकिन ग्रेड 3 का एक्ने होने पर यानि जिसमें मवाद होता है, उसके लिए डॉक्टर एंटी बायोटिक दवाइयां देते हैं क्योंकि ये अपने आप ठीक नहीं हो सकते। साथ ही अगर इनका सही इलाज नहीं कराया जाए तो ये त्वचा पर दाग़ और गड्ढ़े बना देते हैं।  

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मुंहासों से होने वाले गड्ढ़ों के निशान का इलाज (Treatment of acne scars in Hindi)   

दवाइयों से मुंहासों का इलाज तो हो जाता है लेकिन त्वचा पर गड्ढ़ों के निशान बन जाते हैं जिसे ठीक करने के लिए कॉस्मोटोलॉजी में केमिकल पीलिंग और लेज़र तकनीक का सहारा लिया जाता है। केमिकल पीलिंग गड्ढ़ों के निशान को मिटाने के अलावा पिंपल्स को भी कंट्रोल करता है और डेड स्किन को भी हटाता है। इसे करने में चार से लेकर छह सीटिंग तक लगते हैं। इस ट्रीटमेंट के दौरान धूप में जाना, फेशियल कराना, मेक अप करना वगैरह मना होता है क्योंकि इससे एलर्जी हो सकती है। गड्ढ़ों को भरने करने के लिए डर्मारूलर का इस्तेमाल किया जाता है जिसके लिए कम से कम छह सीटिंग की ज़रूरत पड़ती है। इसके अलावा टीसीए पील (TCA Peel) ट्रीटमेंट में टीसीए लिक्विड को टूथपिक की मदद से त्वचा की अंदरूनी परत को छूते हैं जिससे नई कोशिकाएं बनती हैं और गड्ढ़ों में सुधार होता है। इसके अलावा लेजर ट्रीटमेंट से भी बहुत फ़ायदा पहुंचता है।  

डॉक्टर की सलाह (Doctor’s Advice in Hindi)

लगभग 100 में से 90 लोगों को मुंहासों से दो चार होना ही पड़ता इसलिए इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है। सही खान पान, फेस वॉश, माइल्ड क्रीम की मदद से पिंपल्स से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके बाद भी अगर मुंहासे ठीक ना हों तो त्वचा विशेषज्ञ से दिखाएं।  

डिस्कलेमर – मुंहासे (पिंपल्स) के कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर प्रभा सिंह, त्वचा विशेषज्ञ द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है। 

Note: This information on Acne, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Prabha Singh (Cosmetologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.