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जानिए पाइल्स का पक्का इलाज

PILES_ARSHAD AHMED
बवासीर (पाइल्स) - कारण, लक्षण, इलाज, बचाव | Dr Arshad Ahmad on Causes & Prevention of Piles in Hindi

पाइल्स यानि बवासीर एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज़ को शौच के समय ख़ून का रिसाव होता है। ये रोग ना सिर्फ़ तकलीफ़देह है बल्कि इसपर बात करने से मरीज़ झिझकते हैं और इलाज से डरते हैं। पाइल्स के लक्षण, कारण और इलाज पर विस्तार से बता रहे हैं डॉक्टर अरशद अहमद, कोलोरेक्टल सर्जन।   

हमारे गुदा द्वार के आसपास धमनियों के छोटे छोटे गुच्छे होते हैं जिसे पाइल्स कहा जाता है। ये सभी लोगों में पाए जाने वाली एक सामान्य संरचना है और इसलिए पाइल्स एक तरह से ख़ुद में कोई बीमारी नहीं होती है। ये गुच्छे या पाइल्स जब ज्यादा बड़े हो जाते हैं तो शौच के समय ख़ून का रिसाव होने लगता है। कभी कभी ये गुच्छे नीचे की तरफ़ लटक जाते हैं, ऐसे में इनमें ख़ून का थक्का जम जाता है जिसे थ्रोम्बोसिस कहते हैं। इनमें से कुछ भी होने पर मरीज़ को इलाज की ज़रूरत पड़ती है। ये बहुत ही आम बीमारी है क्योंकि लगभग पचास प्रतिशत लोगों में उम्र के किसी पड़ाव पर पाइल्स से जुड़ी परेशानियां देखने को मिलती हैं। पाइल्स के लक्षण लोगों की जीवनशैली और खानपान से जुड़े होते हैं। जिन लोगों की जीवनशैली संतुलित नहीं होती या फिर वे शारीरिक रूप से ज्यादा भागदौड़ नहीं करते, उनमें ये बीमारी होने की संभावना बनी रहती है। साथ ही भोजन में फाइबर की कमी, पानी की कमी और कब्ज़ रहने से भी पाइल्स हो सकता है।    

बवासीर के प्रकार (Types of Piles in Hindi)

पाइल्स को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है जिसमें अंदरूनी पाइल्स और बाहरी पाइल्स होते हैं। अंदरूनी पाइल्स चार तरह के होते हैं – अगर धमनियों से सिर्फ़ ख़ून आ रहा हो और गुच्छे नीचे की तरफ़ ना खिसके हों, तो इसे ग्रेड 1 पाइल्स कहते हैं। वहीं अगर ये गुच्छे थोड़े से बाहर आते हैं तो इसे ग्रेड 2 में रखा जाता है। कभी कभी ये गुच्छे इतने ज्यादा बाहर आ जाते हैं कि इन्हें हाथ से अंदर करना पड़े तो इसे ग्रेड 3 पाइल्स कहा जाता है। इसके अलावा अगर इन गुच्छों में सूजन इतनी ज्यादा हो कि वो अंदर ना जा पाएं तो इसे ग्रेड 4 में रखा जाता है। इसके अलावा गुच्छों में ख़ून का थक्का जम जाता है जिसे थ्रोमबोसिस कहते हैं और इससे मरीज़ को बहुत ज्यादा दर्द होता है।  

बवासीर के लक्षण (Symptoms of Piles in Hindi) 

इसमें मरीज़ को शौच के समय बूंद बूंद करके ख़ून आने लगता है। ग़ौर करने वाली बात ये है कि यू ख़ून बिल्कुल ताज़ा होता है। कई बार कुछ दिनों तक ख़ून आने के बाद ये अपने आप ही ठीक हो जाता है और कुछ दिनों बाद या कब्ज़ होने पर दोबारा शुरू हो जाता है। कुछ मामलों में ख़ून का रिसाव लगातार होता है और ठीक नहीं होता। हार्ट के मरीज़ों को ख़ून पतला करने के लिए दवाईयां दी जाती हैं इसलिए अगर मरीज़ को दिल की बीमारी भी है तो ख़ून लगातार आता रहता है। इसके अलावा गुच्छों के बाहर आने पर गुदा के आसपास सूजन हो जाती है और साथ ही ख़ून का थक्का जमने से तेज़ दर्द भी होता है।  

बवासीर का कारण (Causes Piles in Hindi) 

पानी कम पीने की वजह से लोगों को कब्ज़ हो जाता है जिसके कारण शौच के समय उन्हें ज़ोर लगाना पड़ता है। जिन लोगों को कब्ज़ की शिकायत होती है उन्हें बवासीर होने की संभावना ज्यादा होती है। इसके अलावा शारीरिक रूप से कम भागदौड़ करना भी इसकी एक वजह है। आजकल बच्चों में भी पाइल्स की बीमारी देखी जा रही है क्योंकि वो खेलने कूदने के लिए बाहर नहीं जाते हैं। ज़रूरत से ज्यादा टॉयलेट में बैठे रहना भी इसका एक कारण है।  

बवासीर और भगंदर में फ़र्क़ (Difference between Piles and Fistula in Hindi) 

बवासीर और भगंदर दो अलग अलग तरह की बीमारियां है। भगंदर यानि फिस्टुला दरअसल गुदा के आसपास किसी इंफेक्शन की वजह से होता है जिससे वहां फोड़ा बन जाता है। इस फोड़े के फूटने पर उसका एक सिरा अंदर रह जाता है जिसे भगंदर कहा जाता है। इसका इलाज सर्जरी के ज़रिए ही किया जा सकता है जबकि बवासीर के ज्यादातर मामलों में ये दवाईयों से ही ठीक हो सकता है वहीं कुछ मामलों में इसमें सर्जरी की ज़रूरत पड़ती है।  

बवासीर का इलाज (Treatment of Piles in Hindi) 

इलाज से पहले डॉक्टर ये पता लगाते हैं कि मरीज़ को बवासीर की बीमारी है या नहीं क्योंकि दूसरी और कई बीमारियां हैं जिनके लक्षण बवासीर से मिलते जुलते होते हैं। बवासीर के बारे में पता चलने पर सबसे पहले मरीज़ की जीवनशैली और खानपान को ठीक किया जाता है और दवाईयां दी जाती हैं। अगर इसके बाद भी बवासीर के लक्षण होते हैं तो ऑपरेशन की ज़रूरत पड़ती है। हालांकि सिर्फ़ 10 से 20 मामलों में ही ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है जबकि बाकी मामलों में ये दवाईयों और जीवनशैली में बदलाव से ही ठीक हो जाता है। आजकल ऑपरेशन भी आधुनिक तकनीक से किया जाता है जैसे कि डॉपलर, लेजर वगैरह जिससे मरीज़ को दर्द कम होता है और वह जल्दी ठीक हो जाता है।  

क्या घरेलू नुस्खे हैं फ़ायदेमंद? (Are home remedies beneficial in Hindi) 

फाइबर और पानी की मात्रा ज्यादा लेने पर कब्ज़ में फ़ायदा होता है लेकिन ख़ुद से किसी तरह के नुस्खे अपनाना ग़लत है क्योंकि बवासीर से मिलते जुलते लक्षण कई और बीमारियों के भी होते हैं। इसलिए किसी डॉक्टर को दिखाना बहुत ज़रूरी है। डॉक्टर से इलाज कराने के साथ सही भोजन और जीवनशैली ही इसका इलाज है।  

कैसे करें इससे बचाव? (Prevention of Piles in Hindi) 

इससे बचाव के लिए फल और हरी पत्तेदार सब्ज़ियां ज्यादा से ज्यादा खाएं क्योंकि इनमें भरपूर मात्रा में फाइबर होता है। फलों का रस पीने के बजाय उसे खाएं, रोटी बनाते समय आटे में से चोकर या मंड को ना निकालें, हर दिन 3 से 4 लीटर पानी ज़रूर पिएं। इसके अलावा व्यायाम करें, वॉक पर जाएं और शारीरिक रूप से एक्टिव रहें। कई बार बवासीर के मरीज़ और ख़ासकर महिलाएं अपनी परेशानी बताने में संकोच करती हैं जिससे बीमारी बढ़ जाती है या कोई दूसरी बीमारी का ख़तरा बन जाता है। इसलिए बिना किसी संकोच के डॉक्टर के पास जाएं और इलाज कराएं।  

डिस्कलेमर – बवासीर (पाइल्स), इसके लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर अरशद अहमद, कोलोरेक्टल सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।   

Note: This information on Piles, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Arshad Ahmad (Colorectal Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.

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