इंटरस्टीशियल लंग्स डिज़ीज़ेज़ यानि आईएलडी के अंतर्गत फेफ़ड़ों से जुड़ी लगभग 200 से ज़्यादा बीमारियां आती हैं। इन अलग-अलग तरह की बीमारियों की डायग्नोसिस और इलाज उनके कारणों के अनुसार होता है। आईएलडी के बारे में विस्तार से बता रहे हैं डॉ विपुल प्रकाश।

आईएलडी क्या हैं, कितने प्रकार के होते हैं? (What are ILDs & types of ILDs in Hindi)

इंटरस्टीशियल लंग्स डिज़ीज़ेज़ यानि आईएलडी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है बल्कि ये फेफड़े से जुड़े लगभग दो सौ से अधिक रोगों का एक समूह है। फेफड़े से जुड़ी कई तरह की बीमारियां होने से जब फेफड़े सिकुड़ जाते हैं तो उन सभी रोगों को एक समूह में इंटरस्टीशियल लंग्स डिज़ीज़ेज़ कहा जाता है।

Lungs Infection

आईएलडी होने के क्या कारण हैं? (Causes of ILD’s in Hindi)

इंटरस्टीशियल लंग्स डिज़ीज़ेज़ के अंतर्गत कई तरह के रोग आते हैं जिनमें से कुछ रोगों के कारण का पता चल पाता है जबकि कई ऐसी बीमारियां हैं जिनकी वजह का पता नहीं लग पाता। वैसे तो फेफड़ों की कुछ बीमारिया सेल्फ लिमिटिंग होती हैं यानि ये कुछ समय बाद स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं लेकिन जो बीमारियाँ प्रोग्रेसिव यानि आगे बढ़ने वाली होती हैं उनसे फेफड़े धीरे-धीरे सिकुड़ने लगते हैं। फेफड़ों की बीमारियों के कारणों की बात करें तो इसमें सबसे बड़ा कारण है धूम्रपान। इसके अलावा, कुछ कनेक्टिव टिश्यू डिज़ीज़ के कारण भी आईएलडी होता है। इसके अन्य कारणों की बात करें तो धूल-मिट्टी, घास, पशु-पक्षियों के पर वगैरह से भी फेफड़े प्रभावित होते हैं। वैसे तो फेफड़ों की इन बीमारियों के कई कारण गिने जा सकते हैं लेकिन कुछ लंग्स डिज़ीज़ ईडियोपैथिक भी होते हैं यानि जिनके कारणों का अब तक पता नहीं चल पाया है।

आईएलडी के लक्षण कैसे होते हैं? (Symptoms of ILD in Hindi)

आईएलडी के दो प्रमुख लक्षण होते हैं जिसमें से एक है मरीज़ की सांस का फूलना। आईएलडी से पीड़ित मरीज़ को सांस लेने में दिक्कत होती है और सांस फूलती है। वहीं इसके दूसरे लक्षण की बात करें तो मरीज़ को सूखी खांसी आती है।

idiopathic pulmonary fibrosis

आईएलडी का परीक्षण (Testing of ILD in Hindi)

इसमें सबसे पहले मरीज़ की क्लिनिकल जांच की जाती है जिसमें उसके लक्षणों को देखकर आईएलडी का पता लगाया जाता है। इसके बाद रेडियोलॉजी द्वारा मरीज़ की छाती का एक्स-रे करके फेफड़ों में होने वाले किसी तरह के बदलाव को देखा जाता है। अगर एक्स रे में किसी तरह के बदलाव का पता न चले तो एचआरसिटी यानि हाई रिजॉल्यूशन सिटी स्कैन ऑफ थोरेक्स किया जाता है। इसके अलावा, मरीज़ का पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट करके उसके रेस्पिरेटरी स्टेटस का पता लगाया जाता है। कुछ मामलों में बायोप्सी की जाती है और इसके अलावा कई तरह की जांच कर के आईएलडी होने का पता लगाया जाता है।

कैसे होता है इलाज? (Treatment of various types of ILDs in Hindi)

आईएलडी के परीक्षण में उसके कारणों का भी पता लग जाता है कि किस कारण से मरीज़ को फेफड़ों की बीमारी हुई है। यदि धूम्रपान के कारण ऐसा हुआ है तो मरीज़ को धूम्रपान पूरी तरह बंद करना पड़ता है क्योंकि बिना धूम्रपान बंद किए इस तरह के आईएलडी के इलाज का कोई फ़ायदा नहीं होता है। वहीं कनेक्टिव टिश्यू डिज़ीज़ के कारण अगर आईएलडी हुआ हो तो इसमें मरीज़ को इम्यूनोसप्रेसिव दवाइयां देकर इलाज किया जाता है। आईएलडी के कारण फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो जाता है और वो सिकुड़ जाते हैं। फाइब्रोसिस को रोकने के लिए अब कई तरह के ड्रग्स मौजूद हैं। इसके अलावा, मरीज को खाँसी होने पर उसे रोकने के लिए भी दवाइयां दी जाती हैं। कुल मिलाकर आईएलडी के कारणों को जानकर उसी अनुसार इलाज किया जाता है।

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क्या आईएलडी से बचा जा सकता है? (Can all types of ILD be avoided in Hindi)

आईएलडी के जिन कारणों का पता नहीं लग पाता उनकी रोकथाम करना मुश्किल है। परंतु वैसे आईएलडी जो धूम्रपान, डस्ट और कनेक्टिव टिश्यू डिज़ीज़ से जुड़े हैं, उनका इलाज संभव है। धूम्रपान और डस्ट से होने वाले आईएलडी की रोकथाम इन कारणों से दूर रहकर की जा सकती है।

डिसक्लेमर – इंटरस्टीशियल लंग्स डिज़ीज़ेज़ (आईएलडी) के प्रकार, कारण, लक्षण और इलाज के बारे में लिखा गया यह लेख पूर्णतः डॉक्टर विपुल प्रकाश, पल्मोनोलॉजिस्ट द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।

Note: This information on Interstitial lung disease (ILD), in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Vipul Prakash (Pulmonologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.