पार्किंसन्स बीमारी, दिमाग़ के भीतर बेसल गैंगलिया नाम के एक भाग से जुड़ी हुई है। इस बीमारी का नाम अंग्रेज सर्जन जेम्स पार्किंसन्स के नाम पर रखा गया है। यह रोग अधिकत्तर बुज़ुर्गों में देखने को मिलता है। क्या है इस बीमारी के लक्षण, कारण और कैसे हो सकता है इससे बचाव, इसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं डॉक्टर अनूप कुमार ठाकर, न्यूरोलॉजिस्ट।
- किस उम्र में हो सकता है पार्किंसन्स रोग?
- पार्किंसन्स रोग के कारण
- पार्किंसन्स रोग के लक्षण
- कैसे होती है पार्किंसन्स की जांच?
- डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?
- पार्किंसन्स का इलाज
- क्या हो सकती है पार्किंसन्स की रोकथाम?
पार्किंसन्स बीमारी के इलाज की खोज के लिए एरविड कार्लसन नाम के स्वीडिश व्यक्ति को साल 2000 में नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने इसके इलाज के लिए डोपामीन की खोज की थी जो कि एक न्यूरोट्रांसमीटर होता है। इस बीमारी में दिमाग़ के अंदर बेसल गैंगलिया (Basal Ganglia) नाम के भाग का काम करना बंद हो जाता है जिसके कारण व्यक्ति को चलने फिरने और अपने काम करने में मुश्किल होती है।
किस उम्र में हो सकता है पार्किंसन्स रोग? (At what age Parkinson’s can happen in Hindi)
ज्यादातर 50 साल की उम्र के बाद यह बीमारी व्यक्ति में देखने को मिलती है लेकिन कुछ मामलों में यह जेनेटिक भी होती है और इसलिए 20 साल जैसी कम आयु के लोगों को भी पार्किंसन्स रोग हो जाता है। ग़ौर करने वाली बात यह है कि इस बीमारी के लक्षण, दूसरी बीमारियों के लक्षण से भी मिलते जुलते हैं। जो लोग मानसिक रोग से ग्रसित होने पर किसी तरह की दवाई खाते हैं या उल्टी, पेट की समस्या आदि के लिए लंबे समय से दवाई लेतें आ रहे हैं, उनमें भी पार्किंसन्स रोग के जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इसके अलावा जो लोग मस्तिष्क ज्वर, डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर से पीड़ित होते हैं, उनमें भी पार्किंसन्स रोग के जैसे ही लक्षण पाए जाते हैं इसलिए डॉक्टर पार्किंसन्स के मरीज़ों की हिस्ट्री लेकर ऐसी किसी बात का पता लगाते हैं।
पार्किंसन्स रोग के कारण (Causes of Parkinson’s disease in Hindi)
इस रोग के होने का अब तक कोई सटीक कारण का पता नहीं चल पाया है और इस पर दुनिया भर में लगातार रिसर्च चल रही है। दरअसल दिमाग़ में मौजूद सब्सटैनशिया नीग्रा (Substantia Nigra) नाम की कुछ ऐसी कोशिकाएं होती हैं जिनमें डोपामीन नामक द्रव्य की कमी होने पर ये रोग हो जाता है। इसके अलावा दिमाग़ की बीमारियों के लिए खायी जाने वाली दवाइयों, डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर और दिमाग़ी बुखार के कारण भी इसके लक्षण दिखायी देते हैं।
पार्किंसन्स रोग के लक्षण (Symptoms of Parkinson’s in Hindi)
इसके तीन मुख्य लक्षण होते हैं जिसमें से पहला है व्यक्ति के काम करने, खाने पीने, चलने में दिक्कत होना। इसमें मरीज़ अपने कामों को बहुत धीरे करने लग जाता है। इसके अलावा मरीज़ के शरीर में कंपन होती है, ये कंपन तब होती है जब व्यक्ति कोई काम ना कर रहा हो यानि वो स्थिर हो। इसके अलावा व्यक्ति के शरीर में एक कड़ापन (Rigidity) आ जाता है और लचीलापन ख़त्म हो जाता है। इन सभी के कारण व्यक्ति अपने आप को संतुलित नहीं रख पाता और गिर जाता है। बीमारी बढ़ने के साथ उसका शरीर सामने की तरफ़ झुकने लगता है। यही नहीं, धीरे धीरे उस व्यक्ति में डिप्रेशन और चिंता बढ़ने लगती है और दिमाग़ कमज़ोर होने की वजह से वह बातें भूलने लगता है। ऐसे मरीज़ों की सूंघने की शक्ति कम हो जाती है, पेशाब करने में दिक्कत होती है, कब्ज़ हो जाता है, नींद आने में परेशानी होती है और व्यक्ति नींद में अपने हाथ-पैर फेंकने लगता है।
कैसे होती है पार्किंसन्स की जांच? (How is Parkinson’s tested in Hindi)
इस रोग को पहचानने के लिए अब तक किसी तरह की जांच सामने नहीं आयी है इसलिए इसके मरीज़ों के लक्षणों से डॉक्टर स्वयं ही बीमारी का पता लगाते हैं। इसके अलावा कुछ रिसर्च के ज़रिए डोपामीन द्रव्य के घटने का पता लगाकर पार्किंसन्स की पुष्टि की कोशिश भी की जा रही है। हालांकि इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि सभी लोगों में ये द्रव्य उम्र के साथ कम होता जाता है इसलिए ये कहना मुश्किल है कि किसमें इसकी कमी के कारण पार्किंसन्स के लक्षण दिखायी देंगे।
डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए? (When to go to the doctor in Hindi)
क्योंकि ये बीमारी बहुत धीरे धीरे बढ़ती है इसलिए इसकी डायग्नोसिस करना मुश्किल होता है। हालांकि कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिससे कोई आम व्यक्ति भी इस बीमारी को समझकर डॉक्टर से संपर्क कर सकता है जैसे कि स्थिर होने के बाद भी शरीर में कंपन होना, काम करने की गति में कमी आना, लिखावट का छोटा हो जाना वगैरह। इस रोग का इलाज जितनी जल्दी शुरू हो, उतनी ही सफ़लता मिल सकती है।
पार्किंसन्स का इलाज (Treatment of Parkinson’s in Hindi)
इस रोग में डोपामीन की कमी हो जाती है जिसे दवाइयों द्वारा रिप्लेस किया जाता है। इसमें कई तरह की दवाईयां दी जाती हैं जो डोपमीन को बनाए रखने में मदद करती है। हालांकि दवाइयों के अधिक उपयोग से अगर किसी तरह के साइड इफेक्ट्स हों, तो इसके बदले एक नए तरह का इलाज किया जाता है जिसे डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (Deep Brain Stimulation) कहा जाता है। इसमें दिमाग़ के एक हिस्से में पेसमेकर की तरह ही उपकरण लगा दिया जाता है। इसके अलावा दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को रोकने के लिए भी इलाज किया जाता है।
क्या हो सकती है पार्किंसन्स की रोकथाम? (Prevention of Parkinson’s in Hindi)
क्योंकि ये उम्र बढ़ने के साथ होने वाली बीमारी है इसलिए इसे रोक पाना असंभव है। हालांकि इसके लक्षणों से मिलते जुलते लक्षणों वाली बीमारियों जैसे कि डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, दिमाग़ी बुख़ार वगैरह को नियंत्रित करने पर इसे भी कंट्रोल किया जा सकता है।
डिस्कलेमर – पार्किंसन्स रोग के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर अनूप कुमार ठाकर, न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Parkinson’s, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Anup Kumar Thacker (Neurologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.