हमारे शरीर को कार्बोहाइड्रेट, फैट्स, प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन एक संतुलित मात्रा में मिलना ज़रूरी है। इन्हीं में एक है फैट्स यानि वसा जिसकी मात्रा ज्यादा होने से कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है जिससे कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। हाई कोलेस्ट्रॉल के जोखिम और इलाज पर जानकारी दे रहे हैं डॉक्टर प्रवीन कुमार शर्मा, कार्डियोलॉजिस्ट।
- कैसे बनता है कोलेस्ट्रॉल?
- हाई कोलेस्ट्रॉल होने के लक्षण
- हाई कोलेस्ट्रॉल के कारण
- हाई कोलेस्ट्रॉल के जोखिम और जटिलताएं
- क्या है इसका इलाज?
- कैसे करें हाई कोलेस्ट्रॉल से बचाव?
वसा यानि फैट्स हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक क्योंकि हम दिन भर जो भी काम करते हैं उसे करने के लिए लगभग 10 से 20 प्रतिशत उर्जा हमें वसा से ही मिलती है । यही नहीं हमारी शरीर की कोशिकाओं की दीवारें भी इसी वसा की बनी होती हैं। इसके अलावा फैट्स कई तरह के हॉरमोन्स को भी बनाते हैं जैसे कि सेक्स हॉरमोन्स। कई विटामिन ऐसे हैं जो वसा में ही घुलते हैं और उसी के द्वारा शरीर में ट्रांसपोर्ट होते हैं जैसे कि विटामिन A, D, E, K इसलिए हमारे जीवन में वसा बहुत ज़रूरी है । खाने पीने की कई चीज़ों में वसा होती है जिसे आम भाषा में तेल और चर्बी कहा जाता है। वसा तब तक हानिकारक नहीं होती है जब तक उसे संतुलित मात्रा में लिया जाए लेकिन अगर हमारे ख़ून में वसा की मात्रा ज्यादा हो जाए, तो हाइपरलिपिडीमिया (Hyperlipidemia) हो जाता है।
कैसे बनता है कोलेस्ट्रॉल? (How is cholesterol formed in Hindi)
जब भी हम वसायुक्त भोजन करते हैं तो उसका पाचन उसी अवस्था में नहीं होता है। फैट्स को सबसे पहले हमारे लीवर से निकलने वाले बाइल जूस छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ते हैं जिसे इमल्सीफिकेशन कहा जाता है। जबकि हमारे पैन्क्रिया से निकलने वाला पैन्क्रियाटिक जूस इसे पचाने का काम करता है। हमारी आंतों में भी इसका पाचन होता है जिसके बाद ये हमारे ख़ून के साथ लीवर में चला जाता है। लीवर की कोशिकाएं इसे और भी छोटे टुकड़ों में तोड़कर वेरी लो डेनसिटी लाइपोप्रोटीन यानि (VLDL) बनाती है। ये वसा हमारे ख़ून में अकेले घूम नहीं सकता इसलिए इसके साथ एक प्रोटीन जुड़ जाता है जिसके बाद ये लाइपोप्रोटीन कहलाता है। यही लाइपोप्रोटीन वसा का वो रूप है जिससे ये तय होता है कि हमारे ख़ून में वसा ज्यादा है या नहीं। बहुत छोटे वसा के रूप यानि वेरी लो डेनसिटी लाइपोप्रोटीन (VLDL) हमारे लिए उतना हानिकारक नहीं होता जबकि लो डेनसिटी लाइपोप्रोटीन (LDL) नुकसानदेह होता है। हमारी कोशिकाओं में पाये जाने वाला लाइपेज़ एन्जाइम इन सभी तरह के लाइपोप्रोटीन यानि LDL, VLDL और HDL को तोड़कर ट्राइग्लीसिराइड (Triglyceride) को बढ़ाने का काम करता है। इन सभी को एक साथ कोलेस्ट्रॉल के नाम से जाना जाता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल होने के लक्षण (Symptoms of High cholesterol in Hindi)
बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को हाइपरकोलेस्ट्रीमिया कहते हैं जिसमें मरीज़ की आंखों की त्वचा के किनारे या उपर पीले रंग की परत सी दिखने लगती है जो धीरे धीरे बढ़ती जाती है। ख़ून में बढ़े हुए फैट्स का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है जिसे रूटीन लिपिड प्रोफाइल (Routine Lipid Profile Test) टेस्ट कहते हैं। इस टेस्ट में अगर LDL, VLDL और ट्राइग्लीसिराइड बढ़ा हुआ मिलता है तो इससे शरीर में फैट्स की मात्रा ज्यादा होने का पता चलता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल के कारण (Causes of High Cholesterol in Hindi)
डायबिटीज़, लीवर सिरोसिस, हाइपोथायरायडिज्म और दूसरी बीमारियों के वजह से कॉलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है। इसके अलावा मोटापा, ख़राब जीवनशैली, शारीरिक निष्क्रियता और वसा युक्त भोजन से भी कोलेस्ट्रॉल की परेशानी होती है। शराब, धूम्रपान और कई तरह की दवाईयों के इस्तेमाल से भी कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल के जोखिम और जटिलताएं (Risks and Complications of High cholesterol in Hindi)
ये फैट्स जब हमारी महाधमनी या रक्त वहिकाओं (Blood Vessels) के अंदर चलते हैं और इनकी सबसे अंदरूनी परत पर धीरे धीरे जमना शुरू कर देते हैं। फैट्स के जमा होने से वहां पर इन्फलामेट्री सेल्स और कुछ स्मूथ मसल्स सेल्स भी बनने लग जाते हैं। ये जमाव धीरे धीरे कठोर होना शुरू हो जाता है, इसका आकार भी बढ़ जाता है और यह नस की जगह को घेर कर कम करने लगता है। आख़िर में यहां कैलशियम भी जमने लगता है जो बिल्कुल कठोर हो जाता है जिससे नस पतली होने लगती हैं और दूसरी कई परेशानियां होती हैं।
क्या है इसका इलाज? (What is its treatment in Hindi)
सबसे पहले मरीज़ का खाली पेट यानि फास्टिंग ब्लड टेस्ट किया जाता है जिसमें एलडीएलसी (LDL Cholesterol) की मात्रा देखी जाती है। इसके साथ ही एचडीएलसी (HDL Cholesterol) की मात्रा बढ़ी होनी चाहिए वर्ना बीमारी पर असर पड़ता है। इसके इलाज के लिए जो दवाईयां दी जाती हैं वह LDL Cholesterol के आधार पर होती हैं। अगर मरीज़ बहुत हाई रिस्क पर है तो LDL Cholesterol की मात्रा 70 से 100 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम रखते हैं। मध्यम रिस्क वाले मरीज़ पर ये मात्रा 100 से 155 मिलीग्राम रखी जाती है वहीं लो रिस्क में ये 155 से 190 मिलीग्राम रखा जाता है। अगर सामान्य मरीज़ का कोलेस्ट्रॉल 190 से 200 मिलीग्राम प्रति लीटर है तो यह सही है। इसके अलावा मरीज़ की डाइट को प्लान करके भी कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित किया जाता है।
कैसे करें हाई कोलेस्ट्रॉल से बचाव? (How to prevent high cholesterol in Hindi)
हाई कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए सबसे फ़ायदेमंद है हरी सब्ज़ियां और फलों का सेवन। इसके साथ दाल और थोड़े नट्स खाएं जा सकते हैं। मांसाहार में मछली खा सकते हैं लेकिन रेड मीट नहीं क्योंकि इससे ख़ून में फैट्स बढ़ता है। मिठाई, चावल, आलू, सफ़ेद ब्रेड वगैरह से बीमारी बढ़ती है जबकि अंडा, चाय, कॉफ़ी न्यूट्रल होते हैं। कार्बोहाइड्रेट और एल्कोहल से फैट्स बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। खाने के लिए सोयाबीन या वेजिटेबल ऑयल इस्तेमाल करना चाहिए। घी खा सकते हैं क्योंकि इसमें पॉलिअनसैचुरेटेड और मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स होता है जो फ़ायदेमंद होता है। डालडा या फिर ऐसी किसी वसा का उपयोग ना करें जिसे गर्म करना पड़े। इसके बजाय सोयाबीन, मूंगफली, वेजिटेबल और सरसों तेल का इस्तेमाल करें। समुद्री भोजन यानि सी फूड खा सकते हैं क्योंकि इसमें पॉलिअनसैचुरेटेड फैट्स काफ़ी ज्यादा मात्रा में होता है। सैचुरेटेड फैट्स की मात्रा कम लेनी चाहिए। रेड मीट, पैकेज्ड या प्रोसेस्ड मीट का इस्तेमाल कम करना चाहिए। इसके साथ ही व्यायाम करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि इससे फैट्स बर्न हो जाता है।
डिस्कलेमर – हाई कोलेस्ट्रॉल, इसके लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर प्रवीन कुमार शर्मा, कार्डियोलॉजिस्ट द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on High Cholesterol, in Hindi language, is based on an extensive interview with Cardiologist Dr Praveen Kumar Sharma.