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डायबिटीज़ छीन सकती है आपकी आंखों की रौशनी

Dr Anu Tandon on Diabetic Retinopathy
जानिए डायबिटिक रेटिनोपैथी की गंभीरता को। Dr Anu Tandon on Diabetic Retinopathy in Hindi

क्या आपकी आँखों से ख़ून आ रहा है, आंखें सूज गई हैं या फिर उनमें दर्द रहता है। क्या आप डायबिटीज़ के मरीज़ हैं? अगर ये सभी बातें सही हैं, तो हो जाएं सावधान क्योंकि ये लक्षण डायबिटिक रेटिनोपैथी नाम की बीमारी के हैं। जानिए डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण, कारण, इलाज और बचाव के बारे में डॉक्टर अनु टंडन से। 

किस तरह की बीमारी है डायबिटिक रेटिनोपैथी? (What kind of disease is diabetic retinopathy in Hindi)

डायबिटीज़ रेटिनोपैथी एक ऐसी बीमारी है जो डायबिटीज़ के मरीज़ों की आँखों के पर्दों में पाई जाती है। इस बीमारी में मरीज़ की आंखों के पर्दों में मौजूद रक्त की धमनियों में ख़ून की आवाजाही बाधित हो जाती है जिसके कारण आँखों में सूजन के साथ साथ ख़ून भी आ जाता है। यही नहीं, ख़ून की ज़्यादा कमी होने से असामान्य धमनियां भी बन जाती हैं। इस रोग की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि बीमारी के बढ़ जाने पर आंखों की रौशनी हमेशा के लिए जा सकती है। 

किन कारणों से होती है डायबिटिक रेटिनोपैथी? (What causes diabetic retinopathy in Hindi)

डायबिटिक रेटिनोपैथी शुगर के किसी भी मरीज़ में पायी जा सकती है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज़ का शुगर कंट्रोल कैसा है और मरीज़ को कितने समय से डायबिटीज़ की बीमारी है। अगर मरीज़ अपने शुगर लेवल को शुरू से ही नियंत्रित रखता है तो डायबिटिक रेटिनोपैथी होने की संभावना काफ़ी कम रहती है या फिर शुरुआती स्टेज में ही इसका पता चल जाता है लेकिन यदि किसी का शुगर हमेशा बढ़ा हुआ रहता है तो बहुत जल्दी वो इस बीमारी से पीड़ित हो सकता है। दरअसल, ख़ून में शुगर की मात्रा बढ़ जाने से उसके प्रवाह में कमी आ जाती है और इसकी वजह से आंखों में असामान्य धमनियों का निर्माण होने लगता है जो बहुत ही पतली होती है। इन असामान्य धमनियों के बहुत पतले होने के कारण इनसे ख़ून बाहर भी निकल जाता है। डायबिटीज़ के अलावा हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लडप्रेशर, मोटापा, तंबाकू और शराब का सेवन, किडनी का ख़राब होना भी डायबिटीक रेटिनोपैथी की आशंका को  बढ़ाने वाले कारण हैं। 

डायबिटिक रेटिनोपैथी के प्रकार (Types of diabetic retinopathy in Hindi)

डायबिटिक रेटिनोपैथी के दो प्रकार होते हैं – नॉन प्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी और प्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी। नॉन प्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी, बीमारी की शुरुआती स्टेज में देखने को मिलती है जिसमें पर्दों के बीच के हिस्से में जिसे मैक्युला कहते हैं, खून के धब्बे दिखाई देते हैं। इसके अलावा, कुछ पीले धब्बे भी नज़र आते हैं। वहीं, प्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी की बात करें तो इसमें असामान्य ख़ून की धमनियां पर्दों के पीछे ऊपर या फिर आँखों की नसों के ऊपर भी चढ़ जाती हैं और इनसे ख़ून बाहर आने का डर हमेशा लगा रहता है। इसलिए, डॉक्टर को ये समझना बहुत ज़रूरी होता है कि यह नॉन प्रोलिफेरेटिव स्टेज है या फिर प्रोलिफेरेटिव स्टेज। इन दोनों ही स्टेज में पर्दों के बीच के हिस्से यानि मैक्यूला में सूजन भी देखी जाती है। 

किन लक्षणों से करें रोग की पहचान? (Symptoms of Diabetic Retinopathy in Hindi)

आँखों में ख़ून और सूजन होने के अलावा आँखों की रौशनी कम हो जाना, दो आकृतियां दिखना, उड़ते हुए काले धब्बे दिखाई देना, रंगों को पहचानने में दिक्कत होना, रात को दिखाई न देना और मोतियाबिंद जैसी समस्या हो जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं। 

कैसे होता है आँखों का परीक्षण? (How is an eye test done in Hindi)

डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता लगाने के लिए सबसे पहले आंखों में ड्रॉप डालकर पुतलियों को बड़ा करके उसके पर्दों की जांच की जाती है और ये सुनिश्चित किया जाता है कि उसमें किसी तरह के ख़ून के थक्के या पीले धब्बे तो नहीं है। इसके अलावा, पर्दों के आसपास असामान्य ख़ून की धमनियों के बनने का भी पता लगाया जाता है। इसके अलावा डॉक्टर और भी जांच करते हैं जिसमें प्रमुख है फंडस फ्लोरीसीन एंजिओग्राफी जिसमें आँखों की नसों के ज़रिए डाई डालकर समय समय पर उसकी फोटो खींची जाती है और ये पता लगाया जाता है कि धमनियों में ख़ून का प्रवाह कितना है। एक और जांच की जाती है जिसे ओसीटी कहा जाता है और इसके ज़रिए पर्दों की मोटाई और सूजन का पता लगाया जाता है। इसके परीक्षण में आंखों का प्रेशर भी मापा जाता है और आँखों को ख़ून सप्लाई करने वाली धमनियों को चेक किया जाता है क्योंकि प्रोलिफेरेटिव स्टेज में इसके कारण आँखें हिलना भी बंद कर देती है 

इलाज के तरीक़े और लक्ष्य (Mode of treatment and its goals in Hindi)

इसके इलाज का मुख्य लक्ष्य बीमारी को रोक देना या कम कर देना होता है क्योंकि बाद के स्टेज में इसे पूरी तरह ख़त्म करना मुश्किल होता है। हालांकि, अगर मरीज़ डायबिटीज़ को कंट्रोल करके रखते हैं और साथ ही इलाज भी चलता है तो इसका परिणाम अच्छा होता है। इसके इलाज में सबसे ज्यादा प्रचलित है ऐंटी वस्कुलर एंडोथीलियल ग्रोथ फैक्टर के विरुद्ध आंखों मे में इंजेक्शन द्वारा दवाई देना जिससे आँखों की सूजन कम हो जाती है और नई धमनियों का बनना भी रुक जाता है। इसके अलावा लेज़र ट्रीटमेंट द्वारा भी इलाज किया जाता है जिसमें खून की धमनियों में रुकावट को दूर करने की कोशिश की जाती है जिससे कि ऑक्सीजन सप्लाई बढ़े और असामान्य धमनियों का निर्माण बंद हो जाए। 

डिस्क्लेमर – डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण, लक्षण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णतः डॉक्टर अनु टंडन, नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है। 

Note: This information on Diabetic Retinopathy, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Anu Tandon (Ophthalmologist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor. 

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