निमोनिया एक ऐसी बीमारी जो लगभग हर उम्र के लोगों में देखने को मिलती है। कितनी ख़तरनाक हो सकती है ये बीमारी, क्या हैं इसके लक्षण और कैसे किया जा सकता है इससे बचाव जानिए डॉ डी पी मिश्रा, टीबी स्पेश्लिस्ट (TB & Chest Specialist) से।
- क्या और कैसे होता है निमोनिया?
- क्या है निमोनिया होने का कारण?
- कई तरह का होता है निमोनिया
- कैसे पहचाने निमोनिया के लक्षण?
- निमोनिया की जांच
- क्या है निमोनिया का इलाज?
- निमोनिया से बचाव के लिए क्या है उपाय?
- क्या कोविड-19 निमोनिया का ही एक रुप है?
आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में लगभग 10-12 बार सांस लेता है। सांस लेने की इस प्रक्रिया में मदद करते हैं हमारे फेफड़े (Lungs)। सांस लेने के दौरान हमारे फेफड़े फूल जाते हैं या आकार में बड़े हो जाते हैंवहीं सांस छोड़ते समय ये सिकुड़ जाते हैं। यानि फेफड़ा सांस लेने की प्रक्रिया का सबसे ज़रूरी अंग है। लेकिन कई वजहों से फेफड़ों में अन्य प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं जो कि जानलेवा भी साबित हो सकती हैं। फेफड़ों में होने वाली ऐसी ही एक बीमारी है निमोनिया। निमोनिया के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे डॉ डी पी मिश्रा, टीबी स्पेश्लिस्ट (TB & Chest Specialist)
क्या और कैसे होता है निमोनिया? (What is Pneumonia?)
निमोनिया फेफड़ों में होने वाला एक संक्रमण यानि इंफेक्शन है। जब कोई व्यक्ति सांस लेता है तो हवा हमारे नाक से होते हुए हमारे फेफड़ों तक पहुंचती है। हमारे फेफड़ों के अंदर ब्रोन्क्योलिस से जुड़े छोटे छोटे गुच्छे होते हैं जिसे अलव्योली (Alveoli) या वायु कोष्टक कहा जाता है।यह गुच्छे हवा को हमारे खून में भेजने का काम करते हैं। इन्हीं गुच्छों (Alveoli) में जब किसी वजह से संक्रमण हो जाता है तो इसे ही निमोनिया कहा जाता है। संक्रमण की वजह से ये वायु कोष्टक अच्छी तरह से काम नहीं कर पाते।
क्या है निमोनिया होने का कारण? (Causes of Pneumonia)
निमोनिया होने के कई कारण हो सकते हैं। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में पहले से ही कोई बैक्टिरियल संक्रमण है और उसका इलाज ना होने से यह बैक्टीरिया फेफड़ों तक पंहुच कर उसे भी संक्रमित कर सकता है। साथ ही यह कई तरह के वायरस जैसे स्वाइनफ्लू, डेंगू या कोविड के वायरस के ज़रिए भी हमारे फेफड़ों तक पहुंच सकता है।
कई तरह का होता है निमोनिया (Types of Pneumonia)
वैसे तो निमोनिया बीमारी होने की कई वजह हो सकती हैंलेकिन खासकर निमोनिया को तीन कैटेगरी में बांटा जा सकता है।
1. बैक्टिरियल निमोनिया (Bacterial Pneumonia) – इस तरह का निमोनिया बैक्टिरिया की वजह से होता है। शरीर में मौजूद किसी भी तरह के बैक्टिरियल इंफेक्शन का अगर सही इलाज ना हो तो वो फेफड़ों को भी संक्रमित कर सकता है।
2. वायरल निमोनिया (Viral Pneumonia) – कई तरह की बीमारियां जैसेडेंगू, स्वाइन फ्लू, सर्दी-ज़ुकामफैलाने वाले वायरस से होने वाला निमोनिया वायरल निमोनिया कहलाता है। सांस लेने के दौरान कई तरह के वायरस हमारे फेफड़ों तक पहुंच कर बीमार कर सकते हैं।
3. एस्पिरेशन निमोनिया(Aspiration Pneumonia) – इस तरह का निमोनिया तब होता है जब खाने-पीने की कोई चीज़ हमारे फूड पाइप (Oesophagus) में ना जाकर हमारे फेफड़ों में चली जाती हैऔर इस वजह से हमारे फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं।
इन तीनों केअलावा अगर कोई व्यक्ति पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है तो ऐसे में भी निमोनिया होने का ख़तरा बना रहता है।
कैसे पहचाने निमोनिया के लक्षण? (How to detect the symptoms of pneumonia?)
निमोनिया के लक्षण को बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है। किसी भी प्रकार का निमोनिया, चाहे वो बैक्टिरियल हो या वायरल या फिर किसी और वजह से होने वाला निमोनिया, एक आम व्यक्ति इसके लक्षणों से इस बीमारी का पता लगा सकता है। अगर किसी व्यक्ति को कंपकंपी के साथ तेज़ बुखार और खांसी हो, साथ ही सांस भी फूलने लगे तो ऐसे में निमोनिया होने का ख़तरा हो सकता है।
निमोनिया की जांच (Diagnosis of pneumonia in Hindi)
निमोनिया की जांच करनेके लिए मरीज़ की मेडिकल हिस्ट्री का पता करना बहुत ज़रुरी है ताकि बीमारी की गंभीरता का पता चल सके। अगर किसी मरीज़ को तेज़ बुखार, खांसी और सांस फूलने की शिकायत हो तो ऐसे में यह निमोनिया हो सकता है। जांच में सबसे पहले यह पता लगाना ज़रुरी है कि मरीज़ को किस तरह का निमोनिया है। क्या वह बैक्ट्रियल निमोनिया है या फिर वायरल निमोनिया? निमोनिया की जांच के लिए मरीज़ का ब्लड टेस्ट किया जाता है ताकि उसमें मौजूद न्यूट्रोफिल्स की संख्या को गिना जा सके।
अगर न्यूट्रोफिल्स की संख्या ज्यादा पाई जाती है तो यह बैक्ट्रियल निमोनिया हो सकता है। वहीं अगर न्यूट्रोफिल्स की संख्या ठीक है लेकिन फेफड़ों में किसी तरह की परेशानी के लक्षण हैं तो यह वायरल निमोनिया हो सकता है। इसके अलावा मरीज़ के बलगम की भी जांच की जाती है। लेकिन निमोनिया को जांचने के लिए किए जाने वाला एक्स-रे जांच सबसे कारगर साबित होता है क्योंकि इसमें मरीज़ के फेफड़ों (Lungs) की एक्स-रे जांच करके बीमारी का पता लगाया जाता है।
निमोनिया होने पर फेफड़ों में सफेद रंग के धब्बे हो जाते हैं जिसे होमोओपैसिटी (Homo Opacity) कहा जाता है। यह धब्बे दोनों फेफड़ों या किसी एक फेफड़े में भी पाए जा सकते हैं। ये धब्बे दो तरह के हो सकते हैं – होमोजेनेस या हेट्रोजेनेस। होमोजेनेस ओपेसिटी में ये धब्बे फेफड़ों के किसी एक ही भाग पर पाए जाते हैं और इसेलोबार निमोनिया(Lobar Pneumonia)कहा जाता है। लेकिन हेट्रोजेनेस ओपेसिटी में ये सफेद छोटे-छोटे धब्बे पूरे फेफड़ों में कई जगह पाए जाते हैं और यह ब्रोन्कॉल निमोनिया (Bronchial Pneumonia) कहलाता है। एक्स-रे के बाद दूसरे ज़रुरी स्पेशल टेस्ट भी किए जाते हैं जैसे PCT टेस्ट ताकि इंफेक्शन के लेवल का पता लगाया जा सके।
बैक्ट्रियल और वायरल निमोनिया के अलावा एस्पीरेशन निमोनिया भी काफी लोगों में देखने को मिलता है खासकर बच्चों और बुज़ुर्गों में। छोटे बच्चों के दूध पीने के दौरान दूध सांस की नली (Trachea)से होकर फेफड़ों में पहुंच जाता है जिसकी वजह से बच्चों को निमोनिया होने का ख़तरा बढ़ जाता है। इसके अलावा बूज़ुर्गों को भी यह बीमारी हो जाती है जब खाने या पीने की कोई चीज़ फेफेड़ों में चली जाती है।
क्या है निमोनिया का इलाज? (Treatment for pneumonia in Hindi)
निमोनिया का इलाज करने के लिए डॉक्टर्स पहले यह पता लगाते हैं कि यह किस तरह का निमोनिया है। निमोनिया के इलाज के लिए डॉक्टर्स मरीज़ को एंटी बायोटिक दवाईयां देते हैं।बैक्ट्रियल निमोनिया होने पर मरीज के स्पूटम (कफ़) और ब्लड (खून) का कल्चर करके बैक्ट्रिया का पता लगाया जाता है और दवाईयां दी जाती हैं।
वायरल निमोनिया का पता लगाने के लिए स्वैब का टेस्ट करके वायरस का पता लगाया जाता है और दवाईयां दी जाती हैं। साथ ही मरीज़ का बुखार कम करने के लिए दवाईयां दी जाती है। इसके अलावा सांस लेने में परेशानी होने पर ऑक्सीजन भी दिया जाता है। परंतु निमोनिया में कभी कभी मरीज़ की हालत ज्यादा गंभीर भी हो जाती है। अगर मरीज़ अपना दिमागी संतुलन खो रहा है या उसके होठ और नाखून नीले पड़ जाएं या फिर ब्लड प्रेशर और ऑक्सीजन का लेवल कम हो जाए तो ऐसी हालत में मरीज़ को फौरन आईसीयू में एडमिट करना ज़रुरी हो जाता हैं।
निमोनिया से बचाव के लिए क्या है उपाय? (Prevention for Pneumonia in Hindi)
आम तौर पर मौसम बदलने पर या ठंड के मौसम में बड़ी तादाद में लोगों को सर्दी, ज़ुकाम और खांसी हो जाती है जिसे कम्यूनिटी निमोनिया कहा जाता है। अगर सर्दी, ज़ुकाम या खांसी लंबे समय तक रहे या बढ़ जाए तो यह निमोनिया हो सकता है। ऐसे में लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए की वे अपना सही समय पर इलाज करांए। इसके अलावा लोगों को अचानक ठंडे-गर्म वातावरण से बचना चाहिए। बच्चों को दूध पिलाते समय ध्यान रखना चाहिए कि दूध सांस की नली में ना चला जाए। इसके अलावा बुज़ुर्गों और खासकर वैसे बुज़ुर्ग जिन्हें लकवा या पार्किसॉन्स (Parkinson’s) जैसी बीमारी हो, उनके खाने पीने की चीजों का खास ख्याल रखना चाहिए।
क्या कोविड-19 निमोनिया का ही एक रुप है? (Is Covid-19 a form of pneumonia?)
कोविड -19 एक वायरस इंफेक्शन है और इसकी शुरुआत बुखार, सर्दी, ज़ुकाम से होती है लेकिन जब ये इंफेक्शन व्यक्ति के फेफेड़ों तक पहुंच कर उसे खराब करना शुरु कर देता है तब इसे हम निमोनिया कहते हैं। ऐसे में मरीज़ की सांस फूलने लगती है और ऑक्सीजन का लेवल कम हो जाता है। अगर किसी व्यक्ति का ऑक्सीजन लेवल कम हो जाए और सांस फूलने लगे तो ऐसे में सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि ये कोविड के लक्षण हो सकते हैं। सी टी स्कैन CT (scan) के ज़रिए यह पता लगाया जाता है कि दोनों फेफड़ों में नीचे ग्राउंड ग्लास ओपौसिटी (Ground glass Opacity)है या नहीं। अगर फेफड़ों में ग्राउंड ग्लास ओपौसिटी (Ground glass Opacity) पाई जाती है तो इसका मतलब फेफडों में कोविड का इंफेक्शन हो गया हैं। लेकिन अगर दोनों फेफड़ों में निमोनिया बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो ऐसे में मरीज़ एक्यूट रेसपिरेटरी डिसऑर्डर सिंड्रोम (Acute Respiratory Disorder Syndrome) का शिकार हो जाता है और यह जानलेवा साबित हो सकता है। ऐसे में मरीज़ को ऑक्सीजन के साथ साथ वेंटीलेटर की भी ज़रुरत पड़ती है। इसलिए यह ध्यान रखना ज़रुरी है कि कोविड-19 से फेफड़ों में इंफेक्शन हुआ है या नहीं ताकि वक्त रहते डॉक्टर इसका इलाज कर सकें और मरीज़ को एक्यूट रेसपिरेटरी डिसऑर्डर सिंड्रोम में जाने से रोक सकें।
डिस्क्लेमर – निमोनिया, इसके लक्षण, कारण तथा इलाज पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: टीबी स्पेश्लिस्ट डॉक्टर डी पी मिश्रा द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।
Note: This information on Pneumonia Disease, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr D P Mishra (TB & Chest Specialist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.