कोविड 19 के असर से लोग ना सिर्फ़ शारीरिक परेशानी बल्कि मानसिक तनाव से भी गुज़र रहे हैं फिर चाहे वे युवा हों, बुज़ुर्ग हों या बच्चे। घरों में क़ैद हो जाना, लोगों से मिलना जुलना बंद हो जाना, मनोरंजन के साधन ख़त्म हो जाने से लेकर लोग अपने रोज़गार और परिवार के लिए काफ़ी चिंता में जी रहे हैं। इस बुरे वक्त में कैसे रखें अपने दिमाग़ को शांत और संतुलित, बता रहे हैं डॉक्टर मोहम्मद अलीम सिद्दीक़ी, मनोचिकित्सक।  

किसी भी महामारी के दौरान पहली लहर शारीरिक दिक्कतों को लेकर ही होती है लेकिन उसके बाद लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी काफ़ी असर पड़ता है क्योंकि ये समय भरा होता है मानसिक तनाव और उलझनों से। कोरोना काल की वजह से लोगों की ज़िदंगी में बहुत बड़ा फर्क़ आया है। लोग अपने घरों में रहने को मजबूर हैं और बाहर नहीं जा सकते। साथ ही लोग अपने परिवार, रोज़गार और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में लोगों के अंदर चिड़चिड़ापन, गुस्सा, नींद ना आना और उलझनों को बढ़ते देखा जा रहा है जिससे परिवार में लड़ाई झगड़े बढ़ गए हैं। साथ ही बच्चे मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे उनकी सेहत पर भी असर पड़ रहा है। इसके अलावा कुछ लोगों में मानसिक विकार की शुरूआत भी देखी जा रही है। 

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किस तरह के लोगों पर पड़ता है ज्यादा असर? (What kind of people has more impact in Hindi) 

ऐसे हालात में किसी को भी मानसिक तनाव हो सकता है जिसमें चिंता होना, नींद ना आना, मूड ख़राब रहना जैसे चीज़ें हो सकती हैं। लेकिन जिन लोगों को पहले से ही किसी तरह की मानसिक दिक्कत होती है उन लोगों में घबराहट, बेचैनी, बुरे ख़्याल आना, डिप्रेशन वगैरह जैसी समस्याएं पैदा हो रहीं हैं। यही नहीं, कुछ लोगों में नकारात्मकता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि उनके अंदर आत्महत्या तक का ख़्याल आते पाया गया है। परिवार के सदस्यों के बीच झगड़े भी बढ़ गए हैं। 

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क्या इस समय तनाव और डिप्रेशन बढ़ गया है? (Has stress and depression increased at this time in Hindi)

डिप्रेशन और घबराहट एक दिमाग़ी समस्या यानि ब्रेन डिस्आर्डर है। जब किसी व्यक्ति के अंदर लंबे समय तक तनाव लगातार बना रहता है तो उसे क्रोनिक स्ट्रेस (Chronic Stress) कहा जाता है। यह क्रोनिक स्ट्रेस शरीर की रक्षात्मक प्रणाली (Defence Mechanism) को कमज़ोर कर देता है। इस क्रोनिक स्ट्रेस की वजह से शरीर में बन रहे कॉर्टीसोल नाम के हॉरमोन का स्तर बढ़ा रहता है। हाईपर कॉर्टीसोलिमिया के लगातार रहने से नसों को नुकसान पहुंचता है और नसों का तालमेल प्रभावित होता है जिसके कारण पहले से मानसिक तनाव से पीड़ित लोगों में घबराहट और चिंता पैदा हो जाती है।  

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मानसिक रोग या तनाव को कैसे पहचानें? (How to recognize mental illness in Hindi)

हर एक व्यक्ति के काम करने और व्यवहार करने का एक सामान्य तरीक़ा होता है जो उसकी बेस लाइन यानि आधार रेखा होती है। किसी भी परेशानी के समय व्यक्ति इस आधार रेखा से अलग व्यवहार करने लग जाता है जो कि एक सामान्य बात है लेकिन कुछ दिनों बाद वो वापस अपने पुराने स्वभाव पर लौट आता है। लेकिन अगर तनाव इतना अधिक हो कि उससे व्यक्ति के सामाजिक व्यवसायिक कार्य प्रभावित हो रहा हो तो ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य एक्सपर्ट से ज़रूर संपर्क करना चाहिए। ऐसे लोगों में मूड ख़राब होना, चिड़चिड़ापन, बुरे विचार आना, अपने मनपसंद के कामों में भी मन ना लगना, आत्मविश्वास कम होना, काम करने की दक्षता कम होना, सिर दर्द होना, शरीर में दवा लेने के बाद भी दर्द का बने रहना वगैरह जैसे लक्षण पाए जाते हैं।     

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कैसे होता है मानसिक रोग का इलाज? (Treatment of mental illness in Hindi)

इसका इलाज सुरक्षित और आसान है क्योंकि जिस तरह से लोगों को ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़ की दवाइयां देकर कमी को पूरा किया जाता है उसी तरह मानसिक परेशानी के लिए भी डॉक्टर मरीज़ों को दवाइयां देते हैं जो कि पूरी तरह सुरक्षित है। लोगों को इन दवाइयों को लेकर भ्रांति है कि इनसे शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचता है, लेकिन यह सही नहीं है। ये दवाइयां पूरी तरह से सुरक्षित हैं और डॉक्टर द्वारा बताए गए तरीक़े से इन्हें लेना चाहिए। इसके अलावा दिमाग़ की ट्रेनिंग के लिए साइको थेरेपी भी करायी जाती है जिससे दिमाग़ के सोचने के तरीक़े में बदलाव आता है और बुरे विचारों को दूर करने में मदद मिलती है।  

डिस्कलेमर – कोविड 19 के दौरान लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर और मानसिक तनाव से बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर मोहम्मद अलीम सिद्दीक़ी, मनोचिकित्सक द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।    

This information on Mental Health during Covid19, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Mohammad A Siddiqui (Psychiatrist) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.