क्या आपके जोड़ों में दर्द रहता है जिसकी वजह से आप ठीक से काम नहीं कर पाते, इसकी वजह है गठिया रोग यानि आर्थेराइटिस। आर्थेराइटिस के बारे में विस्तार से बता रहे हैं डॉक्टर संदीप गर्ग, ऑर्थोपेडिक सर्जन।  

हमारे शरीर में हड्डियों के जोड़ होते हैं जिनके बीच में एक तरह की झिल्ली यानि कार्टिलेज मौजूद होता है। इन्हीं कार्टिलेज की मदद से हमारी हड्डियां चलती फिरती है या उनका मूवमेंट होता है। वक्त के साथ जब यही कार्टिलेज घिस जाते हैं तो जोड़ों में सूजन और दर्द रहने लगता है जिसे गठिया रोग यानि आर्थेराइटिस कहा जाता है। आर्थेराइटिस मुख्य तौर पर दो तरह का होता है जिसमें से वंशानुगत यानि जेनेटिक कारणों से होने पर उसे रूमेटाइड आर्थेराइटिस कहते हैं जबकि दूसरे प्रकार में उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों की झिल्ली कमज़ोर होने लगती है जिसे ऑस्टियोआर्थेराइटिस कहा जाता है।  

Rheumatoid Arthritis

आर्थेराइटिस के लक्षण (Symptoms of arthritis in Hindi)

आर्थेराइटिस के लक्षणों की बात करें तो हड्डियों जोड़ों में सूजन रहने के साथ दर्द होता। इसके अलावा मरीज़ के जोड़ टेढ़े मेढ़े होने लगते हैं या फिर यूं कहें कि उनकी बनावट में बदलाव आने लगता है। शरीर के जिन जोड़ों में दर्द होता है, उन्हें चलाने में दिक्कतें होने लगती हैं जैसे कि अगर घुटनों के जोड़ में दर्द हो तो चलने-फिरने और उठने-बैठने में तकलीफ़ होती है। बीमारी की शुरूआत में सीढ़ियां चढ़ने और उठने बैठने में दर्द होता है लेकिन बीमारी बढ़ने के साथ ही चलने फिरने में भी परेशानी होने लगती है। रूमेटाइड आर्थेराइटिस में पैरों के जोड़ के अलावा हाथों के जोड़ में भी दर्द होता है। दूसरे लक्षण की बात करें तो हड्डियों के जोड़ में सूजन रहती है और ख़ासकर सुबह के समय जकड़न ज्यादा महसूस होती है। तीसरा लक्षण है जोड़ों की बनावट का ख़राब होना जिसमें जोड़ टेढ़े मेढ़े हो जाते हैं जिसे डिफॉर्मिटी (Deformity) कहते हैं।  

किस उम्र में होता है आर्थेराइटिस? (At what age does arthritis happen in Hindi) 

रूमेटाइड आर्थेराइटिस यानि वंशानुगत आर्थेराइटिस किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है जबकि ऑस्टियोआर्थेराइटिस बढ़ती हुई उम्र का एक रोग है जो व्यक्ति की आयु बढ़ने के साथ दिखायी देता है। आमतौर पर ऑस्टियोआर्थेराइटिस 60 साल की आयु के बाद होते देखा गया है लेकिन आज के दौर में खान-पान, जीवनशैली, प्रदूषण वगैरह के कारण 40 से 45 साल के लोगों को भी यह बीमारी हो रही है। 

physiotherapy

आर्थेराइटिस का इलाज (Treatment of arthritis in Hindi)

गठिया रोग का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी स्टेज क्या है। यदि शुरूआत में ही बीमारी का पता चल जाए, तो कुछ तरह की दवाइयों और व्यायाम से काफ़ी हद तक फ़ायदा पहुंचता है। ये याद रखें कि बिना व्यायाम के आर्थेराइटिस के इलाज में सफलता नहीं मिलती है इसलिए दवाइयों के साथ साथ मरीज़ों को कुछ ख़ास तरह की कसरत करने की सलाह दी जाती है। आर्थेराइटिस रोग के बढ़ने पर दवाइयों के साथ फिज़ियोथेरेपी की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन यदि जोड़ बिल्कुल ख़राब हो जाएं और दवाइयों से सुधार ना हो, तो ऐसे में ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प बचता है।  

knee replacement

घुटने का प्रत्यारोपण कैसे होता है? (How is knee replacement done in Hindi)

जब जोड़ की हालत इतनी ख़राब हो जाए कि उसे दवाइयों से ठीक नहीं किया जा सके, तो फिर उसे सर्जरी के ज़रिए बदल दिया जाता है। ख़राब हो चुकी हड्डियों के कार्टिलेज घिस जाने के कारण उसे हटाकर वहां आर्टिफिशियल सतह लगा दी जाती है। इस तरह की सर्जरी में पूरे जोड़ को रिप्लेस नहीं किया जाता बल्कि सिर्फ़ जोड़ की उपरी सतह को काट कर निकाल दिया जाता है और उसकी जगह आर्टीफिशियल कैप लगा दी जाती है। घुटनों के प्रत्यारोपण (Knee Replacement) में पहले मरीज़ को बड़ा चीरा लगाना पड़ता था जिसके कारण रोगी को ठीक होने में काफ़ी समय लगता था और साथ ही दर्द भी होता था। इसके अलावा लगाए गए नकली जोड़ की आयु केवल 10 से 15 साल होती थी जिसके कारण मरीज़ को जीवन में दोबारा सर्जरी की आवश्यकता पड़ती थी। लेकिन आज के समय एडवांस टेक्नोलॉजी की मदद से छोटे चीरे लगाए जाते हैं। इसके अलावा आर्टीफिशियल जोड़ में इस्तेमाल हुईं चीज़ों की क्वालिटी और उम्र इतनी लंबी होती है कि मरीज़ को दोबारा सर्जरी की ज़रूरत नहीं पड़ती है। इन सभी के अलावा आज पेन मैनेजमेंट की वजह से भी रोगी को बहुत ज्यादा आराम मिलता है। ऑपरेशन के बाद होने वाले दर्द को आज के समय में कम किया गया है जिससे मरीज़ सर्जरी से नहीं डरते।  

arthritis

आर्थेराइटिस से बचाव (Prevention of arthritis in Hindi)

रूमेटाइड आर्थेराइटिस से बचाव नहीं किया जा सकता क्योंकि यह जीन्स में गड़बड़ी के कारण होता है इसलिए यदि परिवार में किसी को आर्थेराइटिस हो तो बाकी लोगों को भी समय रहते जांच करा लेनी चाहिए। शुरूआत में ही बीमारी का पता लगने पर दवाइयों की मदद से रूमेटाइड आर्थेराइटिस को कंट्रोल किया जा सकता है। ऑस्टियो आर्थेराइटिस से बचाव संभव है जिसके लिए अपने शरीर के वज़न को बढ़ने से रोकना चाहिए। इसके अलावा घुटनों, कूल्हों और दूसरे जोड़ों के ख़ास व्यायाम नियमित तौर पर करने चाहिए। साथ ही खाने में विटामिन डी और कैल्शियम अच्छी मात्रा में लेनी चाहिए।  

डिस्कलेमर – आर्थेराइटिस (गठिया) रोग के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर संदीप गर्ग, ऑर्थोपेडिक सर्जन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।   

Note: This information on Arthritis, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr Sandeep Garg (Orthopedic Surgeon) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.