नवजात बच्चों में से ज्यादातर बच्चों को पीलिया यानि जॉन्डिस हो जाता है। क्या नवजात बच्चों में पीलिया रोग होना एक घबराने की बात है या फिर ये सामान्य है, जानिए डॉक्टर एम एन मिश्रा, शिशु रोग विशेषज्ञ से इसके कारण और उपचार के बारे में।  

वैसे तो जन्म लेने वाले लगभग हर बच्चे को पीलिया होता है क्योंकि उनके लीवर पूरी तरह से मेच्योर नहीं हुए होते हैं। इसके अलावा पैदा होने के बाद उनके ख़ून में मौजूद आरबीसी यानि रेड ब्लड सेल्स का ब्रेकडाउन होता जिसके फलस्वरूप बिलूरूबीन बनता है और यही बिलूरूबीन हमारे शौच को पीला रंग प्रदान करता है। पीलिया सभी बच्चों में पाया जाता है लेकिन इसे बीमारी तब कहेंगें जब इसका स्तर सामान्य से बढ़ जाए या फिर एक अवधि से ज्यादा हो जाए। ऐसा होने पर इलाज कराना ज़रूरी हो जाता है।  

Jaundice in Childhood

नवजात बच्चों में पीलिया के कारण (Causes of jaundice in newborns in Hindi)

पीलिया होने के दो कारण है जिसमें से एक है फिज़ियोलॉजिकल और दूसरा है पैथोलॉजिकल। फिज़ियोलॉजिकल पीलिया सामान्य तौर पर बच्चे के पैदा होने के साथ ही हो जाता है जबकि पैथोलॉजिकल कारणों की बात करें तो माता-पिता में से किसी को लीवर की बीमारी होने पर बच्चे को पीलिया हो सकता है। इसके अलावा माता-पिता के ब्लड ग्रुप में किसी तरह की इनकमपैटीब्लिटी होने पर भी बच्चे को जॉन्डिस हो जाता है।   

नवजात बच्चों में पीलिया के लक्षण (Symptoms of jaundice in infants in Hindi)

पीलिया सामान्य रूप से बच्चा पैदा होने के बाद तीसरे दिन से दिखना शुरू होता है और ये सातवें दिन तक जारी रहता है। पीलिया होने पर शरीर के कुछ अंग ज्यादा पीले दिखते हैं जैसे आंखों की पुतलियां और हाथ-पैर वगैरह। वैसे जब पीलिया का स्तर सामान्य से बढ़ जाए और इसकी वजह से हाथों की हथेलियां और पैर के तलवे भी पीले रंग के दिखने लगे तो यह समझ जाना चाहिए कि जान्डिस ख़तरनाक स्टेज तक पहुंच चुका है। इसके अलावा किसी बच्चे को अगर तीसरे दिन से पहले ही पीलिया हो जाए या फिर सातवें दिन के बाद भी जारी रहे तो इसका इलाज करना ज़रूरी हो जाता है।  

Jaundice in Childhood

पीलिया से कैसे करें बचाव? (How to prevent jaundice in infants in Hindi)

बच्चे को पीलिया से बचाने के लिए मां के गर्भ से ही तैयारी शुरू करनी चाहिए। अगर मां के ख़ून और आरएच में किसी तरह की दिक्कत हो तो उसका इलाज होना चाहिए। इसके अलावा बच्चे को जन्म के बाद कम से कम 72 घंटों के लिए डॉक्टर की निगरानी में रखना चाहिए ताकि पीलिया के स्तर और अवधि का पता किया जा सके।  

पीलिया का उपचार (Treatment of jaundice in Hindi)

फिज़ियोलॉजिकल पीलिया सामान्य होता है इसलिए इसमें किसी तरह के उपचार की ज़रूरत नहीं पड़ती लेकिन यदि पीलिया पैथोलॉजिकल हो तो बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। इसके इलाज के लिए डॉक्टर बच्चे की फोटो थेरेपी करते हैं साथ ही ज़रूरत पड़ने पर एक्सचेंज ट्रांसफ्यूज़न भी करते हैं जिसमें शरीर में मौजूद ख़ून को पूरी तरह से बदल दिया जाता है। 

 

Jaundice in Childhood

पीलिया से जुड़ी कई तरह की अंधविश्वास भरी चीज़ें हमारे समाज में फैली हुई हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जो जॉन्डिस होने पर झाड़-फूंक का सहारा लेते हैं जो कि बिल्कुल ग़लत है इसलिए इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना बहुत ज़रूरी है। जन्म के बाद बच्चे में होने वाली किसी भी परेशानी से बचने और उसके इलाज के लिए अस्पतालों में ही डिलीवरी करानी चाहिए। जन्म के तुरंत बाद से लेकर कुछ दिनों तक बच्चे को शिशु विशेषज्ञ की देखरेख में ही रखना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान भी मां को डॉक्टर से सभी तरह की जांच करानी चाहिए और कोई परेशानी होने पर उचित इलाज कराना चाहिए जिससे बच्चे को पीलिया रोग होने से बचाया जा सके।  

डिस्कलेमर – नवजात बच्चों में पीलिया रोग (जॉन्डिस) होने के लक्षण, कारण, इलाज तथा बचाव पर लिखा गया यह लेख पूर्णत: डॉक्टर एम एन मिश्रा, शिशु रोग विशेषज्ञ द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।   

Note: This information on Jaundice, in Hindi, is based on an extensive interview with Dr MN Mishra (Paediatrician) and is aimed at creating awareness. For medical advice, please consult your doctor.